डॉ मनोज कुमार तिवारी
वरिष्ठ परामर्शदाता
एआरटीसी, एस एस हॉस्पिटल, आईएमएस, बीएचयू, वाराणसी
मनोविदलता एक मानसिक रोग है। लगभग 1% लोगो में यह विकार पाया जाता है। इस रोग में रोगी के विचार, संवेग तथा व्यवहार में आसामान्य बदलाव आ जाते हैं जिनके कारण वह कुछ समय लिए अपनी जिम्मेदारियों तथा अपनी देखभाल करने में असमर्थ हो जाता है। ‘मनोविदलता’ का शाब्दिक अर्थ है ‘मन का टूटना’।
सिज़ोफ्रेनिया किसी को भी हो सकता है । यह दुनिया भर के लोगों को, सभी जातियों और संस्कृतियों को प्रभावित करता है। यह किसी भी उम्र में हो सकता है, सिज़ोफ्रेनिया आमतौर पर किशोरावस्था के शुरुआत में दिखाई देता है। यह विकार पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से प्रभावित करता है, हालांकि पुरुषों में लक्षण आमतौर पर पहले दिखाई देते हैं। लक्षण जितनी जल्दी शुरू होगा, बीमारी उतनी ही गंभीर होगी है। 5 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों को सिज़ोफ्रेनिया हो सकता है, लेकिन किशोरावस्था से पहले यह दुर्लभ है।
*सिज़ोफ्रेनिया के प्रमुख लक्षण:-*
# रोगी अकेला रहने लगता है।
# रोगी अपनी जिम्मेदारियों तथा जरूरतों का ध्यान नहीं रख पाता।
# रोगी अक्सर खुद ही मुस्कुराता या खुद से बात करता दिखाई देता है।
# रोगी को विभिन्न प्रकार के अनुभव हो सकते हैं: ऐसी आवाजे सुनाई देना जो अन्य लोगों को न सुनाई दे, कुछ ऐसी वस्तुएँ या आकृतियाँ दिखाई देना जो और लोगों को न दिखाई दे, शरीर पर कुछ न होते हुए भी सरसराहट या दबाव महसूस होना, अजीब गंध महसूस करना आदि।
# रोगी को ऐसा विश्वास होने लगता है कि लोग उसके बारे में बातें करते हैं, लोग उसके खिलाफ हो गए हैं, उसके खिलाफ षड्यंत्र रच रहे हैं। लोग उसे नुकसान पहुँचाना चाहते हैं। उसका भगवान् से कोई सम्बन्ध है आदि।
# रोगी को लगता है कि कोई बाहरी ताकत उसके विचारों को नियंत्रित कर रही है।
# रोगी असामान्य रूप से अपने आप में हँसने, रोने या अप्रासंगिक व्यवहार व बात करने लगता है।
# रोगी अपनी देखभाल व जरूरतों को नहीं समझ पाता।
# रोगी कभी-कभी बेवजह स्वयं या किसी और को चोट पहुँचा सकता है।
# रोगी की नींद व अन्य शारीरिक जरूरतें भी बिगड़ सकती हैं।
*मनोविदलता के कारण:-*
*आनुवंशिकता:-*
यदि माता-पिता दोनों में स्किज़ोफ्रेनिया है तो बच्चे को स्किज़ोफ्रेनिया होने की संभावना 40% है। यदि माता या पिता में से कोई एक है तो बच्चे में स्किज़ोफ्रेनिया होने की संभावना 12% होती है।
*पर्यावरणीय कारक:-*
सिजोफ्रेनिया जीवन के होनेवाले घटनाओ के कारण या तनाव के कारण हो सकता है। वायरल संक्रमण, धूम्रपान, बचपन का आघात, सामाजिक अलगाव, कुपोषण, विटामिन डी की कमी, सामाजिक अनुभूति व कम बुद्धि वाले लोगों में सिज़ोफ्रेनिया को ट्रिगर करने में भूमिका निभा सकते हैं जिनकी आनुवंशिक संरचना उन्हें जोखिम में डालती है। सिज़ोफ्रेनिया अक्सर तब सामने आता है जब शरीर में हार्मोनल और शारीरिक परिवर्तन होते हैं, जैसे कि किशोरावस्था और युवा वयस्क वर्षों के दौरान।
*मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन:-*
कुछ मरीजों के दिमाग में रसायनों का असंतुलन हो जाता है जैसे सेरोटिनिन और डोपामाइन का स्तर बढ़ने से ये बीमारी हो सकती है।
*सिज़ोफ्रेनिया निदान:-*
सिज़ोफ्रेनिया के लक्षण होने पर चिकित्सक मेडिकल इतिहास और कभी-कभी शारीरिक परीक्षण करते हैं। सिज़ोफ्रेनिया का निदान करने के लिए कोई प्रयोगशाला परीक्षण नहीं हैं ।
यदि चिकित्सक को सिज़ोफ्रेनिया के लक्षणों के लिए कोई अन्य शारीरिक कारण नहीं मिलता है, तो वे मरीज को मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक के पास भेज सकते हैं। मनोवैज्ञानिक मानसिक बीमारियों का निदान और उपचार करने के लिए प्रशिक्षित होते हैं। मनोचिकित्सक और मनोवैज्ञानिक किसी व्यक्ति के मनोविकृति विकार का मूल्यांकन करने के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए साक्षात्कार और मूल्यांकन उपकरणों का उपयोग करते हैं। चिकित्सक व्यक्ति और उसके परिवार द्वारा लक्षणों की रिपोर्ट, व्यक्ति के रवैये और व्यवहार के अवलोकन के आधार पर निदान करता है।
सिज़ोफ्रेनिया का निदान होने के लिए कम से कम 6 महीने तक इनमें से कम से कम दो लक्षण होने चाहिए:
भ्रम, दु: स्वप्न, अव्यवस्थित भाषण, अव्यवस्थित या कैटेटोनिक व्यवहार
नकारात्मक लक्षण।
6 महीने की अवधि के दौरान एक महीने तक सक्रिय लक्षण होने चाहिए। हालाँकि, सफल उपचार के साथ यह कम हो सकता है। लक्षणों का सामाजिक या कार्यस्थल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ना चाहिए।
*उपचार:-*
*दवाएं:-* मानसिक रोग विशेषज्ञ मरीज के लक्षण, सिजोफ्रेनिया के प्रकार एवं गंभीरता के आधार पर अलग-अलग दवाएं भिन्न भिन्न खुराक में प्रदान करते हैं।
*मनोसामाजिक चिकित्सा:-*
दवाएँ सिज़ोफ्रेनिया के लक्षणों को कम करने में मदद करती हैं और मनोसामाजिक उपचार बीमारी के साथ आने वाली व्यवहारिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक व व्यावसायिक समस्याओं को दूर करने में मदद करती हैं। थैरेपी के माध्यम से, लोग अपने लक्षणों को प्रबंधित करना, बीमारी के दोबारा होने के शुरुआती चेतावनी संकेतों की पहचान करना और बीमारी की रोकथाम की योजना बनाना सीखते हैं। प्रमुख मनोसामाजिक उपचार:-
*पुनर्वास:-* सामाजिक कौशल व नौकरी हेतु प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति को समुदाय में कार्य करने और यथासंभव स्वतंत्र रूप से रहने में मदद मिलता है।
*संज्ञानात्मक चिकित्सा:-* इसमें सूचना प्रसंस्करण से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए तकनीक सीखाया जाता है। कंप्यूटर आधारित अभ्यास मानसिक कौशल को मजबूत करते हैं जिसमें ध्यान, स्मृति, योजना और संगठन शामिल हैं।
*व्यक्तिगत मनोचिकित्सा:-* व्यक्ति को अपनी बीमारी को बेहतर ढंग से समझने और उससे निपटने के साथ साथ उसे समस्या-समाधान कौशल सीखने में मदद कर सकती है
*पारिवारिक चिकित्सा:-* परिवार के सदस्यों को सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित किसी सदस्य की स्थिति से निपटने और उसे सहारा देने में मदद कर सकती है।
*समूह चिकित्सा:-* जो निरंतर पारस्परिक सहायता प्रदान कर सकते हैं।
सिजोफ्रेनिया के उपचार में पूरे टीम का सहयोग होना आवश्यक है जिसमें मानसिक रोग विशेषज्ञ, मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक, परामर्शदाता, साइकाइट्रिक सोशल वर्कर, स्टाफ नर्स और परिवार के सदस्य की संयुक्त भूमिका होती है।