शांतवन है क्लांतमन दिग्भ्रान्त तन है तुम नहीं हो !
अरुणेश मिश्र
शांतवन है
क्लांतमन
दिग्भ्रान्त तन है
तुम नहीं हो !
साथ किसके रह रही हो ?
तुम हमारे
हम तुम्हारे
शून्य में फिर क्यों निहारें
प्रिय ! सुवासित गन्ध से कह दो
कहाँ तुम बह रही हो ।
द्वार पर आये हमारे
साथ में लाये सितारे
फिर हमे तुम सा सँवारे !
प्रिये ! सच ही कह रही हो !