डा. संदीप (Dr.Sandeep)
![dr sandeep](https://kahanitak.com/wp-content/uploads/2024/08/WhatsApp-Image-2024-08-12-at-11.35.11-PM.jpeg)
वो कुछ इस तरह उमड़ती घुमड़ती मेरी ज़िंदगी में आई थी
जैसे तपती ज़मी की प्यास बुझाने बादलों ने ली अंगड़ाई थी..
—
उसकी बातें मेरे दिल-ओ-दिमाग़ पर कुछ इस कदर छाई थी
जैसे शाम की धुँधलाहट में चिराग़ की रोशनी जगमगाई थी..
—
उसकी पाकीज़ा-सीरत में अलग ही रूहानियत नज़र आई थी
जैसे मोहब्बत और इबादत मेरे ज़ेहन-ओ-दिल में समाई थी..
नज्मकार -पत्रकार, लेखक, विचारक व ब्लागर हैं