सात फेरे

कहानी : सात फेरे

ठाकुर प्रसाद मिश्र

पंडित सदानंद एक अच्छे संयुक्त परिवार के मुखिया होने के साथ ही ग्रामीण क्षेत्र के एक इंटर
कॉलेज के प्राचार्य भी थे.तीन भाइयों के परिवार में दोनों छोटे भाई ऊंचे सरकारी वहदे पर थे,
और पंडित जी के दोनों बेटे भी अच्छे सरकारी पदों पर नौकरी पा गए थे. जमीन जायदाद अच्छी
थी ग्रामीण क्षेत्र में अच्छा प्रभाव था.
आज पंडित जी शहर से अपनी बड़ी बेटी के साथ घर आ रहे थे.स्टेशन पर ट्रेन से उतरते ही
उनकी नजर अपने मित्र के भांजे सुधीर पर पड़ी वे चहकर बोल पड़े, अरे सुधीर बेटे! तुम कहीं की
तैयारी में हो क्या ? जी प्रणाम थोड़ा काम है लखनऊ जाने वाली ट्रेन का इंतजार है.पंडित जी
आगे बढ़े तो सुधीर ने देखा पंडित जी के पीछे एक सुदर्शना किशोरी एक हाथ में एक फैशनेबल
छोटा बैग तथा दूसरे हाथ में आधुनिक मोबाइल फ़ोन लिए चल रही थी.पंडित जी के संबोधन को
सुनकर उसने सुधीर की तरफ पहले तो अपरिचय के भाव से देखा फिर सुधीर के सजीले
व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना न रह सकी, और उसने पूछ ही लिया पापा ये कौन हैं किसी
रिश्ते में है क्या.?हाँ हमने तो तुम दोनों का परिचय ही नहीं कराया नैना ये मेरे परम मित्र
पंडित श्रीधर का भांजा सुधीर और सुधीर बेटा ये मेरी बेटी नैना है. इस साल इसने गृह विज्ञान
से एम. ए. किया है और तुम क्या कर रहे हो,? जी मैंने भी इस साल हिंदी से प्रथम श्रेणी में
एम.ए. किया और जाब की तैयारी का विचार है. बहुत अच्छे बेटा शाबाश विश यू गुड लक. उसी
समय पंडित जी का लड़का आकर बोला पापा चलिए गाड़ी उधर खड़ी है.पंडित जी ने बेटे से
सुधीर का परिचय कराया और बोले अच्छा बेटा चलते हैं फिर आगे बढ़ गए.
घर पहुंचते ही नैना की माँ दौड़कर अपनी बेटी से लिपट गयी बोली आ गई मेरी बेटी रानी बेटी
पांच छ: महीने बाद लौटी ह, तुझे देखने के लिए आंखें तरस रही थी पांच छह महीने बाद लौटी,
वही दिवाली पर दो 4 दिन के लिए आई थी. इतनी आशक्ति बेटी से मत पालो शालिनी याद
रखो नैना अब शादी के योग्य हो गयी लड़की पराया धन होती है जिस दिन उसकी शादी होती है
उस दिन से रिश्तेदार बन जाती है, फिर कब अपने घर से फुर्सत मिलेगी कब आएगी, वह तो तब
अपना संसार निर्मित करने में जुट जाती है माँ ने भी देखा नैना में अब काफी बदलाव आ गया
था. उसका भरा- भरा शरीर सुंदर नारी छवि उपस्थित कर रहा था .घर पर हर कदम पर संकोच

करने वाली नैना अब काफी चपल एवं मुखर हो चुकी थी.शहर में रहने के कारण उसका गोरा रंग
और निखर गया था. कुल मिलाकर वह सुंदरता की मूर्ति लग रही थी.
समय पाकर पंडित जी की पत्नी बोलीं परिवार है तो मोह माया लगी ही रहेगी, लेकिन अब मैं
सोच रही हूँ कि लड़की पूर्ण रूप से विवाह योग्य हो गयी है कोई अच्छा घर बार देखकर उसकी
शादी कर ही देनी चाहिए. साल दो साल में इसकी छोटी बहन भी इसी जैसी हो जाएगी. अतः अब
आप हित मित्र नाते रिश्तेदार से बात चलाकर कोई अच्छा रिश्ता तलाश कर इसकी शादी कर
दीजिए. क्योंकि उम्र बीत जाने पर शादी का रोमांच समाप्त हो जाता है फिर सादी एक फर्ज
अदायगी भर होकर रह जाती है. हाँ शादी तलाशने में इतना ध्यान रखना है कि बाकी हर चीज़
में भले ही कोई कमी हो लेकिन लड़का लड़की के योग्य हो.
क्या तुम समझती हो हमारी नैना का भाग्य कमजोर है. आप तलाशने की बात कर रही है
लड़का तो राह चलते हमें मिल गया है. सुन्दर पढ़ा लिखा सजीला नौजवान यदि सब सहमत हों
तो लड़का हमें घर बैठे ही मिल गया. तो इसमें सहमत होने की कौन सी बात है.जब आपको
पसंद है तो सबको पसंद है. अरे नहीं भाई अब ये नया ज़माना है लड़कों की ओर नैना की सहमति
भी जरूरी है. वैसे नैना और सुमित ने भी उस लड़के को कल ही स्टेशन पर देखा था.ऐसा कहकर
उन्होंने नैना और सुमित को पास बुलाया दोनों आये तो पंडित जी ने कहा ये बताओ कल स्टेशन
पर मिलने वाला युवक कैसा लगा.उसके बारे में तुम लोगों की क्या राय है? दोनों बोल उठे देखने
सुनने और सलीके में तो उसमें कोई कमी नहीं दिखाई पड़ी. क्या बात है उसकी चर्चा कैसे चल
पड़ी? सुमित बोला तो पंडित जी ने कहा मैं सोच रहा हूँ क्या वह नैना के लिए सही बर होगा
क्योंकि इस साल नैना की शादी करनी है. क्यों नैना लड़का तुम्हे पसंद है.स्टेशन पर मिलने के
बाद वह युवक नैना को बार -बार याद आ रहा था उसे ऐसा लगता था जैसे वह नैना से बहुत
पहले से परिचित हो. नैना ने पिता की तरफ सिर नीचे करके कहा पापा जो आपको पसंद है वह
मुझ को भी पसंद है.
अपने मित्र श्रीधर यानी सुधीर के मामा के साथ जाकर पंडित जी ने शादी तयं की. यद्यपि
सुधीर का परिवार मध्यम वर्गीय पुरानी रहन -सहन का था.कोई बाहरी आमदनी न होने के
कारण कोई चकाचौंध तो नहीं थी, लेकिन खेती किसानी अच्छी होने के कारण किसी जरूरी वस्तु
का खास प्रभाव नहीं था. निश्चित तिथि पर सुधीर के पिता बारात लेकर पहुंचे तो पंडित सदानंद

का घर दरवाजा रहन-सहन देखकर सोचने लगे मेरी तो इनमें कोई तुलना ही नहीं है. यहाँ शादी
का संबंध ठीक नहीं रहा हमारी इनकी आर्थिक स्थिति में जमीन आसमान का अंतर है. ब्याह, बैर,
और प्रीति समानता में होनी चाहिए लेकिन यहाँ तो सब उल्टा है.पता नहीं हमारे घर पर लड़की
जाने पर उसका कैसा व्यवहार होगा? खुशी के इस मौके पर सुधीर के पिता गंभीर विचारों में
निमग्न थे. उसी समय विवाह का बुलावा आया विवाह खूब धूमधाम से हुआ. पंडित सदानंद ने
समधी का बढ़ चढ़ कर सम्मान किया. कहीं भी उन्हें हीन भावना का शिकार नहीं होने दिया
क्योंकि वे सुधीर के पिता की स्थितियों को समझ रहे थे?
दूसरे दिन विदा होकर नैना अपनी ससुराल आ गई एकाएक ऊंची रहन सहन से हटकर सामान्य
गृहस्थ परिवार में पहुंचने पर उसे एक झटका लगा. लेकिन जिस गांव से वह आई थी उस गांव
में उसकी बिरादरी के लोगों का घर परिवार भी लगभग उसी तरह का था. अतः उसने अपने मन
को समझाया और यह सोचकर कि सुधीर की नौकरी लगते ही वह शहर चली जाएगी मन को
समझा कर वह उस स्थिति से बाहर हुई. दुल्हन देखने गांवों की औरतों का आना- जाना शुरू हो
गया था. देखने वालियों के द्वारा अपनी ओर सुधीर की जोड़ी की और अपनी सुंदरता की प्रशंसा
सुनकर उसे बहुत अच्छा लग रहा था हर तरह से स्वजनों की आवभगत से वह अभिभूत हो रही
थी. एक दुल्हन के रूप में ससुराल आने की सुख की अनुभूति से बार-बार रोमांचित कर रही थी.
अब उसके गृहस्थ जीवन की पाठशाला शुरू हो गई थी.चारों तरफ हर्षोल्लास था.
दस दिन बाद सारी रिश्ते की औरतें अपने घर चली गईं.अब बचा सीमित परिवार अब तो सारे
काम खुद करना था. सुधीर की माँ को सारे काम निपटा कर नई नवेली बहू का भी ध्यान रखना
था. जैसे- तैसे एक महीने पूरे हुए. अब बहू को प्रथम बार रसोई में प्रवेश करना था. मुहूर्त के
हिसाब से दिन तयं हुआ और नैना से भोजन बनाने की बात कही गई, तो वह बोली माँ जी मुझे
तो चाय बनाना तक नहीं आता. मैं खाना कैसे बनाउंगी? मेरे मायके में तो इसके लिए
नौकरानियां थीं बड़ी भाभी छोटी भाभी थी वे सब ही यह काम करती थी मैं कैसे कर पाऊंगी ये
सब?
सास बोली कोई बात नहीं बेटा हर चीज़ सीखने पर समझ में आती है.मैं तुम्हारे साथ रहकर
सब कुछ सिखा दूंगी बड़ी. मुश्किल से नैना रसोई में गई जैसे -जैसे सासु माँ बतातीं बे मन से
वैसा करने लगी.सबसे बड़ी दिक्कत की बात तब आई जब आटा गोदने की बात आई . हाथ में

आटा लिपटा देख कर वह बोली छि मेरे हाथ कितने गंदे लग रहे हैं.सास बोली बेटा ऐसा मत
कहो ये अन्न देवता हैं. इन्हीं के भरोसे जीवन चलता है सास के ऐसा कहने पर वह कुछ खींझकर
बोली तो इन देवता को आप ही संभालिये . यह कहकर उसने आटे का थाल सांस के सामने
सरका दिया,और खुद हाथ धोने चली गई. बहू का यह व्यवहार सास को पसंद नहीं आया.लेकिन
वह कुछ बोली नहीं सारा काम खुद किया.वह अपने कमरे में चली गई परिवार ने खाना
खाया.भोजन रोज़ ही की तरह था बनाने वाली रोज़ वाली की थी, लेकिन सबने समझा सब कुछ
दुल्हन ने बनाया है.
दूसरे दिन काफी दिन निकल आया लेकिन बहू कमरे से बाहर नहीं निकली. सास के जगाने पर
बोली मेरा शरीर दर्द कर रहा है.बड़ी मुश्किल से बहू ने बिस्तर छोड़ा. सास बोली बेटी हम सब
ब्राह्मण परिवार हैं, हमारे घर की नारियों का धर्म है दिन निकलने के पहले ही बिस्तर छोड़कर
नित्य क्रिया से निवृत्त होकर, स्नान -ध्यान करने के बाद अपने काम में लग जाना.इससे मन भी
प्रसन्न रहता है.और सारे कार्य भी समय से निपट जाते हैं.
मैं ब्राह्मण और शूद्र के लफड़े में नहीं पड़ती. मैं अपने हिसाब से ही अपनी जिंदगी जीती हूँ.चाहे
किसी को अच्छा लगे या बुरा. सास का दिमाग ठनका ये तो पूत के पांव पालने में ही दिखने शुरू
हो गए, लेकिन अभी नई बात है क्लेश करने से कोई लाभ नहीं. सुधीर से कहना उचित नहीं.और
यदि बात आगे बढ़ती है तो लोग मुझे ही कहना शुरू करेंगे.अकेली रह आई अब बहु का आना
उसे अच्छा नहीं लग रहा है.नई बहू को एक दो महीने भी नहीं संभाल पाई. आत: उसने निश्चय
किया किसी से कुछ कहेगी नहीं जितना खुद कर पाएगी करेगी.
दिन बीतने लगे बहू की दिनचर्या में सुधार के बदले विकार ही आता गया.जब मर्जी होती उठती
बिना नहाये धोये रसोई में घुसती.अपना नाश्ता निकाल लेती खाती भी और कमेंट भी करती क्या
फूहड़ तरीके से बना है. कोई स्वाद ही नहीं मेरा तो भाग्य ही खराब था ,जो स्वर्ग से निकलकर
नरक में आ गई. पता नहीं पिताजी ने दरिद्र सुधीर में क्या देखा जो मेरे लिए उन्हें यही मिला्
घर तो देखो प्रतिदिन झाड़ू लगाने पर तमाम धूल निकलती है.ये सिलन भरी मिट्टी की दीवारें
कितना बदबू आती है.यहाँ कोई कैसे जी लगेगा. सुधीर भी बेकार बैठा है, रोज़ नौकरी ढूंढता है,
भला गांव में नौकरी कहाँ रखी है, लगता है मेरा और सुधीर का रिश्ता ज्यादा दिन निभेगा नहीं.
कौन अपनी जिंदगी किसी के दरिद्र हाथों में सौंपकर जीना चाहेगा.इस तरह वह बड़बड़ाती उसकी

सास सुधीर की खुशी के लिए उसकी हर बात सुनकर भी अनसुनी कर देती. क्योंकि जब वह घर
पर होता तो बहू के लिए उसका कोमल हाव भाव ही देखती थी. वह हमेशा उससे स्नेह व्यवहार
करता. बहू भी जब तक वह घर पर रहता सामान्य व्यवहार ही करती. सास सोचती धीरे -धीरे
सब ठीक हो जाएगा ये एक आध बाल- बच्चे हो जाएंगे तो परिस्थितियां बदल जाएंगी.
इधर सुधीर कुछ दिन से माँ के चेहरे पर उदासी देख रहा था.उसका शुष्क व्यवहार भी उसे खल
रहा था.हर परिस्थिति में प्रसन्न रहने वाली माँ के चेहरे पर अक्सर उदासी देखकर वह सोचने
पर बाध्य हो गया कि कहीं कुछ गडबड जरूर है.वैसे वह सारा गृह का स्वयं माँ को करते देखता
किसी भी काम में नैना को हाथ बंटाते न देखकर एक दिन रात में उसने नैना से पूछ लिया,
क्या बात है नैना तबियत तो ठीक रहती है ना.मुझे क्या हुआ मैं बिल्कुल ठीक हूँ .आज तुम
मुझसे ऐसे क्यों पूछ रहे हो. जब तुम बिल्कुल ठीक हो तो घर के कामकाज में माँ का हाथ क्यों
नहीं बंटाती. नैना तमककर बोली देखो सुधीर मैं तुम्हारे घर तुम्हारी पत्नी बनकर आई हूँ,
नौकरानी नहीं सुधीर बोला ये क्या बात हुई,अपने घर पर अपना काम करना नौकरानी बनना
होता है क्या .?मेरी माँ नौकरानी है जो सब के लिए जान का खापाती है. तुम जो भी समझ लो
लेकिन है तो वे भी गांव की गंवार औरत नौकरानी नहीं तो क्या राजरानी होगी.सुधीर बोला तो
तुम्हारी माँ क्या है, वे भी तो गांव में रहने वाली गंवारिन ही तो है क्या वो वे भी नौकरानी हैं
नैना तमककर बोलीं तमीज से बात करो सुधीर. तुम्हारा माँ मेरी माँ के पांव की धोवन भी नहीं
है. गांव की गंदी गंवार इनकी तुलना मेरी माँ से मत करना वे राजरानी ही हैं.तुम्हारी माँ जैसी
फूहड़ औरतों को उनका पांव धोने का भी मौका नहीं मिलेगा.सुधीर बोला होश में बात करो
नैना.अब तुम सभ्यता की सारी सीमाएं पार गयी गयी हो.यदि मुझे तुम्हारी इन बदतमीजियों का
पता होता तो तुमसे शादी करना तो दूर तुम जैसी लड़कियों के पास भी नहीं फटकता.लेकिन जो
होना ना था हो गया मैं अब भी तुम्हारी इज्जत करने को बाध्य हूँ, क्योंकि अग्निदेव को साक्षी
मानकर सात फेरे लिए हैं. जीवनभर साथ निभाने की कसम खायी है हमारे हिंदू संस्कार में
तलाक का कोई स्थान नहीं है.और ना ही इसकी कोई व्यवस्था है.हमारी जवाबदेही सीधे देवताओं
को है.जो हुआ सो हुआ अब से विचार बदलो जो कुछ कहा हुआ है, उसे नियत का खेल मानकर
शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए सहज व्यवहार अपनाओ.
क्रोध में कांपते हुए नैना बोली मुझे उपदेश मत दो सात फेरे और संस्कार गए भाड़ में, मैं
अपना जीवन जीने का ढंग जानती हूँ, मुझे लगता है हरामजादी बुढ़िया तुम्हारी माँ ने तुम्हें

भड़काया है. जो इतनी बदतमीजी से बात करने की हिम्मत तुझ में आ गई.जैसे माँ बदतमीज़
वैसे बेटा बदतमीज.तो अब मैं तुम्हे तमीज़ सीखाता हूँ, इतना कहकर एक झन्नाटेदार तमाचा
नैना के गाल पर मारा और बांह पकड़कर झटक दिया नैना बिस्तर के नीचे गिर गई. तमाचा
खाकर नैना पहले तो अवाक रह गई फिर चीख कर बोली तुम्हारी ये हिम्मत तुम ने मुझ पर
हाथ उठाया, मैं तुम्हें इसका मज़ा चखा कर रहूंगी. सुधीर दूसरी बार हाथ उठाता उसके पहले
उसकी माँ ने दरवाजा खटखटाया जो बहू की चीख सुनकर वहाँ पहुँच चुकी थी.सुधीर दरवाजा
खोलकर बिना कुछ बोले बाहर निकल गया, और नैना अनाप -शनाप बकती रही और रोती रही, रात
भर वह सोई नहीं.
दूसरे दिन सुबह नौ बजते- बजते एक कार दरवाजे पर खड़ी देख सुधीर के पिता ब्रह्मादीन
उठकर आए और समधी जी का स्वागत गले मिलकर करना चाहे तो सदानंद जी बोले अरे ठीक
है, इस दिखावे की जरूरत नहीं.जब दिल में जगह नहीं तो दिखावे का कोई मतलब नहीं सुधीर ने
एवं उसके छोटे भाई ने दूर से ही नमस्कार किया, तो सदानंद जी बोले क्य जी औरत पर हाथ
उठाना कौन सी वीरता है.गाड़ी की आवाज सुनकर नैना एक अटैची हाथ में लिए बाहर आ गई
,और पंडित जी से लिपटते हुए बोली पिताजी मुझे लिवा चलिए.मुझे इन जानवरों के साथ अब
और नहीं रहना इस कुत्ते ने मुझे झापड़ मारा है, और चारपाई से जमीन पर पटक दिया.अब मैं
इसके और इसके परिवार के साथ एक क्षण भी नहीं रहना चाहती.अपने को कुत्ता सुनकर सुधीर
बोला ठीक है मैं कुत्ता हूँ ले जाइए इसे किसी शेर बाघ या लकड़बग्घे के साथ कर दीजिए.जो इस
की हड्डी तक चबा जाए तभी इसका दिमाग ठीक होगा ऐसी बेशर्म औरत जिसके साथ पड़ेगी
उसका जीवन नर्क हो जाएगा.पंडित ब्रह्मादीन ने बेटे को डांटते हुए कहा सुधीर तुम अमर्यादित
क्यों हो रहे हो. बहू अभी नई है किसी बात पर रूठी है धीरे- धीरे समझ जाएगी.इस पर सुधीर के
ससुर व्यंग्य से बोले यही तो इनका संस्कार है, तो सुधीर ने कहा सारा संस्कार तो आपकी बेटी
लिए बैठी है, आपके सामने भी हम लोगों के लिए स्वस्ति वाचन कर रही है.दूसरों का संस्कार
देखने के पहले ज़रा अपनी बेटी को आप कितना संस्कारित किए हुए हैं देख लीजिए, इसी बीच
नैना एक कागज का टुकड़ा सुधीर को देते हुए बोलीं ये लो मेरा फैसला पत्र, अब भूलकर भी और
स्वप्न में भी मेरे बारे में मत सोचना.यह कहकर उसने कार का दरवाजा खोला और उसमें बैठकर
बोली चलिए पिताजी इन पिशाचों से जान बचे.स्थिति को और गंभीर होते देख वे झेंप गए सारा
आक्रमण अपनी बेटी को करता देख वे उसे कुछ समझाने की कोशिश की लेकिन विफल रहे.

नैना के उग्र भाव से वे सहम गए विबसत: वे ड्राइविंग सीट पर बैठने लगे, तो पत्र पढ़कर सुधीर
निकट आकर बोला नैना सोच लो जीवन भर तुम्हारे पिता तुम्हारा साथ नहीं देंगे. काम तो अंत
में सात फेरों वाला ही आएगा.अभी क्रोध में हो क्रोध शांत होते ही तुम्हारा अमीरी का नशा भी
उतर जाएगा और हाँ अकेले तुम्हारा ही नहीं तुम्हारे सारे परिवार का. मुझे तुम लोगों की शकल
से घृणा हो गई है जबाब मिला और गाड़ी आगे बढ़ गई. गाड़ी जाने के बाद पूरे परिवार की वह
दशा थी जैसे तूफ़ान गुजर जाने के बाद सामान्य वातावरण का.कुछ देर आपस में हल्की फुलकी
बातें हुई सब अनमने ढंग से अपने काम में लग गए.
एक घंटे के बाद गाड़ी घर पहुँच गई. परिवार का ध्यान गाड़ी पर गया तो देखा गाड़ी से सबसे
पहले नैना एक अटैची लेकर उतर रही है.उसका चेहरा तमतमाया हुआ था .वह तेजी से आगे
बढी और बरामदे में पहुँच कर अपनी माँ से लिपटकर रोती रही. कुछ देर बाद सदानंद जी भी आ
गए बगल पड़ी कुर्सी पर बैठते हुए सिर नीचे कर अपना माथा पकड़ लिए.यह हालत देख नैना
की माँ और पूरे परिवार के लोग सहम से गए. किसी अनहोनी की शंका से ग्रसित परिवार पंडित
जी से हालात जानना चाहता था . नैना की माँ के पूछने पर पंडित जी ने सारी बात बताई.और
यह भी बताया कि नैना के उग्र रूप और उतावलेपन को देख और किसी से बिना कोई बात किए
नैना को साथ ले वापस आ गए्. पंडित जी की बात सुन नैना की माँ शालिनी का चेहरा लाल हो
गया. तमककर बोली आखिर इस बेशर्म लड़की ने सारे समाज के सामने हमारी मिट्टी पलीद
करवा दी. ऐसी कुल कलंकिनी यदि जन्म लेते ही मर गई होती तो आज हमें यह सब तो नहीं
सुनना पड़ता, लेकिन माँ मेरी बात तो सुनो माँ की विपरीत प्रतिक्रिया देख नैना डर कर बोली
तो, शालिनी तड़पकर बोली मर गई तेरी माँ .मेरे मुख में कालिख पोतकर मुझे माँ कहते हैं तुझे
शर्म नहीं आती. फिर बेशर्मी को शर्म कैसी? शायद तुम्हें पालने में ही मुझसे कोई चूक हो गई. जो
तुझे नारी धर्म न सिखाया दो साल शहर में रहकर गंदे दिमागों की सोच की उपज की फिल्मों
और सीरियलों को देखकर तू अपने पति परिवार का अपमान करने वाली पतिता बन गई. लेकिन
माँ उसने मुझे तमाचा मारा मुझे पलंग से नीचे गिरा दिया.नैना बोली हाँ तू तमाचा लगते ही मर
गई ना.यह तो नहीं बता रही है कि क्यों मारा? उसको बताने में तेरी जबान क्यों कट जा रही
है? बिना किसी बड़े अपराध के कोई पढ़ा लिखा व्यक्ति अपनी नई नवेली सुंदर पत्नी को क्यों
मारेगा? मैं भी एक नारी हूँ स्त्रियों के जगत की सारी स्त्रियों के मनोभाव और छल प्रपंच को
जानती हूँ ? खुलेआम अपराध करके भी कोई औरत अपना अपराध स्वीकार नहीं करती.बल्कि

सबके सामने दीन हीन बनने का नाटक करती हैं.अभी भी तेरी जुबान की कैंची थमी नहीं
है.दामाद जी को उसने उसने कह रही है.जैसे तू ने ही उन्हें पैदा किया.तू इतनी बदतमीज है मैंने
स्वप्न में भी नहीं सोचा था.
शालिनी जी को शांत कराने के भाव से पंडितजी टोकते हुए बोले अरे भाई शांत हो जाओ सुधीर
के हाथ उठाने से वह गुस्से में हैं. अब सब शांत हो जाओ हाथ उठाया यह तो याद है इसने क्या
किया इसका ध्यान नहीं? हाथ तो आप भी कई बार मुझ पर उठा चुके हैं, मैं तो घर से
निकलकर कभी नहीं गयी.आप तो आज भी मूंछ ऐंठकर घूमते है .मैंने ऐसा किया होता तो आप
पर क्या बीतती. चलो अब तो जो होना था हो गया यदि नैना वहाँ जीवन बिताने के लिए तैयार
नहीं है लिखकर दे चुकी है तो इसके लिए दुबारा सोचना ही पड़ेगा. अब जो होगा देखा जाएगा.
पिता द्वारा सहानुभूति पाकर नैना और अकड़ गई. माँ की बातों को उसने क्रोध की सनक में
उड़ा दिया.लेकिन घर के अन्य परिवार भाइयों भाभियों और बहन का माँ का उसके साथ वह
सहज व्यवहार नहीं रह गया था. जैसा शादी के पहले था उसको मान न मान मैं तेरा मेहमान
जैसा व्यवहार ही मिलता था. किसी सामान्य चर्चा को भी उसके लिए गोपनीय बना दिया जाता
था.वह जब गांव की सहेलियों से मिलती थी तो वह गर्मजोशी नहीं होती थी, अक्सर लड़कियां
अब उसे भेद दृष्टि से देखकर सामने उसकी हाँ में हाँ मिला देतीं.जाने के बाद उस पर कमेंट
करतीं. समय बीतता रहा जीवन आगे बढ़ता रहा.गांव में जब किसी लड़की की शादी होती वहाँ
सखियों का दूल्हे- दुल्हन के साथ हँसी ठिठोली नैना के हृदय में टीस भर देती, लेकिन उसका
दंभ उसे सिर नीचे करने के लिए नहीं कहता. बड़े बाप की बेटी तो वो थी ही. ब्याहता बेटियां जब
ससुराल से लौटतीं और नैना से मिलती हालचाल पूछती तो वह बनावटी ढंग से कहती मुझे शादी
से घृणा हो गई है. मैं नए युग की लड़की हूँ अपना स्वतंत्र जीवन किसी के हाथों में बंदी बनाने
को क्यों सौंपूं ? अरे मेरा शरीर नितांत अपना हैं इस पर किसी का अधिकार या अत्याचार क्यों
होने दूं. लड़कियां उससे सहमत तो नहीं होती चुप हो जातीं, है तुम लोगों को चाकरी स्वीकार है
तुम लोग करो ऐसी बात नैना कई बार कई लड़कियों से बोल चुकी थी. एक दिन उसकी एक
पुरानी सखी मायके से आ. वह नैना की बाल सखी थी.काफी दिन बाद मायके आई थी दूसरे दिन
वह नैना से मिलने उसके घर आई. नैना उससे बड़े प्रेम से मिली जब कुछ अंतरंग बातों का
अवसर आया तो उसने अपनी ससुराल की खूब बढ़ाई की, पति की भी खूब तारीफ की, तो नैना
एक लंबी सांस खींचकर बोली भाई सब का विचार अपना- अपना है . जिसे चाकरी करनी है वह

पति परिवार की चाकरी करे उनका चरणामृत ले मैं तो आज के समय की खुले विचारों की हूँ,
मेरा मानना है कि मेरा शरीर नितांत अपना है. इसे किसी के हाथों गिरवी रखकर अपनी
स्वतंत्रता का हनन क्यों करुं.?
नैना की सखी कुछ देर तो उसका मुँह देखती रह गई, फिर बोली नैना जिसे तुम दास्तां कह रही
हो उसी में तो असली सुख है.शादी ब्याह गुलामी नहीं जीवन की गाड़ी खींचने के लिए एक
अंतरंग साथी का साथ पाना है.जिससे जीवन की हर समस्या पर विचार करने का रास्ता मिलता
है.और इस दुनिया को आगे बढ़ाने के लिए उत्तराधिकारी देने का अधिकार मिलता है. तुम कहती
हो यह शरीर नितांत तुम्हारा या हमारा है तो फिर किसी अन्य से किसी प्रकार की मदद की
अपेक्षा क्यों रखते हो ? शरीर अकेला होने के बावजूद अनेक बंधनों से बंधा है. जिससे तुम मुकर
नहीं सकती हो. किसी की बेटी हो किसी की बहन हो किसी की बुआ हो किसी की बहू किसी की
पत्नी किसी की माँ होने के साथ कोई औरत अपने शरीर को नितांत अपना कैसे कह सकती हैहै.
घरेलू संबंधों से बाहर निकलकर भी सोचो तो जो कुछ आज हम या तुम जो कुछ जानते हैं पढ़े
लिखे हैं वह भी किसी अन्य से मिला है.इस संसार में तो पग – पग पर तो सब से नाता रखना
पड़ता है.बुरा मत मानना तुम्हारे समान अपने शरीर का केवल अपना मानना किसी महामूर्ख
औरत के सड़े दिमाग की उपज है. भला जब प्राकृतिक रूप से बिना दो के संयोग से शरीर ही
नहीं उत्पन्न हो सकता, तो किसी शरीर का किसी का शरीर उसका सिर्फ अपना कैसे हुआ? वही
से माँ बाप का हो हो गया.मुझे लगता है कि तुम किसी दुराग्रह से ग्रसित हो ,जो तुम्हारे जीवन
को नष्ट कर देगा.अतः मैं तुम्हारी बाल सखी हूँ तुम्हें उचित सलाह देती हूँ कि अगर कल्याण
चाहती हो तो ऐसे नकारात्मक विचार त्याग दो.यह संसार लेन- देन का किसी से कुछ पाना है तो
कुछ देने का भाव रखना ही होगा.यदि कुछ बुरा लगा हो तो क्षमा करना.मैं तुम्हारे मोह में कुछ
ज्यादा बोल गई. हालांकि सच्चाई यही है इस संसार में गुणदोष दोनों है मेरे विचार में
गुणग्राहकता ही उचित है.सखी की बातें सुनकर शालिनी जी बोल पड़ीं बेटी हमारी बेटी को
तुम्हारी शिक्षा समझ में नहीं आएगी.इसके लिए विधाता ने कानून बनाकर भेजा है. कि जिस घर
में जीवन निर्वाह की बात हो उसे अपने हाथ से जला दो. और नितनित अकेली हो जाओ.सखी ने
माँ के कटाक्ष को समझा और नैना के प्रति सहानुभूति दर्शाते हुए बोली नहीं चाची ऐसा न कहें
हमारी सखी कम समझदार नहीं है. अच्छा नैना काफी देर हो गई अब मैं चलती हूँ . उसके जाने
के बाद नैना सोचने लगी आखिर हर व्यक्ति की सोच मेरे ही प्रति खराब क्यों है.?और तो और

मेरी माँ और भाभी भी मुझमें ही कमी क्यों निकालती हैं? अपने बिस्तर पर जाकर नैना अपने
भविष्य के बारे में सोचते- सोचते सो गयी.
बाद दोपहर नैना के फ़ोन की घंटी बजी नैना उसे बरामदे में ही छोड़ गई थी. उसे सोता जान
उसकी माँ शालिनी ने फ़ोन उठाया .नया नंबर देख बोली हलो कौन बोल रहा है?आप कौन नैना
? नहीं मैं नैना की माँ बोल रही हूँ. आप कौन? प्रणाम अम्मा मैं सुधीर बोल रहा हूँ.खुश रहो
दामाजी अरे आज कैसे डेढ़ साल बाद नैना की याद आ गई और बताओ.?जी ज़रा नैना से बात
करनी है क्या तलाक वगैरह का मुकदमा दायर किया है या करना है? अरे नहीं अम्मा मुकदमे
का अधिकार तो नैना को है पर वह तो खुद संबंध विच्छेद की बात करके गयी है फिर हिंदू धर्म
जीवन साथी को तलाक देने की व्यवस्था नहीं देता.यह तो जीवन जाने के बाद ही संभव है
.लेकिन अगर नैना ने बात करने से इनकार कर दिया तो, कोई बात नहीं उसे एक खुशखबरी
देनी थी मैंने सोचा पहले उसी को दूं.ठीक है देखती हूँ, सो रही है, उसे जगाकर फ़ोन देतीं हैं .नैना
सुधीर का फ़ोन है आज डेढ़ साल बाद भी तुम्हें नहीं भूला है खुशखबरी देना चाहता है. नैना बोली
मुझे क्या खुशखबरी देगा. शादी वगैरह कर रहा होगा मेरी प्रतिक्रिया जानना चाह रहा होगा.उसकी
जो इच्छा है सो करे.अरे देख भी लो क्या कहते हैं? नैना ने कांपते हाथों से फ़ोन लिया और
साहस करके सकुचाते आवाज में बोली हैलो क्या कहना हैं? दूसरी तरफ से सुधीर की आवाज
आयी कैसी हो नैना? मैं ठीक हूँ बिल्कुल ठीक हूँ.तुम अपनी कहो अरे शादी वगैरह कहीं कर लिया
या वैसी ही हो? यह पूछने का तुमने साहस कैसे किया.मेरी मर्जी मैं तुम्हें क्यों बताती चलूं? यही
तुम्हारी खुशखबरी है अब मुझसे रंचमात्र भी उम्मीद मत करना रखो फ़ोन.अरे खुशखबरी तो सुन
लो मेरा सेलेक्शन हो गया .मैं पास के इंटर कॉलेज में ही हिंदी के प्रवक्ता पद पर चुन लिया
गया हूँ.तो मैं क्या करूँ.? तुम मेरी नौकरी के लिए ज्यादा परेशान रहती थी. मुझे तुम्हारी नौकरी
से अब कुछ लेना देना नहीं तुम्हारी खुशखबरी सुन ली अब रखो फ़ोन क्या कह कर नैना ने
फ़ोन काट दिया.
शालिनी जी दोनों की बात सुन रही थीं. उन्हें नैना का यह बातचीत का वर्ताव पसंद नहीं आया.
वे सोचने लगीं यह लड़की अपना जीवन नष्ट करके ही मानेगी, जिस परिवार का इतना अपमान
किया. समय ने उनके घावों को अवश्य भरा है. तभी तो सुधीर अपनी नौकरी की प्रथम खुशखबरी
नैना को देना चाहते थे.इसका मतलब अब भी सुधीर के मन में नैना के लिए जगह थी.जिसे
अपने मूर्खतापूर्ण हठ से समाप्त कर दिया.अब उस परिवार से फिर से जुड़ने के सारे रास्ते बंद हो

गए. परिवार वाले नैना के इस व्यवहार से काफी आहत थे. दो चार दिन तक पिता के अलावा
किसी ने भी नैना से बात नहीं की यहाँ तक कि अनजान छोटे बच्चे भी उस से कटकर निकल
जाते.
नैना के प्रति परिवार की बेरुखी देख सदानंद जी चिंतित हो गए. उन्होंने उसके लिए दूसरी शादी
किसी अच्छे परिवार में तलाशनी शुरू की. कई शादियां उन्होंने देखी भी मुँह मांगा दहेज भी देने
को तैयार थे, लेकिन लड़की छुटेला है, यह बात सुनते ही लोग शादी इसके लिए मना कर देते.
और ताने ऊपर से देते थे.पंडित जी का सिर शर्म से झुक जाता. समय पंख लगाकर उड़ ताजा
रहा था नैना के लिए उपयुक्त घर वर न मिलने से परेशान पंडितजी एक दिन पत्नी शालिनी से
बोले हमने कई अच्छे लड़कों के साथ अच्छे घरों में बात चलाई मुंहमांगा दहेज देने को तैयार
होने के बाद भी सारी शादियाँ इसके छुटेला होने के नाम पर कट गयीं. यहाँ तक कि एकाध बाल
बच्चे दार विधुर के साथ भी बात चलाई तो सीधा जवाब मिला जो अपने प्रथम पति के साथ
नहीं रह पाई वह मेरे और मेरे बच्चों के साथ क्या व्यवहार करेगी. शालिनी और सदानंद की बातें
नैना छिपकर सुन रही थी.पंडितानी ज़ोर से बोली और क्या आप सोच रहे थे.किसी भले परिवार
में किसी पतिता को स्वीकार किया जाएगा? पंडित जी नाराज होकर बोले क्या बकती हो, भला
अपनी बेटी को इतने गिरे शब्द से संबोधित करते हुए तुम्हें लज्जा नहीं आती.हमारी बेटी ने हमें
लज्जा लायक रखा कहां? आप पुरुष हैं नारी संसार की तमाम बातें आपको नहीं पता .पुरुषों की
तो मैं नहीं कहती लेकिन ऐसी औरत के बारे में नारी जगत लड़की पर पहला आरोप उसका घर
छूटने पर यही लगता है कि लड़की दुश्चरित्र होगी, क्या आप नहीं समझते कि नैना के बारे में
भी लोग की राय यही होगी.भले ही कोई आपके मुँह पर ना कहें.
माता -पिता की बात सुनकर नैना के पैरों के तले की जमीन खिसक गई .आज पहली बार
उसका हठीला घमंड टूटा और अपनी औकात का पता चला. अब उसकी सोच बदलने लगी.अब
उसे अपनी ससुराल एवं पति की याद सताने लगी वह सोचने लगी अपना घर तो उसने सचमुच
अपने हाथों उजाड़ा है.हमेशा दुलार करने वाले सास ससुर हृदय से प्रेम करने वाला पति,भाभी
कहते आगे पीछे चलने वाले देवर, ननद इन सबसे तो अपनीज्ञऐंठ में मैंने ही तो संबंध तोड़
लिए.यदि पति ने तमाचा मारा तो मैं ही कहां निर्दोष थी? कोई भी लायक पुत्र अपनी पत्नी के
मुख से माता -पिता के लिए गालियां बर्दाश्त करेगा क्या ? कतई नहीं और मुझे भी अपने पर
क्या घमंड करना था ? मेरी छोटी भाभी शादी के पहले शहर में रहीं, वहीं पढ़ी लिखी लेकिन

कितनी विनम्र माँ और पिताजी का कितना सम्मान करती हैं.निश्चित तौर पर मेरी दुर्दशा के लिए
मेरी मूर्खता और हठ ही जिम्मेदार है.भले ही पिताजी सहानुभूति और माता जी कड़वा भाव
रखती थी लेकिन हर समय सब लोग मेरे कल्याण के बारे में सोचते थे.एक मैं ही थी जो अपना
हित नहीं समझती थी. उस दिन सुधीर जी ने इतने दिनों बाद मुझे फ़ोन किया शायद मेरा साथ
छूटने के बाद पहली खुशखबरी नौकरी की मिली थी.और सबसे पहले मुझसे साझा किया अगर
दिल में जगह होती न होती तो ऐसा क्यों करते? इसी उधेड़बुन में अब नैना का समय बीतने
लगा.सोचने लगी अब कभी सुधीर का फ़ोन आएगा तो उनसे प्रेम से बात करूँगी. इतना ही नहीं
अपनी गल्तियों के लिए क्षमा मांगूंगी और यदि स्वीकार करेंगे तो सहर्ष अपने घर चली जाऊंगी.
सबके ताने यही रह जाएंगे.सब का भार उतर जाएगा ऐसा सोचते -सोचते नैना बेचैन हो जाती.
उसे हर पल अपने पति की चिंता सताने. लगी दिन बीतते रहे वो हर रोज़ सुधीर के फ़ोन का
इंतजार करती, लेकिन खुद पहल करने की हिम्मत नहीं जुटा पाती. सुधीर का फ़ोन न फिर आना
था न आया. सालों बीत गए न इधर का समाचार उधर न उधर का इधर. नैना का हर दिन
उदासी भरा बीतने लगा. उसका सुंदर चेहरा मुरझाता जा रहा था. उसकी कांति लुप्त होती जा रही
थी. उसने लौटने के दिन से सिंदूर लगाना छोड़ दिया था. अब चाहकर भी हिम्मत नहीं कर पाती
थी .किस को क्या मुँह दिखाए समझ नहीं पाती थी? अपने किए का दुष्परिणाम सामने प्रकट
होता जा रहा था.लेकिन नैना यह उम्मीद पाले जरूर थी कि कभी न कभी सुधीर मुझे फिर फ़ोन
करेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
एक दिन नैना बरामदे में बैठी विगत के विचारों में खोई हुई थी ,कि उसका भतीजा अतुल
दौड़ता हुआ आया.और बोला बड़ी बुआ जी बड़ी बुआ जी आप अपने बालों में रंग क्यों नहीं
लगाती ,मम्मी तो रोज़ लगाती हैं.यह कहकर वह पांच वर्षीय बच्चा जिज्ञासा बस नैना का मुख
निहारता रहा, नैना बच्चे द्वारा पूछे गए इस अप्रत्याशित प्रश्न के लिए तैयार नहीं थी. वह अवाक
हक्का बक्का होकर बोली किसने यह पूछने के लिए तुझे भेजा है. बच्चा बोला किसीने नहीं मैंने
मम्मी को देखा तो आपसे पूछ लिया. बच्चे की बात पर नैना संभलकर बोली बेटा वह कोई
साधारण रंग नहीं है. वह सुहाग की निशानी उसका नाम सिंदूर है. तो आप क्यों नहीं लगाती,
बच्चे की बात पर नैना बोली वे मेरे पास इस समय नहीं.वह बहुत दूर तुम्हारे फूफा के पास रखा
है.तो आप मम्मी से ले लो.नहीं बेटा सिंदूर सब का अपना अलग -अलग होता है.तो फूफा जी को
बुलाकर उससे मांग लो. नहीं बेटा वे यहाँ नहीं आएँगे. क्यों क्या वे आप से नाराज हैं? नहीं मैं ही

उनसे नाराज हूँ.लेकिन मम्मी तो पापा से नाराज नहीं होतीं. बच्चे की बात सुनकर नैना का मन
अधीर होता जा रहा था. अतः वह हाथ जोड़ती बोली अच्छा बाबा अब तू जा खेल. मेरे दिमाग का
माठा मत बनाओ.
शालिनी बेटी और पोते की बात सुन रही थी. सुधीर के प्रति बदले भावों की गवाही उसके सभ्य
तरीके से बोले गए शब्द कर रहे थे. सुधीर के बारे में उसका लहजा कठोर की जगह कोमल हो
गया था.शालिनी की आँखों से आंसू के साथ आशा की किरण जगी दिखी. उन्होंने कोमल स्वर से
पुत्री को पुकारा और पास आने पर बोलीं बेटी क्या बात है आज मैंने तेरे शब्दों में सुधीर के लिए
आदर भाव महसूस किया? तो यह केवल बच्चे को समझाने के लिए था या तेरे हृदय परिवर्तन
की शुरुआत मानी जाए. यदि ऐसा होता है तो हम तेरे पति परिवार के सामने जितना भी झुकना
होगा झुककर तुम्हें उचित सम्मान दिलाते हुए तेरा उजड़ा घर बसाने का प्रयास करेंगे. लेकिन
तुझे भी विगत की सारी बातें भूल कर इसे स्वीकार करना होगा. माँ की सहानुभूति पूर्ण शब्द
सुनकर नैना माँ की छाती से लिपटकर फूट फूटकर रोने लगीं. शांत होने पर उसके हृदय को
जलाने वाले भाव शब्द बनकर मुख से बाहर आ गए. वह बोली माँ अपराध मैंने किया तो
प्रायश्चित मुझे ही करना है. अब मैं अपने पति परिवार को पाने के लिए कोई भी प्रायश्चित
करने के लिए तैयार हूँ. इस संबंध में जितना कष्ट उठाना होगा उठाउंगी, जितना अपमान सहना
होगा सहूंगी.
पुत्री की बातें सुनकर शालिनी गदगद हो गयी. बोली बेटी आज तुमने हमारी लाज रखने का
पहला कदम उठा लिया है. तेरा हृदय परिवर्तन होने से ने हमें बड़े संकट से मुक्ति दिला दी. नैना
बोलीं माँ उस दिन आपकी और पिताजी की आपसी बातचीत ने मुझे जीवन का यथार्थ समझा
दिया.सखी की बात सुनकर भी मेरा मन कमजोर पड़ गया था. और आप दोनों की वार्ता ने मेरी
आँखों पर पड़ा अविवेक समाप्त हो गया. अब हर क्षण मुझे अपनी ससुराल का ध्यान आ रहा है.
अपने बर्ताव पर ध्यान देती हूँ तो आत्मज्ञान से हृदय जलने लगता है माँ के समझाने पर नैना
शांत हुई. आज नैना से पूरा परिवार खुश होकर उसकी तारीफ के साथ उसका सम्मान कर रहा
था. शालिनी तो जल्दी से जल्दी मिलकर पंडित जी यह सूचना देना चाहती थी.
प्रतीक्षा पूर्ण हुई, कार रुकते ही शालिनी दौड़कर दरवाजे पर आ गयीं और प्रसन्न मन से बोल
पड़ीं, आज मैं आपको एक बड़ी शुभ सूचना दे रही हूँ. और सदानंद जी के कुर्सी पर बैठते ही

शालिनी के हृदय की खुशी बाहर आ गई. उन्होंने नैना के हृदय परिवर्तन की सारी बातें बताईं.
शालिनी की बातें सुनकर पंडितजी का चेहरा गंभीर हो गया. पंडित जी को गंभीर देख शालिनी
बोल पड़ी क्या बात है मेरी नैना का हृदय परिवर्तन जानकर आपको खुशी नहीं हुई,या आपके
दिमाग में कुछ और चल रहा है
ऐसी बात नहीं है मैडम जी नैना का सुखी जीवन इस समय मेरा सबसे बड़ा लक्ष्य बन गया.
आज पांच साल हो गए काश नैना के हृदय परिवर्तन की सूचना एक सएकताह पहले मिलती अब
तो बाजी हाथ से निकल गयी है. का वर्षा जब कृषि सुखानी समय चूकि पुनि का पछतानि. अभी
आज ही सूचना मिली है कि सुधीर ने दूसरी शादी कर ली. उसके मामा श्रीधर जी परसों ही
उसकी बारात से लौटे हैं. पंडित जी की बात सुनकर खुशियों पर जैसे बज्रपात हो गया. शालिनी
तो हृदय के अंदर तक कांप उठी सारी आशाओं पर छड़ भर में पानी फिर गया पूरे घर में पुनः
उदासी छा गई.
एक सप्ताह बाद नैना के बुआ के घर से निमंत्रण आया. उसके बुआ के बेटे की शादी थी. उसकी
बुआ ने नैना और उसकी छोटी बहन मैना को एक सप्ताह पहले ही अपने घर आने का आग्रह
किया था. अकेली होने के कारण कुछ गृह कार्यों में इन दोनों लड़कियों के सहयोग की
आवश्यकता थी. नैना तो पहले ही किसी शादी समारोह में जाने के लिए तैयार नहीं थी.लेकिन
माता- पिता के विशेष दबाव में वह जाने को तैयार हुई. शालिनी जी की सोच थी कि चलो इसी
बहाने कुछ दिन नैना अपने दुखों को भूल ही रहेगी, और शादी के एक सप्ताह पहले ही उसकी
बुआ का लड़का आया और अपने साथ दोनों बहनों को लिवा गया. घर पहुंचने पर उसकी बुआ ने
दोनों का गर्मजोशी से स्वागत किया. जैसे – जैसे दिन नजदीक आने लगा नाते रिश्तेदारों के यहाँ
से कुछ औरतें और आ गईं घर में काफी चहल पहल बढ़ गयी.अक्सर शादी की तैयारी में ही सब
व्यस्त रहने लगे कभी- कभी उनमें से कोई कोई नैना पर प्रश्न करती तो उसकी बुआ संकेत से
मना कर देतीं. वे नैना के पुराने घाव हरे होने से डरती थीं. शुभ के मौके पर वातावरण में उदासी
न आए इस पर सतर्क थीं.

शादी की तिथि आई घर की सारी औरतें सज -धज कर तैयार थीं. यहाँ तक कि पड़ोस की
औरतें भी अपने औकात के अनुसार सजी धजीं बारात पहुंचाने आई थीं. लेकिन नैना ने कोई

बनाओ श्रृंगार नहीं किया वह साधारण कपड़ों में ही सूनी मांग लोगों के बीच उपस्थित थीं. नैना
शब्द शून्य सारे कार्य व्यवहार को देख रही थी. और हल पल को अपने पांच साल पुरानी घटनाओं
से जोड़कर देख रही थी. किसी खुशी की बात पर स्त्रियों का सामान्य सामूहिक हंसी भर पर भी
उसके होठों पर स्पंदन नहीं था. गाजे बाजे के साथ बारात दुल्हन के गाव के लिए प्रस्थान कर
गई. बारात पहुंचाकर घर वापस आने पर नैना की व्यथा बढ़ गई. वह सोचने लगी जिस दिन
सुधीर बारात लेकर मुझे व्याहने मेरे घर आ रहे थे. मैं दुल्हन बनने के रूप में कितनी रोमांचित
थी. विदाई के समय भी स्वजन बिच्छोह के साथ- साथ प्रीतम के मिलन का उत्साह कम नहीं
हुआ था. उसके बाद तो उसके विचारों की लड़ियां आज तक की परिस्थितियों तक पहुँच गई.
व्यथा भार से दब कर उसके अंग कांप जाते . वह सोच रही थी वही भाव उस लड़की के भी होंगे
जो कल इस घर मेँ आ जाएगी.
दूसरे दिन बहू को साथ ले बारात वापस आयी नई बहू के आगमन पर घर में उत्साह छा गया.
हर व्यक्ति खुशी चहक कर रहा था. बहू के स्वागत के सारे क्रियाकलापों को देखकर नैना अपने
ससुराल आगमन के समय की परिस्थितियों को याद कर उसमें खोई थी .उसी समय उसकी
छोटी बहन मैनआ आकर बोली दीदी यहाँ क्या कर रही हो यहाँ . चलो दुल्हन देखो कितनी सुंदर
है. नैना की तंद्रा टूटी और गंभीर होते हुए बहन के साथ चली गई. गांव की औरतें भी दुल्हन
देखने पहुँच रही थी. नैना के मन में दुल्हन देखते ही एक हूक सी उठी और सोचने लगी, कभी मैं
भी इतनी सुन्दर लग रही थी . इसी दुल्हन की तरह ही हमारे अपने जोड़े की भी सब तारीफ कर
रहे थे.
चार दिन बाद ही बहू के रसोईघर में प्रवेश करने की तिथि आ गई. दुल्हन ने प्रातः स्नान के
साथ अपनी दिनचर्या शुरू की. लड़की गृहकार्य में दक्ष थी.सास को ज्यादा कुछ बताने की जरूरत
नहीं पड़ी.उसके बनाए भोजन की लोगों ने तारीफ की और नेग नकद भी दिए. नैना बहू के द्वारा
किए जा रहे कार्य से शर्मिंदा थी. उसने सोचना शुरू किया यहीं से मेरी जडता ने मेरे जीवन को
नर्क बनाना शुरू किया,और आज मैं इस हालात में पहुँच गई. नवागता के व्यवहार के प्रहार को
सह नहीं पा रही थी.उसका संताप उसे बार- बार बिन बात करा दो नैना ने फ़ोन बुआ को थमा
दिया. वह भाई से बोली भैया केवल 15 दिन और, अपने पास घराने में लड़की की शादी है.आज
से मात्र बारह दिन शेष हैं मजबूर कर रहा था

एकाएक फ़ोन की घंटी बजी नैना के पिता बोल रहे थे वहाँ का कार्य संपन्न हो गया है, मैं
दोपहर बाद तुम दोनों को लिवाने आ रहा हूँ. तैयार रहना और हाँ अपनी बुआ को अभी जाकर
बता दो बात करा दो. नैना ने फ़ोन बुआ को थमा दिया. वह भाई से बोलीं भैया केवल 15 दिन
और अपने पास घराने में लड़की की शादी है. आज से मात्र 12 दिन शेष हैं . ये दोनों भी शामिल
हो जाएंगी और अभी हमारी बहू भी नयी- नयी आई है,इन दोनों के साथ वह खुशी से रह भी
लेगी. सदानंद जी मान गए. नैना प्रतिदिन नई नवेली बहू के व्यवहार से कुछ न कुछ सीखती
रहती थी. सास -ससुर का सम्मान घर के हर सदस्य का स्नेहिल सम्मान शीघ्रता से सारे
गृहकार्य को निपटना. सोचती यही सब मैं उस समय नहीं कर पाई, और आज जब करने का भाव
हृदय में आया तो हाथ से अवसर ही चला गया.सास द्वारा बहू की बार- बार बलैया लेने पर
नैना सोचती इतना ही प्यार तो मेरी सास भी मुझे करती थी.यह तो सेवा कर के इतना प्यार
पा रही है. तो निठल्ली थी.फिर भी मेरी सास माँ मुझ पर जान छिड़कती थीं.कभी कोई कड़ी बात
भी नहीं बोलीं जबकि मैं कितना अवांछित व्यवहार उनके साथ करती थी.यह सोचते ही उसका
शरीर पश्चाताप की अग्नि में जलने लगता.
पड़ोसी के घर शादी की तिथि आ गई. बारात आयी द्वारचार देखने के लिए युवतियों के सजे –
बजे झुंड के झुंड आने लगे गांव बड़ा था,और समृद्ध भी अतः दरवाजे पर काफी भीड़ लग गई
थी. पूजन प्रारंभ होने पर मोहन यादव जो अध्यापक थे और सुधीर के मित्र भी उसका हाथ
पकड़कर भीड़ से पीछे आ गए. उधर दो चार अधेड़ व्यक्ति खड़े थे मोहन बोले यार सुधीर देख
रहे हो यह गांव है या परियों का देश है.इतनी बड़ी संख्या में सुंदर युवतिया मैंने और किसी
बारात में नहीं देखी. देखिए यार मेरी इच्छा है तुम भी इसी में से किसी सुन्दर युवती को चुनकर
शादी करलो.ज्ञअब तो तुम्हारी सारी बातें पूरी हो गयी बढ़िया नौकरी भी मिल गई. घर पर कोई
कमी नहीं है. यह गांव काफी समृद्ध लगता है.अच्छी लड़की के साथ अच्छा दहेज भी मिल
जाएगा. अगर कहो तो किसी व्यक्ति से बात चलाऊँ. यहाँ काफी लड़कियां अभी कुंवारी लग रही
हैं.कोई न कोई शादी तलाशने वाला घर अवश्य मिल जाएगा.
सुधीर बोला यार क्या बात करते हो.सुंदरता भगवान की देन है,और दहेज मनुष्य का लोभ जो
किसी सभ्य समाज का कलंक है,और रही शादी की बात तो अभी इस पर विचार का समय नहीं
आया है.मैं अब शादी के झंझट में फंसने के लिए तैयार नहीं हूँ.

थोड़ी दूर पर खड़े एक बुजुर्ग इन दोनों की बातें सुन रहे थे.वे पास आकर बोले बाबू आप लोगों
का घर कहाँ है? मोहन बोले दूल्हे के पड़ोस में ही हमारा गांव है.हम दोनों दूल्हे के मित्र हैं.बूढ़ा
सहज हो कर बोला वहीं पड़ोस के गांव में हमारी रिश्तेदारियां हैं.कल बारात विदा होने के बाद
क्या आप दोनों हमारे घर पर 1 घंटे के लिए आने की कृपा कर सकते हैं? हमें आप लोगों से
कुछ जानना है. आज शादी की गहमागहमी में कोई बात हो नहीं सकती, कृपा करके हमारी भी
एक कप चाय पीते जाइएगा,वह पश्चिम तरफ जो नल दिखाई दे रहा है वही हमारा घर है. मोहन
इनकार न कर सका.बोला ठीक है दादाजी हम जरूर आपसे मिलकर जाएंगे.
उन सज्जन ने इन दोनों की सारी बाते घर जाकर अपने भाई को बताया और बोले लड़का बड़ा
सजीला जवान है. काफी पढ़ा लिखा है अच्छी नौकरी कर रहा है.अगर बात बनती है तो स्मृति के
लिए देख लो .यदि बात बन गई तो पूछना ही क्या.?मैंने उन दोनों नवयुवकों को बारात विदा
होने के बाद घर पर बुलाया है.भाई की बात सुनकर नैना के फूफा उत्साहित हो गए बोले यह तो
अच्छी बात है. अगर बात बन गई यह शादी भी इसी साल कर दूंगा,नहीं तो अगली साल तो
निश्चित ही समझो.कल कोई कुंवारा लड़का घर पर बुलाया गया है सब लोग देखे लेंगे अभी उन
लोगों को बुलवाने का कारण नहीं बताया गया.
दूसरे दिन नौ बजते- बजते दोनों मित्र पंडित अनिरुद्ध के घर पहुँच गए . आवभगत हुई
सामान्य शिष्टाचार बाद पंडित जी ने दोनों के शाम के वार्तालाप की बात चलाई और पूछा आप
दोनों में अभी किसकी शादी नहीं हुई, क्षमा कीजिएगा इसी विषय पर चर्चा के लिए मैंने आप
दोनों को बुलाया है. मोहन बोल पड़ा शक तो हमें शाम को ही हो गया था, लेकिन यहाँ आने में
हमने कोई बुराइ नहीं समझी.मैं मोहन यादव हूँ मेरी शादी वगैरह हो चुकी है.ये पंडित जी हमारे
मित्र हैं आज चार पांच वर्षों से शादी की बात से बचते आ रहे हैं.हम लोग बहुत कहते हैं लेकिन
इन्हें पता नहीं क्या हुआ है कब करेगा शादी कुछ समझ में नहीं आता.
इतने में योजना अनुसार स्मृति प्लेट में मिठाई और जग में पानी लेकर आई. फिर लौटकर
गयी तो दुबारा चाय नमकीन लेकर आई . . .बाकी औरतें दरवाजे के किवाड़ों में थोड़ी जगह
बनाकर इन नौजवानों की बातें सुन रही थीं, और उसी सकरी जगह से निहार रही थी. नैना पीछे
बैठी थी उसे इस प्रोग्राम में कोई दिलचस्पी नहीं थी. पंडित अनिरुद्ध और उनके भाई बात चलाते
हुए बोले बेटा हमारी बातों को भी कुछ ध्यान से सुन लो आखिर कहीं न कहीं शादी करोगे ही,.

हमारे बारे में जितना चाहो पता कर लो हम अपनी सख्ती से ज्यादा दहेज देने की कोशिश
करेंगे. यही जो चाय पानी लेकर आई थी हमारी पुत्री स्मृति है.गृहकार्य में दक्ष होने के साथ ही
इस साल इसका भी एमए कंप्लीट हुआ .यदि इस साल कोई बाधा हो तो अगली साल के लिए
लिखाई तो कर लेते हैं.
बहुत अनुनय विनय और दबाव के बाद सुधीर ने मुँह खोला बोले जी हमारा विवाह हो चुका है.
ये हमारा मित्र जो है यह यादव है इसे हर समय मजाक ही सूझता रहता है. सुधीर की जानी
पहचानी आवाज सुनकर नैना ने किवाड़ के माध्यम से झांका तो गंभीर मुद्रा में बैठा सुधीर का
चेहरा नजर आया. उसका कलेजा मुँह को आ गया, लेकिन अब वह पराया है यह विचार कर
काष्ठवत खड़ी रहकर उसकी बातें सुनने लगी.
सुधीर का प्रतिवाद करते हुए मोहन बोला यदि विवाह हुआ है तो भाभी को दिखाओ. अरे शादी
की बात करने पर बीवी दिखानी पड़ती है. क्या इसके लिए तो स्वीकारोक्ति ही बहुत है ?क्या
तुम्हें नहीं मालूम आज के पांच वर्ष पहले ही मेरी शादी हो गई थी . लेकिन वह शादी तो टूट गई
थी. तब से तो भाभी के बारे में तुमसे कोई चर्चा भी नहीं सुनी .फिर भी शादी हुई थी ना ,मेरे
इस जीवन की वही पहली और आखिरी शादी थी. जब वहीं नहीं सफल रही तो दूसरी शादी से
आशा कैसी ? मेरे हृदय में वही अभी तक घर करके बैठी है, दूसरी को कहा बिठाऊंगा उसकी बातें
सुनकर नैना उससे भरकर रो रही थी जब अन्य औरतों ने उसे रोता देखकर कारण जानना चाहा
तो उसने बिना किसी से कुछ कहे जोर से दरवाजे के कपाट खोले और बाहर निकलकर दौड़ती हुई
निकली और सुधीर के पैरों पर गिरकर रोने लगी. इस अकस्मात घटना से घबराकर सुधीर चौंक
कर खड़ा होते बोला अरे कौन हैं आप ये क्या कर रही हैं? मेरे पैरों पर क्यों पड़ रही हैं? नैना ने
सिर ऊपर उठा कर रोती हुई बोली सुधीर आप मुझे माफ़ कर दीजिये. मैं आपकी नैना. मैंने आपके
प्रति बड़ा अपराध किया है. अब मुझे सात फेरों का महत्त्व समझ में आ गया. मैं अपने पापों का
कैसे प्रायश्चित करूँ? बस एक सहारा आपकी क्षमा का है . नीचे देखते हुए सुधीर आश्चर्यचकित
हो गया.
बोला नैना तुम यहाँ और तुमने ये अपनी दशा क्या बना रखी है? सुधीर की स्नेहिल बातें सुन लें
न मुदित सी होने लगी. उसका बोलना बंद हो गया.सुधीर झुका और हौले से अपनी भुजाओं में
भरते हुए बोला नैना- नैना मेरी नैना ,तुझे क्या हो गया? सुधीर के नैनों से झर -झर आंसू झर

कर नैना का चेहरा भिगोने लगे.कुछ देर बाद होश आने पर नैना सुधीर के सीने से लिपट कर
रोती हुई बोली. मुझे क्षमा कर दें अब मैं आपसे एक मिनट दूर नहीं रहना चाहती हूँ.सुधीर की
सांत्वना के बाद दूर हटते हुए अवाक खड़े अपने फूफा और उनके परिवार की तरफ देखकर बोली
फूफा, यही मेरे पति सुधीर जी हैं, जिनसे बिछड़कर मैं पांच वर्षों से विरह की अग्नि में जलते हुए
अपने पापों का प्रायश्चित कर रही हूँ.
क्षण भर में सारा वातावरण आनंदमय होकर उठा नैना के पिता को सूचना भेजी गई. इधर
सुधीर ने नैना से कहा सारी इज्जत सलामत रहे, जैसे तुम घर से पिता के साथ गई थी उसी
तरह उनके साथ वापस आकर माता- पिता सच क्षमा मांग कर पुनः जीवन धारा में शामिल हो
जाओ.ऐसा कहकर सुधीर चला गया. तीसरे दिन नैना जब अपनी ससुराल पहुंची तो पंडित
ब्राह्मादीन के आंगन में खुशियों का पारावार लहराने लगा. प्रेम में प्रतीक्षा की जीत हुई.

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