रमेश कुमार मिश्र

सीमा की रक्षा में तत्पर भारत मां के लाल उठो ।
वीर सपूतों रण वीरों अब वैरी दल पर टूट पडो ।।
है छली प्रपंची शत्रु बेधर्मी धोखे से करता वार सुनो ।
किसे मारना धरती पर है किसको तुम आकाश चुनो ।।
सिंदूर बेटियों माताओं बहनों का जिसने हमसे छीना है ।
हो छुपा कहीं भी धरती पर करना उसका छलनी सीना है ।।
है शौर्य पराक्रम दृढता तुममें है नीति धर्म संग्राम ।
जहां बेधर्मी सीमा लांघे कर दो उसका काम तमाम ।।
आतंक के साये में रहना अब हम सबको मंजूर नहीं।
आतंकी है मरना तुझको अब है वह दिन दूर नहीं ।।
हम कफन शीश पर बांध चले तुम अपना अंजाम सुनो ।।
गडेगा तिरंगा तेरी छाती पर है भारत का पैगाम सुनो ।।
कवि/लेखक- दिल्लीविश्वविद्यालय दिल्ली से हिंदी में परास्नातक व हिंदी पत्रकारिता परास्नातक डिप्लोमा हैं