अरुणाकर पाण्डेय
गांधी जयंती को हम एक उत्सव की तरह देखते हैं और इस दिन अक्सर उन्हें बहुत आदर के साथ भारत और विश्व में याद किया जाता है । इससे कोई विरोध नहीं है क्योंकि यदि हम उन्हें साल के बाकी दिनों में अगर भुलाए रखते हैं तो कम से कम यह एक अवसर है कि हम उन्हें अनिवार्य रूप से याद कर सकते हैं ।
लेकिन यह सोचने की आवश्यकता है कि जैसे जैसे हम भविष्य की यात्रा कर रहे हैं,वैसे हमारे लिए वे और कठिन हो जाते हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि उन्होंने एक सरल जीवन की प्रस्तावना की थी और उसी के आधार पर पाश्चात्य सभ्यता से लोहा लिया था । पर हमलोग आज सरल जीवन के बजाय संश्लिष्ट जीवन जी रहे हैं जो टेक्नोलॉजी पर निर्भर होती चली जा रही है । यह एक बहुत बड़ा विरोधाभास हमारे और गांधीजी में आज हो गया है ।
एक उदाहरण से बात और स्पष्ट होगी। गांधीजी ने स्वच्छता का अनमोल पाठ पढ़ाया जिसे आज भी बहुत शिद्दत से सरकारी और निजी संस्थानों में दोहराया जाता है । लेकिन यदि हम सोचे तो पता चलता है कि हमारी स्वच्छता का आधार कूड़े की सफाई है लेकिन यह नहीं है है कि हम अपने उपभोग के तरीके पर लगाम लगाकर उसे बदल दें । अर्थात कूड़ा पैदा होने की प्रक्रिया पर ध्यान नहीं है बल्कि सिर्फ उसे किसी तरह निपटाने का खेल हम खेल रहे हैं। जबकि गांधीजी की सभ्यता की समझ यह सिखाती है कि हम कूड़े का क्या रचनात्मक उपयोग कर सकते हैं ! हमने तो कूड़ा साफ करने के लिए भी मशीनों का कूड़ा बना रखा है जिसका परिणाम दिल्ली के खोड़ा जैसी जगहों के रूप में देखा जा सकता है । इसके साथ ई कचरा जैसी नई समस्या भी अब हमारे सामने उत्पन्न हो चुकी है ।
यहां से सोचे तो हमें वापस हिंद स्वराज पढ़ने,समझने और विचार करने की आवश्यकता अब पहले से अधिक है । बल्कि जितना हम भारत के लोगों को उसकी आवश्यकता है,उससे कम पाश्चात्य जगत को नहीं ।
इसलिए गांधीजी तक लौटने के प्रयास होने चाहिए,सिर्फ उनकी जयंती से हम उत्सव तो मना सकते हैं लेकिन बात इससे आगे कैसे बढ़े ,इस पर संजीदा विचार होना चाहिए । लेकिन आज गांधी जयंती के बाद फिर सीधे उनकी याद तीस जनवरी को आएगी और इस बीच न जाने हम कितना उनसे दूर जा चुके होंगे,यह कहना संभव नहीं। लेकिन इसलिए यह कहना गलत नहीं लगता कि गांधीजी हमारे लिए और कठिन होते जा रहे हैं।
बहरहाल,गांधी जयंती और लालबहादुर शास्त्री जी की जयंती पर सबको हार्दिक शुभकामनाएं !
लेखक – दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली में हिंदी के प्राध्यापक हैं।