रमेश कुमार मिश्र

Ramesh Mishra

मैं शहर जो बना तेरे ऐतबार में.
तुम शहर छोड़कर यूँ चले क्यों गए?

कोई शिकवा नहीं जुस्तजू भी नहीं.
यूँ चले भी गए तो कहाँ जाओगे?

रोशनी शाम की यूँ उदासी भरी.
रोशनी में नहाकर किधर जाओगे?

इश्क़ का रंग बेरंग तो है भी नहीं.
इश्क़ है तो छुपाकर कहाँ जाओगे?

तुम जिधर जाओगे मैं शहर पाओगे.
खुद से खुद को छिपाकर कहाँ जाओगे?

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