रमेश कुमार मिश्र

अलख जगाओ हे! प्रहरी तुम कोई पिए न जहर शराब.
पीने वाले के भविष्य के जल जाते हैं सारे ख्वाब.
बेटी आंखें जगत निरखतीं वर्ष तीस न पीले हाथ.
पलक झुका बेटा चलता है कहते लोग पियक्कड़ बाप.
चखना देती पत्नी घुटती है छेंड़ें जिसे पियक्कड़ यार.
जर जमीन जोरू ले लेता जो मदिरा का ठेकेदार.
क्यों पीते हो धर्म पियक्कड़ जग करता तेरा उपहास..?.
शर्म हया के पर्दे फटते सिर से खोता तेरे ताज़.
तुम क्या जानो मित्र पियक्कड़ ऐसा है मदिरा व्यापार.?..
पैसे देकर तुम जिसे खरीदे बेंच रही वह तुम्हें बजार.
लेखक की कलम से….