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संजीव गोयल

ख्वाहिशों का हमारी साँसों से है एक अटूट संबंध

ख्वाहिशों के बिना हमारे जीवन में है सिर्फ क्रंदन,

किसी को ख्वाहिश है नभ के शिखर को छूने की

तो किसी को ख्वाहिश है समाज में फैले विष को पीने की,

किसी को ख्वाहिश है अपने प्रभु भक्ति में डूब जाने की

तो किसी को ख्वाहिश है अपने माशूक के प्यार को पाने की,

किसी को ख्वाहिश है अपने वतन पर मर मिटने की

तो किसी को ख्वाहिश है अपने भ्रष्ट आचरण से सुख सम्पत्ति एकत्र करने की,

किसी को ख्वाइश है अपनी राजनीति चमकाने की

तो किसी को ख्वाहिश है राजनीति से समाज को उपर उठाने की,

किसी को ख्वाहिश है नारी शक्ति को अपमानित करने की

तो किसी को ख्वाहिश है नारी शक्ति को पूजने की,

किसी को ख्वाहिश है पूरी दुनिया घूमने की

तो किसी को ख्वाहिश है दुनिया पर हुकूमत करने की,

किसी को ख्वाहिश है प्यार से सबके आँसू पोंछने की

तो किसी को ख्वाहिश है दूसरे के आँसुओं से खुश होने की,

किसी को ख्वाहिश है सांप्रदायिक सद्भाव को आग लगाने की

तो किसी को ख्वाहिश है सांप्रदायिक सोहार्द्र को बढ़ाने की,

अलग -अलग ख्वाहिशों से ही चल रहा है सबका ये जीवन

पर ख्वाहिशें हों ऐसी की निर्मल हो जाए सबका तन-मन,

हर प्राणी की ख्वाहिशों में विश्व कल्याण का हो समर्पण

और हर ख्वाहिश हो ऐसी कि हो सामाजिक चेतना का आागमन

रचनाकार- सुप्रसिद्ध हिंदी के साहित्यकार हैं।

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