एक सांस्कृतिक आयोजन
टीम कहानीतक – दिनांक 19 जनवरी 2025 , रविवार को ज्ञान तारा प्रेस और ज्ञान विज्ञान प्रसार न्यास के तत्वावधान में
बोल -1, दो शायर दो कवि कार्यक्रम प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया , नयी दिल्ली में आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम के आयोजन में कृष्ण मेनन जी, सौरभ शेखर जी और चैतन्य अनुराग जी की केंद्रीय भूमिका रही। आमंत्रित रचनाकार फ़रहत एहसास साहब , मैडम सविता सिंह जी, देवी प्रसाद मिश्र सर और भाई इरशाद ख़ान सिकंदर थे। कार्यक्रम की प्रस्तावित रूपरेखा इस प्रकार थी।
प्रोग्राम के दो हिस्से प्रस्तावित थे –
पहला हिस्सा दोपहर 3 बजे से 4:30 तक था , इस हिस्से में निम्न दो बिंदुओं पर संवाद और चर्चा होनी थी –
1. हिंदी और उर्दू के समसामयिक दृश्य को समझने की दृष्टि से उनके आपसी संबंध और संवाद का अभाव पर संवाद.
2. साहित्यिक और लोकप्रिय संस्कृति में बढ़ती दूरी की दृष्टि से आगे आने वाले वक़्त में बेहतरी के रास्ते
इस चर्चा के साथ कुछ सवाल जवाब, बातचीत।
प्रोग्राम का दूसरा पार्ट 4:30 से 6:00 तक
इसमें चारों आमंत्रित सर्जकों से उनकी रचनाएं सुना जाना।

कार्यक्रम का प्रारंभ कृष्ण मेनन जी के एक संक्षिप्त बीज कथन से हुआ जिसमें उन्होंने ज्ञान तारा प्रेस और ज्ञान विज्ञान प्रसार न्यास के कामकाज के विषय में बताया। उन्होंने अपनी लेखन यात्रा के बारे में भी बताया। इन सबका सीधा सम्बन्ध विज्ञान और दार्शनिक विचारों के प्रचार प्रसार से रहा है। उन्होंने अपनी महत्वपूर्ण किताबों के नाम भी बताये जो कि सुकरात, प्लेटो ,अरस्तू आइन्सटीन जैसे सुविख्यात दार्शनिकों एवं वैज्ञानिकों से सम्बंधित शीर्षक हैं। इसके बाद मंच की बागडोर सौरभ जी ने संभाली और सबसे पहले फ़रहत साहब से हिंदी और उर्दू के पारस्परिक संबंधों और इनके इतिहास भूगोल और भविष्य पर उनके विचार जानने की पेशकश की।
फ़रहत साहब ने विस्तार से इन बिंदुओं को टटोलकर इन पर अपनी बात रखी और इतिहास के कालक्रम में खड़ी बोली हिंदी और खड़ी बोली उर्दू के आपसी रिश्तों की यात्रा समझायी। उन्होंने यह भी कहा कि कैसे इन दोनों भाषाओं का बुद्धिजीवीवर्ग भले आपस में असंवाद की दूरी महसूस करता हो पर आम जनता अपने आम जीवन के मुद्दों को इन दोनों भाषाओं के हमेशा होते रहने वाले सम्मिश्रण के चलते कह सुन पाती है। इसी मौके पर अनुराग जी ने बौद्धिकों के असंवाद के बरक्स हिंदी फ़िल्मों में हिंदी उर्दू के सांझे माध्यम में मनोरंजन के सफल और जनता द्वारा सराहे जाते प्रयोग की ओर संकेत किया। मैडम सविता सिंह जी ने ज्ञान मीमांसा , भाषा और उसके ज़रिये सत्य तक पहुँचने की मानवी अभीप्सा के दार्शनिक पक्ष पर अपने विचार रखे। जैसा कि ऊपर प्रस्तावित कार्यसूची में बताया गया है, इसके बाद विचार चर्चा बिंदु दो के दृटिकोण से देवी मिश्र सर से उनकी रचनाओं को लेकर प्रश्न पूछा गया । इसका केंद्रीय विचार रचनाधर्मिता का स्वान्तः सुखाय होना या उसके बरक्स इसकी सामाजिक उपादेयता और सम्प्रेषणीयता थे। इस मौके पर देवी सर ने पहले हिंदी उर्दू के संबंधों की पारस्परिकता पर बोलने का निर्णय लेते हुए कहा कि असल में दोनों के बीच की दूरी मानसिक ज़्यादा है वास्तविक कम। उनका ये भी कहना था कि विभाजन की भाषा बनाये जाने के प्रबल आग्रह के बाद भी जनता ने विभाजन के बीच से अपने संपर्क पुल स्थापित किये हैं और सभी प्रकार का अंतरण बदस्तूर जारी है। इरशाद भाई ने भी इसी लाइन पर अपनी बात आगे बढ़ाई। इस बातचीत के बाद चाय और पकौड़े अपनी भूमिका निर्वहन हेतु पेश हुए।

कार्यक्रम के दूसरे हिस्से में उपस्थित मजलिस के अनुरोध पर सभी रचनाकारों ने अपने मन से चुनी गयी रचनाओं का पाठ किया । सबसे पहले इरशाद भाई ने अपने एक से एक सुन्दर शेर कहे। इसके बाद देवी मिश्र सर ने अपनी जनवादी कविता के कटीले और मर्मस्पर्शी स्वर से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। उनसे उनकी और प्रतिष्ठित कविताओं को सुनने के आग्रह के बावजूद समय का अभाव बाधा बना। फ़िर मैडम सविता सिंह जी ने अपनी कविता के पाठ से नारीवादी स्वर को मज़बूती से प्रतिस्थापित किया। विमला की यात्रा और मैं किसकी औरत हूँ , दोनों कविताएं किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। इस हिस्से के अंत में फ़रहत एहसास सर ने अपने शेरों और ग़ज़लों से महफ़िल में चार चाँद लगा दिए ।
गोष्ठी की जगह को समय पूरा होने की वजह से जल्दी ख़ाली करने की मजबूरी के बाद भी उपस्थित श्रोताओं का उत्साह शाम की ठंडी फ़िज़ा ठंडा नहीं कर सकी। चाय के एक और दौर के साथ बातचीत – प्रश्नउत्तर आधा घंटा और चलते रहे। फ़िर जल्द मिलने के संजीदा ख़्याल के साथ घर की ओर रवानगी हुई।