विशाखा गोयल
मैंने ऊंची चढ़ाई देखी
देखी फिसलती ढलाने भी,
ठिठकना, थमना, गिरना देखा
गिरकर देखीं उड़ानें भी,
सफर देखा, देखे मुसाफिर
और उनके ठिकाने भी,
पीडा, रुदन, अफसोस देखा
देखे कुछ खुश अफसाने भी,
अंधेर भरी नगरी देखी
देखे रौशन मयखाने भी,
मन की बगिया गुलज़ार देखी
देखे मैंने वीराने भी,
देखा इतना जब तब जाना, कितना अभी भी बाकी था
ना हमसफर, ना हमराही, मैं ही मैं बस एकाकी था!
रचनाकर : हिंदी की सुप्रसिद्ध कवयित्री हैं