स्वर्ग ले जाने वाली लिफ्ट image source meta ai

अरुणाकर पांडेय

अरुणाकर पाण्डेय

दिल्ली के केशवपुरम इलाके में लिफ्ट में एक युवक की मौत हुई है । कारण यह है कि उसमें करेंट आ गया था । फिलहाल पुलिस ने लिफ्ट सील कर दी है और यह पता लगा रही है कि इसका जिम्मेदार कौन है ? इसके अलावा और कोई महत्वपूर्ण सूचना इस खबर में नहीं मिलती है ।

उम्मीद है कि पुलिस खोजबीन और पूछताछ करके इसका पता लगाएगी लेकिन इससे वह व्यक्ति तो जीवित नहीं होगा जिसका परिवार इस आपदा को झेल रहा है। क्या यह उस व्यक्ति का दोष है जिसने लिफ्ट का उपयोग करना चुना और स्वर्ग सिधार गया ?  यदि उसे जिम्मेदार माना जाए तब तो इसका सीधा अर्थ यह है कि किसी भी जानी पहचानी या अंजान जगहों पर कोई भी व्यक्ति लिफ्ट का इस्तेमाल करने से बचे । लेकिन ऐसा सोचना व्यावहारिक नहीं  है क्योंकि यह मानकर ही इसका उपयोग किया जाता है कि सब ठीक है अन्यथा कई जगह लिफ्ट के बाहर बड़ी जिम्मेदारी के साथ यह भी लिखा हुआ मिलता है कि कृपया लिफ्ट का प्रयोग न करें अभी मेंटेनेंस का काम चल रहा है । इसलिए यदि उक्त व्यक्ति की मृत्यु लिफ्ट में करेंट लगने से हुई है तो उसने चढ़ने से पहले भरोसा किया क्योंकि संभवतः उस जगह ऐसी कोई सूचना नहीं थी। 

यदि न्यूज वैल्यू की दृष्टि से देखा जाए तो इस खबर का कोई विशेष महत्व नहीं है और इसलिए भी यह अखबार के पहले पन्ने या अन्य महत्वपूर्ण स्थानों पर प्रकाशित नहीं की गई। इस पर भी किसी प्रकार की डिबेट या कोई चर्चा की जाए यह भी जरूरी नहीं माना जाएगा । लेकिन यह सच है कि लिफ्ट में किसी भी कारण से हादसों और मृत्यु की खबरें  अक्सर आती रहती हैं भले ही इसे कोई महत्व न दिया जाए ।

इस रवैए के पीछे एक बहुत बड़ा कारण यह होता है कि सामान्य रूप से ऐसी खबरों को पढ़ कर थोड़ा बहुत अफसोस करने के बावजूद यह  समझा जाता है कि ऐसा हमारे साथ नहीं हो सकता । यह आत्मविश्वास बहुत गजब का है जो केवल यह दर्शाता है कि हमारे समाज में नागरिकता से जुड़े हुए मुद्दों का कोई महत्व खुद हमारी ही नजरों में नहीं है । इसलिए एक जिम्मेदार नागरिकता की दरकार है जिससे ऐसी समस्याओं पर काबू पाया जा सकता है । 

इधर दिल्ली एनसीआर और देश के बहुत से भागों में बिल्डिंग के निर्माण कार्य चल रहे हैं। जाहिर है कि हजारों की संख्या में लिफ्ट इनमें लगाई जाती हैं और आगे भी लगती रहेंगी । जिस हिसाब से अब मंजिलों की संख्या मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में बन रही हैं,उसमें लिफ्ट के बिना विकास संभव नहीं है । वह अब एक विकल्प नहीं बल्कि जरूरत बन  गई है । इन बिल्डिंगों में लोगों के करोड़ों अरबों रुपए निवेशित हैं और वे बहुत से सपनों को सजोए है । 

ऐसे में जब इस तरह के समाचार आते हैं तो उन पर बात करना,कार्यक्रम करना और कलम चलाना भी महत्वपूर्ण हो चला है । बल्कि इसके प्रति सरकारों को भी कड़े नियम बनाने चाहिए और यदि वे हैं तो उनकी समय समय पर समीक्षा करते हुए उनके पालन को भी सुनिश्चित करना चाहिए । साथ में ऐसे समाचारों के प्रति मीडिया के साथ सिविल समाजों को भी दबाव बनाना चाहिए अन्यथा यह उपेक्षा बहुत महंगी पड़ सकती है ।

लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक हैं।

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