मदिरे सतस: धिक्कार तुझे, मदिरे है ! नमन हजार तुझे
ठाकुर प्रसाद मिश्र
मदिरे सतस: धिक्कार तुझे, मदिरे है ! नमन हजार तुझे
चौदह रत्नों में कहलाई सुर नर मुनि किन्नर मन भाई ।
तू सीमित नहीं भान्डों तक लालिमा नारि दृग बन आई।
जिसने तुझको निज पास किया बस अपना सत्या नाश किया।
कोई बंध खड़ा जंजीरों में कोई जग का उपहास लिया।
मदिरे सतस: धिक्कार तुझे..
मानव को दानव कर देती इतना भीषण अधिकार तुझे ।
ज्ञानी जन का तू ज्ञान हरे सम्मानित का सम्मान हरे।
तू अग्नि का शोला बन भड़के तेरी सलाह जो कान करे।
तू सुर बनिता सा अंग लिए तपसी तप को सब भंग किए।
मदिरे सतस: धिक्कार तुझे
ओ योजन गंधा सी सुंदरि चलती महाभारत संग लिए।
ओ शांति नासिनी पंचाली प्रिय लगता हाहाकार तुझे।
तू नारायण की साली है लक्ष्मी जन मुख की लाली है .
तू सत्ता दंभ की जननी है बन स्वबस बिहारिन करिनी है.
तू है अमोघ षड्यंत्र प्रिया जो देता सतत दुलार तुझे.
मदिरे सतस: धिक्कार तुझे
निज बंधु हलाहल उर धारे प्रिय सेवक जन प्रतिपल मारे।
ओ घोर कर्मिणी ओ वारुणि ओ सजी नर्तकी वंजारिन।
जिसकों तू बेच बजार रही वह क्रय करता सत बार तुझे.
निज जन परिजन संतानों की हत्यारिन प्रबल विरोधिन है
भूली बातें सब याद करे तू ऐसी विकट प्रबोधननि है
अपनों से प्रतिफल दूर करे ऐसा कहता संसार तुझे.
ओ मदिरा पाई सावधान बहुरूपिणी बहुरंगिनि है।
हंस रोकर सदा रिझाती है यह विष गर्विणी भुजंगिनि है.
इसको न कभी करुणा आए चाहे कुल लाख हजार बुझे.
मदिरे सतस: धिक्कार तुझे
रचनाकार हिन्दी के प्रतिष्ठित रचनाकर हैं, प्रकाशित हिंदी उपन्यास रद्दी के पन्ने