प्रस्तुत आरती प्रभु के प्रति श्रद्धा व्यक्त करती है
ठाकुर प्रसाद मिश्र
आरती किस मुख से प्रभु गाऊं ?
गर्भ त्रास भयभीत मुरारी हर पल तुम्हें मनाऊं ||
भजन हेतु तव बचन दिया पर अब सब कुछ बिसराऊं|
जिह्वा हुई स्वाद से मैली दशनामी कुभोज्य चबाऊं ||
तृष्णा ताप तपे उर भीतर किस थल तुम्हें बिठाऊं |
नासा स्वार्थ गन्ध से पूरित अधर लोभ के ठाऊं ||
बुद्धि निरत अपकार पराए कर पर धन फैलाऊं |
मद मत्सर माया के गहने पहन सदा इतराऊँ ||
मिथ्या दंभ असत्य आचरण दूषण कौन गिनाऊँ |
मन मांझी तन तरी डुबाए कर मल- मल पछिताऊं ||
मिश्र अपावन तुम अति पावन कैसे तव पद पाऊं |
ममता मैल सकल तन व्यापी साबुन कौन लगाऊं ||
अब तो शरण तुम्हारी रघुवर तुम पर वलि वलि जाऊं |
पगरज की यदि कृपा मिले तो मैं भी भव तरि जाऊं. ||
रचनाकार हिंदी के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं.प्रकाशित हिंदी उपन्यास “रद्दी के पन्ने”