ठाकुर प्रसाद मिश्र
रहे सदा शुभ तुम्हें तुम्हारी राजनीति य़ह हमें हमारी रंक नीति ही भाने दो।
जहाँ रिक्त हो जाए तुम्हारा अक्षय तरकश, वह अनचाही स्थिति अब मत आने दो।
टूटी पाटी खाट वृक्ष की शीतल छाया,भग्न भीत पर फूस झोपड़ी छाने दो।
कौन माँगता है तुमसे किस धवल धाम को, विरल बादलों की छाया अपनाने दो।
कहते कुछ करते कुछ तुम अपने ही मन से, हमने क्या कर दिया व्यर्थ मत ताने दो।
कल्पित हरित वाटिका लालच मत दिखलाओ नेह बबूलों के शूलों से पाने दो।
प्रतिदिन-प्रतिपल घाव हृदय में तुम करते हो, अब तो अपने अश्रु हमें ही जाने दो।
जन-जन को तो अलग किया तुमने उर विष बो ,पल दो पल मिल गीत हमें अब गाने दो ।
रचनाका- हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं, प्रकाशित हिंदी उपन्यास रद्दी के पन्ने ।