रमेश कुमार मिश्र

मैं सस्ता सा आशिक तेरा तू महंगी महबूबा है.
तेरा खर्च मैं कैसे उठाऊं सोच में ए दिल डूबा है.
बापू से जब पैसे मांगू मुझको आंख दिखाता है.
मजबूरी भी बहुत है घर में दो ही जून का आंटा है.
बापू जितना वेतन पाते उससे अधिक महंगाई है.
बहन की फीस जमा होती और महंगी माँ की दवाई है.
तेल चढ़ा ऊपर की ओरी महंगी दाल कटोरी है.
घी की बात करो मत यारों वह तो महंगी तिजोरी है.
लेखक- परास्नातक हिंदी व पी. जी. डिप्लोमा हिंदी पत्रकारिता दिल्ली विश्वविद्यालय से हैं ।