अरुणाकर पाण्डेय
कहा जाता हैं कि अपने जीवन के सारे संबंध आपको मिलते हैं लेकिन एकाध संबंध ऐसे होते हैं जिन्हें आप अपनी पसंद से चुनते हैं। मित्र का संबंध भी एक ऐसा ही संबंध है जिसे हम अपनी स्वेच्छा से चुनते हैं और उसे जीते हुए अपने अनुभव को विस्तार देते हैं। यह बहुत अनोखा संबंध इसलिए है क्योंकि इसमें किसी प्रकार की औपचारिकता की आवश्यकता नहीं होती बल्कि इसमें सबसे अधिक सहजता देखी जाती है । यहां तक कि यह माना जाता है कि किसी के बारे में जो माता, पिता और पत्नी तक को नहीं मालूम होगा,वह उसके दोस्त को जरूर मालूम होगा। मित्रता में विश्वसनीयता की बहुत कीमत है । कृष्ण को भी सहजता के लिए सुदामा चाहिए,यह भी किसी से नहीं छिपा है । लेकिन एक बड़ी बात यह है कि सच्चा दोस्त अब मिलता ही कहां है ! वह मिलना तो दुर्लभ है । रीतिकालीन कवि गिरिधर कविराय ने भी ऐसी ही बात अपनी एक कुंडली में की है ।
“साईं सब संसार में
मतलब का व्यवहार
जब लगि पैसा गांठ में
तब लगि ताको यार
तब लगि ताको यार
संग ही संग में डोलैं
पैसा रहा न पास
यार मुख सो नहिं बोलैं
कह गिरिधर कविराय
जगत यहि लेखा भाई
बिनु बेगरजी प्रीति
यार बिरला कोई साईं “
यहां गिरिधर कविराय संसार के बारे में सचेत कर रहे हैं कि बिना मतलब के इस संसार में कोई संबंध नहीं रखता।जब तक आपके पास धन,वैभव,सत्ता,सिद्धि है तब तक आपके मित्र बनते रहेंगे ।लेकिन जब आपके पास ये समस्त साधन नहीं होंगे तब ये तथाकथित मित्र आपसे बात भी नहीं करेंगे ।कविराय कहते हैं कि इस संसार में प्रायः यही देखा गया है कि बिना मतलब या स्वार्थ के आपसे सम्बन्ध रखने वाला कोई विरला ही होता है जो बिना किसी गरज के हर हाल में अपनी मित्रता का सम्बंध निभाता है ।