भारत में आज भी सरकारी अस्पतालों के ट्वायलेट बद से बदतर हैं …
रमेश कुमार मिश्र

इसे विडंबना कहें या अनदेखी समझ नहीं आता कि आजादी के पचहत्तर वर्ष बाद भी भारत के अधिकांश सरकारी अस्पतालों के ट्वायलेट गंदे के गंदे ही रहते हैं । वह भारत का चाहे बडा अस्पताल हो या फिर छोटा, वह भारत के किसी ब्लाक स्तर का अस्पताल हो या फिर जिले का, राज्य की राजधानी या फिर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का ही क्यों न हो । दिल्ली के सबसे बडे अस्पताल एम्स की बात करूं तो इधर कुछ सालों से एम्स ने अपने वार्डों आदि के पब्लिक ट्वायलेट को साफ करने की पुर जोर कोशिश तो की है लेकिन पब्लिक है कि फ्लैश चलाने में भी दिक्कत महसूस करती है । एम्स के बगल में स्थित अस्पताल सफदरजंग में आज भी ट्वायलेट गंदे ही रहते हैं । सफदरजंग दिल्ली का एक माना जाना अस्पताल है जहां रोज हजारों लाखों की संख्या में मरीज इलाज की उम्मीद लेकर अस्पताल में आते हैं । अब जाहिर सी बात है कि ऐसी दशा में मरीज या मरीज के तीमारदार को ट्वायलेट जाना ही पडता है । और उस दौरान वहां के ट्वायलेट का नजारा ऐसा बीभत्स होता है कि मरीज के साथ गया हुआ स्वस्थ व्यक्ति भी या तो बीमार हो जाता है या फिर बीमार होने की दशा में हो जाता है ।

इसका जिम्मेदार कौन है तब जबकि लालकिले की प्राचीर से भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी भारत में स्वच्छता के अभियान का संकल्प लेते हैं और आजादी के अमृत महोत्सव में पूरे भारत को स्वच्छतम् देखना चाहते हैं । यहीं सवाल यह भी उठता है कि जब भारत के निजी अस्पताल और मेट्रो जैसे पब्लिक प्लेस के ट्वायलेट पूरे साफ सुथरे रहते हैं तो फिर सरकारी अस्पतालों में बदबू का जिम्मेदार कौन । ऐसे अस्पताल एक नहीं अनेक हैं जहां पर असुविधाओं का अंबार लगा है ।
भारत में जब तक अभियान के तहत युद्ध स्तर पर सरकारी अस्पतालों में मरीजों के सरकारी हितों को ध्यान में रखकर काम न होगा तब तक भारत के गरीब और धनहीन लोग यूं ही गंदगियों के बीच अपना इलाज कराने पर मजबूर रहेंगे।
भारत में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जब तक अपनी जिम्मेदारियों को नहीं समझेंगे तब तक भारत के बडे अस्पतालों पर भारी भीड का लगा रहना तयं है । अब समझ यह नहीं आता है कि हमारी सरकारें कौन सी निद्रा में हैं जो इन अस्पतालों को बद से बदतर स्थिति मे रहने को छोड रखी हैं । ऐसा वे किसी को लाभान्वित करने की मंशा से करते हैं या फिर भारत के लोगों का स्वास्थ्य उनके लिए महत्वपूर्ण नहीं है ।
भारत के सरकारी अस्पताल एम्स या सफदरजंग के बाहर की सडकों की बाहरी पटरियों पर मरीजों के तीमारदार भरी दोपहरी से ही रात्रि विश्राम के लिए अपनी – अपनी चटाई विछाते देखे जा सकते हैं । भारत में लंबी तारीख या तारीख पर तारीख मशहूर है यह केवल एक ही जगह के ले नहीं है । यदि आप इस मुहावरे से दो चार होना चाहते हैं तो कभी दिल्ली एम्स आइए क्या पता बीमारी दो माह बीमार की जीवन लीला समाप्त कर दे लेकिन पर यहां तो तारीख वर्षों की मिलती है।
कुल मिलाकर भारत के परंपरा और सिद्धांत में शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों व्यापार की परिधि से बाहर थे , लेकिन अफसोस कि यही दोनों आज भारत में सबसे ज्यादा पीडित और लाचार हैं । जहां एक तरफ तो पांच सितारे होटल का रूप लिए निजी अस्पताल विहंस रहे हैं, तो दूसरी तरफ अपनी बदनसीबी की बदबू सहते भारत के अधिकांश सरकारी अस्पताल । रोशनी की लौ में तेल की अहमियत का मामला तो कहीं न कहीं छुपा ही है । सोचिएगा….
लेखक– दिल्लीविश्वविद्यालय दिल्ली से हिंदी में परास्नातक व हिंदी पत्रकारिता परास्नातक डिप्लोमा हैं ।