अरुणाकर पाण्डेय

इसमें कोई विवाद नहीं होना चाहिए कि विद्यार्थियों को अपनी सुरक्षा के लिए फोन देने से पहले अब एक पात्रता तय कर लेनी चाहिए । हाल ही में एक समाचार आया है कि एक चौबीस वर्षीय युवक ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की सहायता से एक याचिका बनकर एक छात्रा से पैसे मांगे और वह देने पर बदले में उसकी फोटो बनाकर उसे ब्लैकमेल किया कि उसकी अश्लील चित्र और वीडियो पोस्ट कर देगा ।यह घटना अभी दिल्ली में ही सामने आई है ।
पीड़ित लड़की कॉलेज की छात्रा है और इंस्टाग्राम पर उसके साथ यह आपबीती हुई है । इसका मतलब यह है कि वह भी शिक्षित है लेकिन इतनी योग्य नहीं कि स्वयं को ऐसे षड्यंत्रों से बचा सके । उक्त लड़के निखिल ने ए आई की मदद से उसकी नग्न तस्वीरें निर्मित की और इंस्टाग्राम पर ही उसे ब्लैकमेल करता रहा । छात्रा ने विवशता जाहिर की तो उसने इन तस्वीरों को उसके अभिभावकों से साझा करने की बात की। इससे घबराकर अंततः छात्रा ने अपने माता पिता को सब बताया और पुलिस में शिकायत दर्ज की।इसके परिणाम स्वरूप वह लड़का पकड़ा गया है ।
ए आई के प्रति एक विवेकपूर्ण दृष्टि बनाने की और उसके खतरों से निपटने की एक बहुत बड़ी चुनौती हमारे सामने है। इसे बिना प्रशिक्षण के बहुत अच्छी दिशा नहीं दी जा सकती । कितना अच्छा हो यदि इस बारे में भी विश्वविद्यालय,सरकार और सिविल समाज संज्ञान लेकर एक उम्दा नीति बनाकर प्रतिपालन करवाएं। यह बेहद जरूरी है ।
जैसे बिना लाइसेंस के गाड़ी चलाने का कानून नहीं है क्या वैसे ही बिना प्रशिक्षण और उसके सर्टिफिकेट के स्मार्ट फोन खरीदने को कानून के दायरे में लाने का समय नहीं आ गया है ? इस प्रश्न पर विचार करना बनता है क्योंकि साधारण लोगों के जीवन से जुड़ी इस नई चुनौती का कुछ तो प्रतिवाद तैयार करना ही चाहिए ।अन्यथा इस दौर में बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक हैं।