(बाल कहानी)
एक बार जंगल के राजा शेर ने अपने नए मंत्रिमंडल का गठन किया ।जिसमें सभी जानवरों ने एक मत होकर प्रधानमंत्री के पद पर राज हंस का चुनाव किया।वह नाम के अनुसार ही सुन्दर ,उदार और सुन्दर मंत्रणा देने में भी सक्षम था।वह शेर राजा को अच्छी –अच्छी सलाहें देकर उसे अत्यन्त नम्र एवं उदार बनाने में लग गया।वह शेर राजा को सलाह देता कि महाराज भूखे होने पर एक ही शिकार करें ।जिससे आपका पेट भर जाये,और जंगली जीवों की संख्या भी एक से अधिक बनी रहे ।वह छोटे एवं कमजोर जीवों पर उसे दया करने को सिखाता ।
एक दिन गरीबी से सताया हुआ एक ब्राहमण अपनी पत्नी के ताने सुनकर कमाने के लिए नगर की तरफ चला ।रास्ते में वही जंगल पड़ा।शेर को भूख लगी थी।वह शिकार करने के बारे में सोच रहा ।उसी समय ऊँचे बृक्ष की चोटी पर पर बैठे हंस की आवाज तनाना-तनाना आने लगी ।हंस डर रहा था कि कहीं शेर इस ब्राहमण को मार न डाले ।तभी शेर की आवाज गूँजी,क्या बात है प्रधानमंत्री जी क्या कोई शिकार पास है? हंस बोला महाराज आज आपके भाग्य खुल गये हैं।आपके पुश्तैनी गुरू ब्राहमण देवता पधार रहे हैं।आज आप इनकी निराहार रहकर सेवा करें ,आप के जन्म जन्म के पाप कट जायेंगे,और अंत में आप स्वर्ग जायेंगे।तभी ब्राहमण उस पेड़ के पास पहुंच गया।शेर को देखकर पहले तो वह डरा।लेकिन जब शेर ने झुककर उसे प्रणाम किया तो उसका डर खत्म हो गया।शेर ने ब्राह्मण के लिए जंगल से मीठे –मीठे फल फल वन्दरों से मंगवाए।ब्राह्मण भूखा था फल खाकर नदी में पानी पीकर प्रसन्न हो गया।दूसरे दिन शेर ने पहले के मारे गये तमाम मनुष्यों के सोने चांदी के गहने देकर ब्राह्मण के पैर छूकर विदा किया।
ब्राह्मण जल्दी काफी धन लेकर घर पहुंचा तो ब्राह्मणी बडी़ प्रसन्न हुई।वह राजसी ठाट बाट से रहने लगी ।खूब अच्छे अच्छे कपडे़ पहनती अच्छा कीमती भोजन करती ।आखिर फिर वही समय आ गया ।सारा धन खत्म हो गया ।ब्राह्मणी ने फिर ताने देकर ब्राह्मण को कमाने भेजा ।ब्राह्मण फिर उसी रास्ते पर चला । लेकिन इस समय जंगल की सरकार बदल गयी थी ।राजा तो शेर ही था, लेकिन प्रधानमंत्री कौवा बन गया था।उसने खा- पीकर मोटे हुए ब्राहमण को देखा तो उसकी भूख जग गयी ।क्योंकि शेर के के जूठे शिकार की दावत वह भी उडा़ता था ।उसने कांव –कांव कर कहा बहुत अच्छा शिकार पास आ रहा है तैयार हो जायें शिकार करने के लिए।शेर उठकर खडा़ हुआ तो सामने उसी ब्राहमण को देखा हंस के दिए संस्कार अभी उसमें कुछ बाकी थे।वह ब्राहमण को नमस्कार कर उन्हें फल वगैरह खिलाया ,और गुफा में बचा धन देकर बोला। ब्राह्मण देवता जाइए और अब फिर इधर कभी मत आइएगा ।क्योंकि यह तो राज हंस का दिया थोडा़ संस्कार मुझमें रह गया था,कि इस बार भी आप बच गए और धन लेकर जा रहे हैं।अब सरकार बदल गयी है।यहां का प्रधानमंत्री कौवा हो गया है।हंस मोती चुगने मान सरोवर जा चुका है।अत: मेरे जैसा हिंसक शेर किसी का यजमान नहीं रहा।
रचनाकार हिंदी के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं.प्रकाशित हिंदी उपन्यास “रद्दी के पन्ने”