ठाकुर प्रसाद मिश्र

देवासुर संग्राम की अनेक कथाएं पुराणो में भरी पड़ी हैं। जिसमें तप बल से प्रबल हुए आसुरी प्रवृत्ति के योद्धा। मानव सृष्टि से लेकर देवलोक को सताने का कार्य करते रहे, जिनसे संसार को मुक्ति दिलाने के लिए महान दिव्य शक्तियों का अवतरण भी होता रहा है। इसी क्रम से संबंधित आज का मनाया जाने वाला यह आश्विन मास की नवरात्रि के बाद यह दुर्गा दशहरा भी है। जबकि कुछ विद्वानों के अनुसार भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। कुछ लोगों का मत है बर्षा बीतने के बाद आज के दिन ही प्रवर्षण गिरि से बानर सेना के साथ ही भगवान श्रीराम ने लंका विजय के लिए प्रस्थान किया था। कारण जो भी हो कोई लोक कल्याणकारी कार्य प्राचीन काल में इस तिथि पर अवश्य हुआ है किंतु आज की हमारी चर्चा माता दुर्गा के महिषासुर संग्राम से संबंधित है।
आदिकाल में एक महाप्रतापी, स्वेच्छाचारी रंभ नामक राक्षस था। एक बार वह जलक्रीड़ा हेतु किसी सरोवर पर गया, उसी सरोवर में ताप मुक्त होने के लिए महर्षियों, भैंसों का झुंड भी जल क्रीड़ा कर रहा था। उसमें एक नई भैंस को देख वह काम मोहित हो गया। और जबरन उसके साथ संबंध बनाया। जिससे वह महिषी गर्भवती हो गई और ऐसे बालक को जन्म दिया, जिसका आधा शरीर (महिष) भैंस के आकार का था और आधा मनुष्य के आकार का। रंभ ने उसे अपना पुत्र मान पाला एवं समस्त आसुरी शक्तियों एवं आचरणों का ज्ञान दिया। उसकी सलाह पर उसका वह विचित्र कायाधारी पुत्र तप करने वन में गया। और प्रजापति भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न कर नर, नाग, किन्नर, सुर, असुर, देव, दनुज किसी से भी पराजित न होने का वरदान प्राप्त कर लिया। हर प्रकार की शक्ति से विभूषित उस असुर का अत्याचार मृत्युलोक से लेकर देवलोक तक फैल गया। अपने आतंक से भयभीत कर वह दोनों लोगों पर राज्य करने लगा। कई बार भगवान इन्द्र,शिव श्रीहरि आदि देवताओं ने उससे युद्ध किया, लेकिन उसे पराजित नहीं कर पाए। दिन प्रतिदिन उसका त्रास तीनों लोगों तक फैलता ही रहा। वह इच्छा मात्र से कभी मनुष्य रूप बना लेता,कभी महिष बन जाता। शक्तिशाली होने के साथ-साथ वह महामायावी था।
उसके भय से व्यथित सुरमुनि मिलकर ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी ने उन आर्त देव, मुनियों से उन्हें महामाया असुर विनाशिनी के शरण में जाने की सलाह दी और कहा आप सभी मिलकर अपने-अपने तेज के अंश जगत कल्याण के लिए माता महा चंद्रिका को प्रदान करें। ब्रह्मा जी की बात सुनकर सभी देवता मुनि, अपने स्थान पर लौट आए तथा सब मिलकर हिमालय पर जाकर माता । आदि शक्ति जगदम्बा से प्रार्थना करने लगे। उनकी प्रार्थना से द्रवित जगदम्बा ने उनकी सहायता करने के लिए एक अति तेजवान दिव्यपुंज के रूप में जिसकी प्रभा भगवान भास्कर से भी प्रखर थी। पृथ्वी की तरफ से आने लगी उस दिव्य ज्योति पुंज को आकाश से पृथ्वी,पर उतरते देख समस्त देव मुनियों का हृदय भय संशय से भर गया। लेकिन जैसे-जैसे वह ज्योति पुंज पृथ्वी के निकट आता गया वह स्वरूप ग्रहण करता गया और पृथ्वी पर पहुंचते ही एक अष्टभुजाधारी नारी के रूप में बदल गया। उनकी प्रभाव से सारा जगत आलोकित होने लगा। उनका सौंदर्य अवर्णनीय था। अब अपना त्राता समझ सभी देवताओं ने अपनी शक्तियों का अंश और अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र उन्हें दिए। भगवान विष्णु ने चक्र,ब्रह्मा ने कमंडल,शिव ने त्रिशूल,वरुण ने पाश और इंद्र ने बज्र प्रदान किया। इसी तरह प्रकार सभी देवताओं ने उन्हें अपने अस्त्र- शस्त्र एवं शक्तियां प्रदान की। पर्वतराज हिमालय ने उन्हें सुंदर वस्त्राभूषण और सवारी के लिए सिंह प्रदान किया। इस सभी अस्त्र-शस्त्र एवं दिव्य आभूषणों से सजकर य़ह महामाया शिव शक्ति स्वरूपा चंंडिका सिंह पर सवार होकर महिषासुर के नगर के पास आकर रणभूमि में बिचरण करने लगीं, उनका सिंह बार- बार घोर गर्जना कर रहा था। यह देखकर महिषासुर के अनुचरों ने उसके महल में जाकर सूचना दी कि असुर राज आपके नगर के निकट एक स्त्री तमाम अस्त्रों-शस्त्रों से सुसज्जित होकर सिंह पर सवार होकर विचरण कर रही हैं।और आप के लिए युद्ध की चुनौती उपस्थित कर रही है। उसके हाव-भाव अति,भय उत्पन्न करने वाले हैं किंतु उसकी सुंदरता के आगे तीनों लोक की स्त्रियों की सुंदरता रंक सी प्रतीत होती हैं । समाचार पाकर वह अपने असुर सेनानियों के साथ रणक्षेत्र में आया, और जब उसकी दृष्टि दुर्गा माँ पर पड़ी जिनका उद्भव दुर्गम स्थल पर हुआ अतः दुर्गा कहलाईं, तो महिषासुर उनके रूप पर मोहित होते हुए बोला सुंदरी यद्यपि तुमने हमें युद्ध की चुनौती देकर अपराध किया है ,और दंड की पात्र हो फिर भी मैं तुम्हारी जैसी अति कोमलांना रूपवती का वध नहीं करना चाहता। तुम मेरा वरण कर लो, मैं तुम्हें अपने रनिवास में सर्वोच्च महिषी पद देकर सम्मानित करूँगा। उसके उस प्रस्ताव पर देवी बोलीं, हे असुरराज मैं तुम्हारी तरह त्रय लोक में युद्धाभिलाषी होकर घूम रही हूँ। मेरी प्रतिज्ञा है कि युद्ध में जो भी योद्धा मुझे परास्त करेगा, मैं उसी को अपना पति वरण करूँगी। अतः तुम मुझसे युद्ध करके अपने को मुझसे वरीय सिद्ध करो,तभी इस तरह की बातें करो। देवी को अपनी बात न मानता देख महिषासुर ने युद्धघोष कर रण छेड़ दिया। देवी ने अपनी माया से अपनी सहायिका के रूप में तमाम शक्तियां प्रकट की। भीषण संग्राम हुआ । असुरपति के तमाम बड़े-बड़े सेनानी मारे जाने लगे । उसका सेनापति असिलोमा भी मारा गया। अंततः वह महापराक्रमी महिषासुर का भी देवी ने बध कर दिया, और लोकों को भय मुक्त बना दिया। इसी तरह समय-समय पर सुबह शुंभ- निशुंभ, एवं अदिति पुत्र रक्त वीज का भी माता दुर्गा ने बध किया।
असुर बंश का संहार कर भक्तों एवं सज्जनों की रक्षा करने वाली माँ दुर्गा को लोग महागौरी के रूप में जानते हैं, और नवदुर्गा के रूप में इन्हीं देवी की प्रतिष्ठा है। तमोगुण के प्रतीक भगवान शिव की इन महिमामयी, माया माता दुर्गा को आज विजयदशमी दुर्गा दशहरा पर अंतर्मन से कोटिशः प्रणाम करते हुए कामना करते हैं कि माता सब का घर खुशियों से परिपूर्ण रखें।