रमेश कुमार मिश्र

आचार्य चाण्क्य भारतीय मनीषा के निपुण विद्वान रहे हैं । जिनकी नीतियों का लोहा पूरी दुनिया मानती है आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों के माध्यम से एक तरफ जहां अपने शत्रु नंद का समूल नाश किया तो दूसरी तरफ अपने चहेते चंद्रगुप्त को अखंड राज्य का राजा बना दिया.। आचार्य चाणक्य सिर्फ राजनीति के ही पंडित नहीं थे अपितु वे जीवन के हर मूल्य को गहराई से समझते थे । इसलिए ही उन्होंने जीवन के हर पक्ष को अपने अनुभव और की कलम से लिखा है. आचार्य चाणक्य की नीति का कुछ ही हिस्सा पढ़कर कुछ लोग राजनीति के क्षेत्र में शिखर को छू लेते हैं, तो कुछ लोग उनकी नीतियों को पढकर विद्वान हो जाते हैं और कुछ उनकी नीतियों को अपनाकर एक सफलतम छात्र बन जाते हैं । इसी क्रम में आचार्य़ चाण्क्य विद्यार्थियों को भी अच्छा विद्यार्थी बनने की सलाह देते हैं । उनकी इन आठ बातों को विद्यार्थियों को सदैव ध्यान में रखना चाहिए।
कामक्रोधौ तथा लोभं स्वादं श्रृंगार कौतुके।
अतिनिद्रातिसेवे च विद्यार्थी ह्यषट वर्जयेत् ।।
काम – आचार्य चाणक्य की सलाह है कि विद्यार्थी को सदैव काम भावना अर्थात इंद्रिय सुख की इच्छा से बचना चाहिए ।काम के वशीभूत व्यक्ति का चित्त अस्थिर हो जाता है ।और फिर वह अपनी लक्ष्य साधना से भटक कर अहर्निश काम मोहित रहकर अपनी ऊर्जा और समय दोनों का नाश करता है इसलिए चाणक्य एक विद्यार्थी को इससे बचने की सलाह देते हैं ।
क्रोध—दूसरों का अहित करने की जो वृति मनुष्यों के अंतःकरण में पैदा होती है वही क्रोध है। क्रोध अविद्या का कारक है । मनुष्य में इसके उत्पन्न होते ही मनुष्य की निश्चयात्मक बुद्धि का नाश हो जाता है । फिर वह अपनी ऊर्जा सकारात्मक क्षेत्र में न लगाकर नकारात्मक क्षेत्र में लगाने लगता है । ऐसे में एक छात्र अपनी पढाई से इतर सोच में पडकर अपना सारा का सारा समय़ नष्ट कर देता है । इसलिए आचार्य चाणक्य छात्रों को अक्रोधी रहने की सलाह देते हैं । गीता में भगवान श्रीकटष्ण कहते हैं कि क्रोधाद्भवति सम्मोहः अर्थात क्रोध से सम्मोह पैदा होता अर्थात चित्त पर मूढता छा जाती है । और मूढ चित्त फिर क्या ही पढेगा क्या ही लिखेगा।
लोभ -आचार्य चाणक्य एक विद्यार्थी को अपने जीवन में लोभ से दूर रहने की बात कहते हैं । लोभ अनैतिक कामना को जन्म देता है । और अनैतिक इच्छा को पूरा करने का भाव अनैतिक कृत्य करा बैठता है और ऐसे मे एक विद्यार्थी अपने मूल लक्ष्य से भटक जाता है । श्रीमद्भगवद्गीता में भी मधुसूदन ने षडविकारों में सबसे खतरनाक लोभ को ही माना है। हितोपदेश में भी कहा गया है –लोभः पापस्य मूल कारणम् । लोभ का अर्थ है इच्छा का अति पिपासु होना और इस अति से ही एक विद्यार्थी को बचने की सलाह दे रहे हैं आचार्य चाणक्य ।
स्वाद— जिह्वा का अत्यधिक स्वादलोलुप होना किसी के लिए भी हितकर नहीं है और एक विद्यार्थी के लिए तो विल्कुल भी नहीं है। स्वाद की चाह में इंसान न जाने कहां-कहां भटकता है । जिसमें उसका बेशकीमती समय और धन दोनों नष्ट होता है और स्वास्थ्य खराब होने की संभावना भी बनी रहती है । यदि एक छात्र की तवियत ही ठीक नहीं रहेगी तो वह फिर कैसे पढेगा । ऐसे में आचार्य चाणक्य एक छात्र को स्वाद लोलुप होने से बचने की सलाह देते हैं ।
श्रृंगार —- आचार्य चाण्क्य एक छात्र को श्रृंगार प्रिय होने से बचने की सलाह देते हैं । स्वाभाविक सी बात है एक छात्र यदि अपना कीमती समय जो से पढने-लिखने में लगाना चाहिए वह अपने को सजाने में ही आत्मव्यामोहित होकर लगाता रहेगा तो क्या और कब पढेगा ।
खेल और मनोरंजन -आचार्य चाण्क्य विद्यार्थियों को सलाह देते हैं कि उन्हें अपना समय़ खेल तमाशा या अधिक मनोरंजन में नहीं विताना चाहिए । आज के समय की कब बात करें तो क्रिकेट आदि के साथ रील आदि देखने में भी समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए । इससे समय का नुकसान होता है और एक विद्यार्थी को अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए ज्यादा से ज्यादा समय अपने पढने -लिखने में देना चाहिए ।
निद्रा– एक विद्यार्थी की सबसे बडी दुश्मन होती है अतिनिद्रा। अति निद्रा आलस्य का मूल है और यह एक विद्यार्थी के लिए अहितकर भी है । और यदि विद्यार्थी सारे समय सोता ही रहेगा तो फिर पढेगा कब ।
चापलूसी– आचार्य चाण्क्य एक विद्यार्थी को चापलूसी के भाव से दूर रहने की बात भी कहते हैं । चापलूसी का भाव मन में आते ही स्वाभिमान मर जाता है और एक मनुष्य के लिए स्वयं के सम्मान से बढकर कुछ नहीं होना चाहिए । चापलूसी में सदैव शोषण की संभावनाएं अधिक अधिक बनी रहती है । और ऐसे में आत्म सम्मान के साथ शोषण के साथ बहु कीमती समय का नाश भी हो जाता है । इसलिए आचार्य चाणक्य एक विद्यार्थी को चापलूसी भाव से भी दूर रहने की बात करते हैं ।
अन्यत्र भी संस्कृत के एक श्लोक में विद्यार्थयों का लक्ष्ण बताते हुए रचनाकार ने लिखा है कि—
कागचेष्टा बको ध्यानम् स्वान निद्रा तथैव च ।
अल्पाहारी गृह त्यागी विद्यार्थी पंच लक्षणम् ।।
अर्थात एक विद्यार्थी को किसी भी विषय को कौए की तरह सजगता से देखना चाहिए और बगुला पक्षी की तरह ध्यान मग्न होकर विषय को पढना चाहिए ।कुत्ते की तरह कम से कम नींद लेनी चाहिए । और जरूरत के हिसाब से ही भोजन करने वाला होन चाहिए । गृह का मोही नहीं होना चाहिए क्योंकि ज्ञान तो तपस्या और विचरण से ही बढता है ।
आचार्य चाणक्य की ए बातें विद्यार्थियों के हित की हैं । जिसे विद्यार्थियों को सदैव याद रखते हुए इनका पालन करना चाहिए । श्लोक का केंद्रीय भाव है कि विद्यार्थियों के लिेए उपरोक्त कथित आठों बातों में समय बहुत अधिक लगता है । अतः इससे दूर रहना चाहिए ।
लेखक– हिंदी परास्नातक व हिंदी परास्नातक पत्रकारिता में डिप्लोमा दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली से हैं ।