अज विभु व्यापक अनादि अनंता, त्रिभुवन विदित शंभु मुनि संता
रमेश कुमार मिश्र
अज विभु व्यापक अनादि अनंता,
त्रिभुवन विदित शंभु मुनि संता
पर्वत नदियाँ तेरी माया,
कोटि सूर्य सम तेरी काया
दिशा ईश हे ब्रह्म अनूपा,
चेतन निर्गुण वेद स्वरूपा
उपादान सब तेरे पाए,
महाकाल के काल कहाए
सलिला जटा उलझि पुनीता
प्रचंड अखंड कल्पांत सुनीता
भाल चंद्रमा हाथ त्रिशूला,
सुमिरत मिटत त्रिविध भव शूला
अज्ञ मिश्र भजत तोहिं जान कृपाला
कृपा करहु हे! दीन दयाला.
रमेश कुमार मिश्र की कलम से