रमेश कुमार मिश्र
सूरज अस्ताचल की ओर जाते हुए अपना प्रकाश धीरे -धीरे कम करता हुआ, ताप रहित पीली रश्मियों से पर्वतों के हरित प्रदेश पर अपनी छटा विखेर रहा था । संध्या के आगोश में सारा जहां समा रहा था । गांव में एक घर है जिसकी दीवारें पुरानी मिट्टी की बनी हुई हैं। ऐसा बाहर और भीतर दोनों तरफ से दिखायी दे रहा था ।अभी- अभी बारिश हुई है। बादल छंट चुके हैं । गांव भर के चूल्हों में जलाए हुए कंडे की आग धीरे-धीरे सुलग रही है। सारा गांव धूंए से आच्छादित हो रहा है। ऐसा लगता है दुबारा बारिश करने के लिए काले मेघ अपनी छटा विखेर रहे हों। श्यामकुमार के पहुंचते ही दोनों बच्चे जो बाहर खेल रहे थे, श्यामकुमर द्वारा दिया गया मिठाई का डिब्बा लेकर दौडते हुए घर के अंदर च गए और मां से बोले कि बाहर कोई आया है । घर में जाने के बाद एकाएक बच्चों के कहकहाने की आवाज शांत हो गयी। सारा वातावरण वैसे ही शांत हो गया जैसे रेलवे प्लेटफार्म से रेलगाडी के गुजर जाने के जाने के बाद नीरवता व्याप्त हो जाती है। रह जाता है तो सिर्फ बचे यात्रियों का इंतजार जो अगली गाडी आने का इंतजार कर रहे होते हैं।
दरवाजे के बाहर दो टूटी एवं उखडी हुई चारपाई पड़ी है । श्मयाकुमार बार-बार दरवाजे के तरफ देखे जा रहे थे, लेकिन कोई भी घर से बाहर नहीं आया ।थोडी देर बाद दोनों बच्चे मुंह लटकाए घर से बाहर से आते हैं ।दोनों बिना कुछ बोले लंबी-लंबी सांस ले रहे हैं । श्याम कुमार दोनों बच्चों को पास बुलाते हैं । उन्हें थपकी देकर कुछ बहलाने की कोशिश में उनके हाथ एवं गाल चूमते हैं। उनके गालों पर पुनः हाथ फेरते हैं तो देखते हैं गालों पर अंगुलियों के निशान पडे हैं। बच्चों के हृदय एवं अंग यूं ही बहुत कोमल होते हैं और उस पर पडे़ तमाचे का असर और चिन्ह उनके गाल और हृदय दोनों पर निशानी के रूप में अंकीत हो जाता है जो कई बार ग्रंथि बनकर कठोर हो जाता है ।बेचारे फूल जैसे बच्चे क्या मार खाने के लायक हैं ।इस कदर तो बच्चे हठी और जिद्दी हो जाते हैं । बच्चे तो मूर्तिकार के उस मूर्ति जैसे हैं जो हाथ से सहलाने से सुंदर मूर्ति का रूप ले लेते हैं,और यदि मूर्तिकार जरा भी असावधानी बरत दे तो मूर्ति बेढंग होकर देवत्व विहीन हो जाती है।
दरवाजे के पास खड़ा कोई बच्चों को अपने पास बुलाने का हाथों से ईशारा कर रहा है । दोनों बच्चे अनमने भाव से उधर देखते हुए भी नहीं देखने का नाटक कर रहे हैं । थोडी देर बाद उनमें से एक बच्चा घर के अंदर चला जाता है और दूसरा श्यामकुमार के पास खड़ा सिसकियां लेने लगता है ।
कुछ देर बाद घर के अंदर से एक बच्चा लड़खड़ाता हुआ दरवाजे के बाहर आ रहा होता है, कि प्रेम कुमार दौड़कर उसके हाथ से कटोरी और गिलास दोनें ले लेते हैं । बाहर लगे नल से गिलास में पानी भरकर चारपाई के पास आकर खडे- खडे़ कुछ सोचने लगे…….. ।
सहसा एक मोटर साइकिल की लाइट चमकती है । शायद कोई आ रहा है….. । बच्चों में कोई हरकत नहीं वे जहां खडे़ थे वहीं खडे़ रहे ।मोटर साइकिल दरवाजे पर आकर रुकी और परिवार के मुखिया गिरधर ने चाचा मोटर साइकिल से उतरते हुए पूछा कि कौन श्यामकुमार ..कब आये ….?
श्यामकुमार ने कहा चाच प्रणाम बस अभी अभी….
कुछ चाय पानी मिला कि नहीं ? श्याम बाबू खानदानी कहावत है कि अतिथि देवो भव ! अउर देशी कहावत इ है कि आवा बइठा पीया पानी । जे ससुर अपने दरवाजे पे आवै वाले के एतनौ न कइ पावै उ मनई नाय पशु है ।
का हाल – चाल बा घर परिवार कै।
जी आपके आशीर्वाद से सब ठीक बा । परिवार मजा में है।
अरे श्याम बाबू आप त मजे में हैं जवन कि परिवार की कमाई पर ऐश करत हयन। पर कुछ लुटौतो ना हया। हमरे एक सपूत बाटैं जब देखा तबै झगड़ा – लड़ाई में उलझि सब बारंबाद करै पै लागल हैं । शराब, गांजा, चरस त एनके जिन्दगी में अइसे शुमार बा जइसे दूध में पानी । श्याम बाबू हम त अपना कहत रहिं गइलीं तोहार त पूछबै ना कइलीं । बतावा कइसे एहर कै राह भुला गइला ।
श्यामकुमार बोले चाचा बस इधर से ही जात रहली त बारिश बहुत तेज होए लागल त सोचलीं कि श्यामली कै घर इधरै है रुकि जाईं।
गिरधर चाचा बोले उ त ठीक बा बहुत अच्छा कइला बतावा आवत कहां से बाटा ।
चाचा कचहरी गइल रहलीं हैं ।
अच्छा मुकदमा चलत बा का ।
हां चाचा जब तक पडोसी के पछाड़ न लगाइ देब तब लें चैन न लेब।
गिरधर चाचा कहनै कि श्याम बाबू गांव अब गांव न रहि गइल अब त हर आदमी एक दूसरे कै जान कै दुश्मन हो गइल बा । अरे पहिले त दुसरे से जान बचावै कै पड़त रहल अब त अपनै खतरनाक हैं । श्याम बाबू इ कोरट कचहरी बहुत खराब चीज बा कुछ काम-धाम करा और परिवार के विकास के बारे में कुछ सोचा ।
इस पूरे वार्तालाप के दौरान श्यामकुमार की निगाहें बार- बार उस दरवाजे की तरफ अकस्मात चली जातीं ।मानों कुछ ढूंढ रही हों । इसी बीच गिरधर चाचा ने पूछा कि बच्चा पढाई- लिखाई का चलत बा । श्यामकुमार बोले ए चाचा पढाई त तबै छुटि गइल जब पिता जी का देहावसान होइ गइल । अब त पड़ोसिन के साथ इहै कोरट- कचहरी सब चलत बा ।
इसी दौरान श्यामकुमार की निगाह दरवाजे की तरफ पड़ गयी, एक चेहरा परिचित चेहरे जैसा मालूम पड़ा है। कारण कि प्रकाश मद्धिम है। बिजली भी नहीं थी जिसके कारण लालटेन ही जल रही थी । गिरधर चाचा कुछ कहे कि तभी श्याम कुमार अचकचा गए। चाचा आप कुछ कहे हैं का । चाचा ने कहा कि श्याम बाबू बइठा तनी हम पांडेय जी के दुआरा से आवत हईं। चाचा राम-राम करते चले गय़े…
एक कृषकाय़ नारी घर के दरवाजे से बाहर आकर श्यामकुमार पर बरस पड़ी, बोली क्यों श्यामकुमार अब यहां क्या लेने आए हो ।श्यामकुमार पर जैसे बिजली का बज्रपात हो गया हो, वह हक्का-बक्का उधऱ देखने लगे । ऐसे शब्दों की आशा तो श्यामकुमार अपने लिए श्यामली से कभी किए ही नहीं थे। श्यामकुमार संभलते हुए बोले अरे नहीं मैं तो बस इधर से जा रहा था तो मिलने चला आय़ा । अब मिलने से क्या होगा । हमारी जिंदगी को नरक बनाने में सबसे ज्यादा तुम्हारा हाथ है। आज हम कैसे जी रहे हैं,तुम्हें का मालूम श्याम बाबू उ रोज-रोज ताना मारते हैं कि तोहार बाप-भाई केवल एक गाडी दहेज में दिया है। खाए अउर रहै खातिर पइसा कै भी जरूरत होय़ ल। तूं त इ परिवार के जानत रहला ,इ सब पइसा कै भूखल हैं, हमार शादी इहां काहे करा दिहला। अगर तू हमसे शादी कइले होता त हमैं आज इ दिन न देखै क पड़त ।श्याम बाबू तुम का जानो हमार जीवन त दुइ पाट में पिसात बा इहां ।लेकिन तोहार बुझदिली हमार जिंदगी की सांसत बनि गइल ।दुनिया में प्रेम तबै करै कै चाही कि जब वकरा के अंत तक निभावै कै जिगरा होय़। तोहरे साथे बितावल एक-एक पल अब हमरा के भुलाबै न करत । लेकिन श्याम बाबू आप त मर्द हैं आप के लिए इ जज्जबात कै का मतलब है। पुरुष त प्रेम कै मतलब सिर्फ शरीर की भूख समझत हैं । हम स्त्री जाति के का कहीं एक मजबूत ठिकाना पावै के चक्कर में तुम्हार जइसन युवक से चिपककर अपना सबै कुछ गंवाई देती हैं । बाद मे घर परिवार की इज्जत का बिगुल दोनों तरफ बजता है जिसमें तुम जइसन मर्द हमेशा असफलै रहैं न। हां इ जरूर है बार कि एक के गइले के बाद दूसरि तथा दूसरि के गइले के बाद तीसरि मन बहलावै कै खातिर मिलिहि जाइनी । श्यामबू स्त्री त अइसन प्रेम कै धागा है , जो एक जगह से टूटने के पश्चात फिर जुड़ने के प्रयास में भी गांठ नहीं छोड पाती है। फिर वह अनायास भाव से अपनी जिंदगी जीती है। जिसमें वह न त अपने परिवार की हो पाती है और न ही उसकी जिसे छोड़कर जाती है।
सारा बलिदान स्त्री दे, और पुरुष …..। दहेज न मिला तो दोषी स्त्री, प्रेम किया तो दोषी स्त्री ,पुरुष का कुछ भी दोष नहीं क्या ? बलिदान करने को तैयार स्त्री को बदले में प्रेम का अधिकार क्यों नहीं मिल पाता । शराबी पति स्त्री के ज्जबातों की कदर क्या जाने । स्त्री का जीवन तो ज्जबातों की झीनी चादर का हिस्सा बनकर रह जाता है । जहां एक तरफ इज्जत बचाना मजबूरी है तो दूसरी तरफ बदन इससे बदन न ढक पाने की कवायद । तुम का जानोगे श्याम बाबू दो बच्चों के बाद भी आज तक इस मन और शरीर से मैंने तुम्हें ही…..
यह तो गलत है शयामली अब जिसकी हो चुकी हो बस उसके साथ तन-मन से रहो ।
श्याम बाबू रहना उसको कहते हैं जहां रहने का मन करता हो वहां नहीं जहां पगहा से बांध दिया गया हो ।
श्याम ने कहा फिर भी तो सामाजिक मर्यादा के नाते तो …
रहने दो श्याम बाबू यह प्रेम की टीस है अब जो तुम्हें महसूस न होगी अब तो यह मेरे जीवन की साथी है और साथ ही जाएगी…. उधर से राम-राम करते गिरधारी चाचा आते दिखे तो श्यामली रोती हुई घर के अंदर चली गयी । गिरधारी चाचा ने कहा कि श्याम बाबू अब भोजन का वक्त हो गया है भोजन हो और आप थके भी होंगे उसके बाद आराम करें….
जी चाचा जी कहकर सब साथ में भोजन पर चले गय़े……
रचनाकार – दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी में पी .जी व हिंदी पत्रकारिता में पी. जी डिप्लोमा हैं