अरुणाकर पाण्डेय

एक साधारण नागरिक जो एक छोटी सी प्राइवेट नौकरी करता है,उसकी शिक्षा का स्तर क्या होना चाहिए, बल्कि यह प्रश्न यह होना चाहिए कि उसकी समझ सामान्य विज्ञान की कैसी होनी चाहिए ?
इस प्रश्न को उठाने का संदर्भ यह है कि गत शनिवार की रात दिल्ली में एक लॉजिस्टिक कंपनी में काम करने वाले तीन कार्मिक जिनमें से दो की उम्र 44वर्ष और एक की उम्र 26 वर्ष थी, अंगीठी के धुंए से संसार छोड़ चले। 26 वर्षीय व्यक्ति बच गया है लेकिन बाकी दोनों भाग्यशाली नहीं रहे । उस रात वे तीनों ऑफिस के ही एक कमरे में सर्दी से बचने के लिए अंगीठी जलाकर सो गए थे ।
इस हादसे का जिम्मेदार कौन है ? उन लोगों के परिवार पर पहाड़ टूट गया है और न जाने कब जाकर वे खुद को सम्भाल पाएंगे !
यह खबर अंग्रेजी अखबार के चौथे पन्ने पर जगह पा गई लेकिन वे लोग सैफ अली खान जितने महत्वपूर्ण नहीं थे क्योंकि ऐसी खबरों को हाइलाइट नहीं किया जाता और न ही वो किसी संपादकीय के लायक समझी जाती।
ऐसी खबर जिसमें शिक्षित नागरिकों में वैज्ञानिक दृष्टि का अभाव स्पष्ट दिखता है और मृत्यु भी हो गई है,कोई मूल्य नहीं रखती । लेकिन कल्पना कीजिए कि यह खबर हमारी मुख्यधारा की मीडिया के पटल पर खूब दिखाई जाए और विभिन्न विशेषज्ञों पर उस पर कई दिन बहस कराई जाए तो क्या सामाजिक चेतना में कोई संवर्द्धन किया जा सकता है । अब भी इस पर कोई ध्यान नहीं दिया जाएगा क्योंकि हम जानते हैं कि यही इसकी नियति है । क्या कोई विज्ञापन इसके लिए बनेगा कि कृपया बंद कमरे में अंगीठी जलाकर न सोएं,यह जानलेवा साबित हो सकता है ?
कहीं से आवाज आ रही है कि नहीं नहीं नहीं ……और अंतर्मन में एक शून्य बन जाता है !
लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक हैं।