चंद्रवंश के संस्थापक महाराज पुरुरुवा के पिता की कहानी

एक माह पुरुष एक माह नारी महाराजा इलimage sourcechat gpt

एक माह पुरुष एक माह नारी महाराजा इल

ठाकुर प्रसाद मिश्र

THAKUR PRASAD MISHRA

अति प्राचीन काल की बात है प्रजापति कर्दम के पुत्र महाराज इल बाहलीक देश के नरेश थे । ये परम धर्मात्मा, परम तपस्वी, परम उदार एंव परम योद्धा थे । इनके य़श का प्रकाश संपूर्ण पृथ्वी पर फैला हुआ था । एक बार महाराज इल अपनी सेना सहित वन में आखेट के लिए गये । वहां पर इन्होंने तमाम हिंसक पशुओं का बध किया । किन्तु इनके आखेट की पिपाशा शांत नहीं हुई और ये आखेट करते हुए आगे बढते गये । ए अपनी राज्य की सीमा से बहुत दूर आकर वन के उस प्रांत में पहुंचे जहां पर भगवान स्वामी कार्तिकेय का जन्म हुआ था । यह वन प्रांत भगवान भोले नाथ एवं माता पार्वती का बिहार स्थल था ।यहां पर भगवान भोले नाथ माता पार्वती को आनंद देने के लिए नारी रूप में उनकी सखी बनकर उनके साथ बिहार करते थे । जब महाराज इल उस जंगल  पहुंचे तो उन्होंने उस प्रांत को सामान्य सृष्टि से अलग पाया ।वहां पशु पक्षी अन्य वन्य जीव एवं वनस्पतियों में उन्होने पुलिंग का अभाव पाया । सब कुछ वहां स्त्री लिंग में ही था । उसे  मात्र नारी  जगत कहना अतिशयोक्ति न थी ।वन के इस चरित्र को देखकर महाराज इल अत्यंत चकित हुए ।और जब उन्होंने अपनी सेना और स्वयं को निहारा तो वे सब भी नारी रूप में परिवर्तित हो चुके थे ।यह देखकर महाराज को बडा कष्ट हुआ । यह क्षेत्र भगवान भोले नाथ का सुरक्षित क्षेत्र है ,ऐसा जानकर वे समीपस्थ भगवान भोले नाथ एवं माता पार्वती के पास गये। और अति दीन भाव से उनके चरणों में प्रणाम करते हुए उनकी प्रर्थना करने लगे । प्रार्थना से संतुष्ट भगवान भोलेनाथ ने उनसे कहा हे कर्दम पुत्र महाय़शस्वी बालक नरेश इल मैं तुम्हारी प्रार्थना से प्रसन्न हूं । तुम पुरुषत्व को छोडकर अन्य कोई भी वरदान मुझसे मांग सकते हो ।ऐसा सुनकर महाराज इल को बडा शोक हुआ और उन्होंने उनसे कोई अन्य वरदान नहीं लिय़ा अब वे माता पार्वती के पास गये और बोले हे जगत जननी हे वरदायिनी माता अब  मुझे  केवल आप ही से आशा है । आप प्रसन्न होकर मुझे मेरा पुरुषत्व वापस मिले का वरदान देने की कृपा करें ।

उनके प्रार्थना पर प्रसन्न होकर माता बोलीं हे राजन मैं तुम पर प्रसन्न तो हूं किंतु मैं तो महादेव का आधा भाग ही हूं , अतः तुम्हें जीवन के आध भाग का ही पुरुषत्व प्राप्त  करने का वरदान दे सकती हूं। आधे भाग का  अधिकार तो महादेव के ही पास है । अब तुम निश्चय करके बताओ कि तुम्हें जीवन के किस भाग में नारी और किस भाग में पुरुष रहना है । प्रसन्न होते हुए महाराज इल बोले हे माता मुझे एक मास पुरुष और एक मास स्त्री होकर जीवन विताने का वरदान दीजिए ।माता ने उनकी प्रार्थना स्वीकार करते हुए उनसे कहा कि हे राजन आप नारी रूप में  संसार की सारी स्त्रियों से ही नहीं बल्कि तीनों लोक में सबसे सुंदर स्त्री होने के नाते त्रय लोक्य सुंदरी कहलाओगी। और इस अवधि में जब तुम स्त्री रहोगी तो तुम्हारा पुरुष भाव व एक मास पुरुष रहने पर तुम्हारा स्त्री भाव पूर्ण रूप से विस्मित रहेगा । अब तुम जाओ तुमारा कल्याण हो ।क्योंकि उस समय वो स्त्री भाव में थे अतः अपनी सखियों के साथ विचरण करते हुए वन में वृक्षों लताओं लतागुल्मों में छिपते हुए खेल करते भाव से विहार करने लगे ।ऐसा करते हुए वे उस वन्य प्रांत से वाहर आ गये उन्हें यह भी ध्यान नही रहा कि वे इस समय़ कहां हैं ।

विचरण करते हुए उस सुरम्य वन में एक शोभा युक्त सरोवर देखा । जो कमल दल एवं कमल पुष्पों से ढका हुआ था । उसमें तमाम जल पक्षी विहार कर रहे थे । उस सरोवर का जल इतना निर्मल था और उसके एक भाग में अत्यंत तेजस्वी एक युवक जल में खडे होकर तपस्या कर रहा था। त्रैलोक्य सुंदरी इला एवं उसकी सखियों को उस तेजस्वी युवक को देखकर बडा आशचर्य हुआ औऱ उन्होंने उस युवक का ध्यान भंग करने के लिए सबके सब जल में उतर कर जल में विक्षोभ उत्पन्न करने लगीं इन सबकी जल क्रीडा से प्रभावित वातावरण के काऱण उस तपस्वी युवक का ध्यान भंग हुआ और उसने नेत्र खोलकर इन सबको देखा । त्रैलोक्य सुंदरी को देखकर उस इंद्रिय विजयी महातपस्वी एवं महा सदाचारी युवक का मन विचलित हो गया । इसने विस्मय से त्रौलोक्य सुंदरी इला एवं उसकी सखिय़ों को देखा एवं जल से बाहर आकर अपनी कुटी में चला गया । और वहां से उस युवक ने आवाज देकर इन स्त्रियों को अपने पास बुलाया । और पूछा आप लोग कौन हैं कहां से आयी हैं । इस परम सुंदरी का पति प्रेमी और पिता कौन है । कृपया मुझे जानकारी दें ।  इस पर एक सखी बोली हे ऋषि कुमार यह त्रैलोक्य सुंदरी हमारी जन्म जात स्वामिनी है । हम सब इनकी दासियां हैं । हमारा कोई भी स्वामी नहीं है हम सब स्वच्छंद विचरण करने वाली हैं।उनकी बात सुनकर ऋषि पुत्र नेत्र बंदकर स्मरण किया जिसके द्वारा उन सबके साथ घटित भटनाओं के बारे में जाना । अतः उसने इला की समग्र सखियों को संबोधित करते हुए कहा कि अब तुम लोग इस हिमालय के क्षेत्र में जाकर अपने निवास स्थान बनाओ और किम पुरुसनियां बनकर फल मूल खाकर अपना जीवन व्यीयत करो । समय आने पर बहुत से किम पुरुष तुम लोगों को पति रूप में प्राप्त होंगे । ऋषि कुमार  के ऐसा कहने पर जो वास्तव में चंद्रमा के पुत्र बुध थे और उस सरोवर में तपस्या करने आये थे । उनके द्वार किमपुरुष जाति का प्रादुर्भाव हुआ और वे हिमालय के गहन मध्य भाग के निवासी हुए ।अब इला उनके पास अकेली रह गयी । ऐसे में बुध ने इला से कहा हे देवी मैं चंद्रमा का पुत्र बुध ब्रहमचर्य और योग की साधना के लिए इस सरोवर में तप कर रहा हूं । हमारा हृदय तुम त्रैलोक्य सुंदरी पर आसक्त हो गया है । अतः तुम यदि किसी की पत्नी हो या प्रेमिका हो तो मुझे बताओ , जिस कारण मुझसे कोई अनुचित कर्म न हो ।और ऐसा न होने पर मेरा मन तुम्हें वरण करने को अनुरक्त हो रहा है । यह सुनकर इला बोली हे देव न तो मैं किसी की पत्नी हूं और न ही प्रेमिका । मैं स्वच्छंद भाव से विचरण करने वाली नारी हूं। यदि आपकी आसक्ति मुझमें हुई है तो मैं आपके सामने आत्म समर्पण करने  के लिए तैयार हूं । आप जो चाहें वह मेरे साथ करें ।

इला के समर्पण की बात को सुनकर बुध अत्यंत प्रसन्न हुए और उसे अंगीकार करते हुए उसके साथ रमण करने लगे । रमण की अतिशयता में वैशाख का पूरा मास उन्हें क्षणभऱ में ही बीतने जैसा लगा । रात्रि हुई शयन के पश्चात जब सवेरा हुआ उसके पहले ही बुध जलाशय़ में जाकर तपस्या में लीन हो गये । और जब इला के नेत्र खुले तो वह इला नहीं बल्कि महाराज इल के रूप में सैय्या से उठ खडे हुए । उन्होंने बडे विस्मय से अपने को उस निर्जन स्थान पर अकेले देखा । वे कुटी के बाहर आये और तपस्या रत बुध को देखकर उनसे बोले ब्रहम्न मैं यहां कैसे आया और मेरी सारी सेना कहां है । जल से बाहर आकर बुध ने उनसे कहा हे राजन प्राकृतिक विक्षोभ से आपकी सारी सेना नष्ट हो गयी और आप मेरी इस कुटी में शरण पाये जिससे आपका जीवन बच गया ।  यह सुनकर महाराज इल ने उनसे कहा भले ही मेरी पूरी सेना नष्ट हो गयी है किंतु मैं अब अकेले ही अपने नगर को जाऊंगा , वहां मेरा ज्येष्ठ पुत्र शशिविंदु एवं अन्य भाई बंधु एवं सुखी प्रजा अवस्थित है । मैंने शशिवंदु का राज तिलक नहीं किया है ।  अतः राजा विहीन मेरे राज्य के लोग बडी आतुरता से मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे ।इस पर बुध बोले हे राजन इस अवस्थआ में आपका अपने नगर जाना उत्तम नहीं होगा । अतः आप यहीं रहकर एक साल तक मेरे साथ तपस्चर्या में लीन रहकर समय विताएं , कल्याणकारी समय आने पर ही आप अपने नगर को जा सकेंगे ।अतः उनकी बात मानकर राजा उन्हीं के साथ रह गये । इस तरह से एक मास पुरुष औऱ एक मास स्त्री रहते हुए उनका समय बीतने लगा । नवें मास के अंत में  जब वे इला रूप में थे तो उन्होंने एक अत्यंत तेजस्वी बालक को जन्म दिया । जो जन्म लेते ही थोडे ही समय से उपनयन संस्कार के योग्य हो गया । अतः इला ने  उसे उसके पिता को सुपुर्त कर दिया । मास बीतने पर महाराज इल अपने रूप में आ गये । अब बुध ने उनके कल्याण के लिए सोचा । उन्होंने संवर्तन नामक ऋषि का आवाहन किया ।और उनसे इल के कल्याण के बारे में चर्चा की । फिर संवर्तन ऋषि ने भृगु , अंगिरा एवं अनेक ऋषियों का आवाहन किया । जब सब ऋषि इकट्ठे हुए तो इल पुनः हमेशा के लिए कैसे पुरुष बने रहें इस पर चर्चा होने लगी ।ऋषि गण इसका उपाय करने पर विचार कर ही रहे थे कि उसी समय प्रजापति कर्दम अपने बहुत सारे शिष्यों के साथ वहां पधारे  उन्हें देखकर ऋषिगण बहुत प्रसन्न हुए और बहुत सारे आव-भगत से उनका सत्कार किया । फिर वे सब मिलकर इल के पुरुषत्व प्राप्ति के बारे में विचार करने लगे ।अंत में महर्षि प्रजापति कर्दम ने सभी ऋषियों को संबोधित करते हुए कहा कि इस महा व्याधि की औषधि मेरे विचार से केवल महादेव ही हैं ।अतः उन्हें प्रसन्न करने के लिए उनका अति प्रिय अश्वमेध यज्ञ का हमें अनुष्ठान करना चाहिए किंतु इसके लिए सक्षम यजमान की आवश्यकता है । तब महा तेजस्वी शक्तिशाली राजर्षि मरुत्त ने  यजमान पद ग्रहण किया और यज्ञ का संचालन शुरू हुआ । कुछ काल के बाद यज्ञ सकुशल संपन्न हो गया । और उससे प्रसन्न होकर भगवान महादेव प्रकट हो गये  । और यज्ञ कराने वाले ऋषियों एवं य़जमान राजर्षि मरुत से बोले कि हम इस य़ज्ञ से अति प्रसन्न हैं । अतः आप लोग कोई वरदान मांगो। इस पर सब एक स्वर में बोले हे प्रभु यदि आप हम सब पर प्रसन्न हैं, तो हमें यह वरदान दें कि राजा इल सदा के लिए पूर्ण पुरुषत्व को प्राप्त कर लें । भगवान भोले नाथ ने कहा ऐसा ही हो । मैंने इन्हें पूर्ण पुरुषत्व प्रदान किया ।अब आप लोग स्वेच्छा से सारे कार्यों का संपादन करें ।यह कहकर भोलेनाथ अंतर्ध्यान हो गये ।ऋषि मंडली में प्रसन्नता छा गयी । सबने राजा को आशीर्वाद दिया और बुध ने महाराज इल को सारी घटनाएं बताते हुए उन्हें उनके शरीर से उत्पन्न पुत्र पुरुरुवा को सौंप दिया ,और प्रेम सहित उनके पुत्र के साथ उनकी राजधानी बाहलीक पुर के लिए विदा किया । राजधानी पहुंचने पर महाराज  इल का भव्य स्वागत हुआ और उन्होंने अपने राज्य के मंत्रियों और गुरुजनों से सलाह करके अपने बडे पुत्र शशिविंदु का राजतिलक कर उन्हें वाहलीक पुर का राजा घोषित किया । तथा स्वयं देश के मध्य भाग में जाकर गंगा यमुना के मिलन स्थल पर एक अति रमणीय नगर का निर्माण करवाया और उसका नाम प्रतिष्ठानपुर रखा । सुख समृद्धि से भरे हुए उस राज्य पर स्वर्ग पर इंद्र के समान शासन करने लगे । समय़ आने पर जब महाराज काल कवलित हुए तो उनके बाद उनके पुत्र पुरुरुवा उस राज्य के राजा बने और वहीं से चंद्रवंशी राजाओं की परंपरा शुरू हुई।

 महाराज पुरुरुवा ने ही भगवान मित्र द्वारा शापित होने के कारण पृथ्वी लोक में आयी अप्सरा उर्वशी से विवाह किया । जिसके पुत्र नहुष हुए ।

वही प्रतिष्ठानपुर जो प्रयागराज में गंगा यमुना के संगम तट के पूर्व में स्थित है जो आज झूसी के नाम से पुकारा जाता है।

 यह कथा भी भगवान श्री राम ने अश्वमेध यज्ञ के महिमा मंडन के रूप में भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए अपने भाइयों को सुनायी थी ।

अतः परम करुणामय भगवान श्री राम और भगवान भोलेनाथ हम आप सब पर अपनी कृपा की वर्षा करते रहें यही कामना है ।

अस्तु           

लेखक- हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं । प्रकाशित हिंदी उपन्यास रद्दी के पन्ने                

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