
है दया क्षमा ममता मुझमें मैं भारत मां की लाली हूं।
प्रकृति सृजन की सर्जक मैं, सिंदूर शक्ति की माली हूं ।।
मैं सिंदूरी दुर्गा भी हूं, मैं सिंदूरी मत की मतवाली हूं ।
मुझसे पाते हैं जन्म सभी, मैं मानवता की आली हूं ।।
शांति कांति मुझमें है बसती, मैं जंग प्रलय की नाली हूं।
मेरे सुहाग को जो छेडें, मैं उसके विनाश की काली हूं ।।
मैं हूं प्रचंड मैं हूं अखंड, मैं ज्वाला खप्पर वाली हूं ।
घबराता है दुश्मन मुझसे, मैं भारत भूमि की नारी हूं।।
कवि/लेखक- दिल्लीविश्वविद्यालय दिल्ली से हिंदी में परास्नातक व हिंदी पत्रकारिता परास्नातक डिप्लोमा हैं