दिगंबर का भूतImage source meta Ai

रमेश कुमार मिश्र

 

Ramesh Mishra

रचनापुर गांव के स्कूल में दिगंबर और ज्योति सहपाठी थे।पांचवी कक्षा तक दोनों एक ही कक्षा और एक ही खंड में साथ- साथ बैठते थे। दोनों में बचपने की गहरी दोस्ती थी ।ज्योति और दिगंबर की टिफिन घर से तो अलग -अलग आती थी लेकिन स्कूल में लंच के समय एक हो जाती थी . दोनों एक साथ ही भोजन किया करते थे ।यदि एक दिन ज्योति स्कूल नहीं आती थी तो दिगंबर भी कोई न कोई बहाना करके स्कूल से निकल ही जाता था । ज्योति जो कि बगल के गांव की थी तो उसे ढूढ़ता उसके घर तक भी पहुंच जाता था ।

 एक दिन स्कूल की छुट्टी के बाद ज्योति ने दिगंबर से कहा दिगंबर हम केवल दोस्त ही हैं न । दिगंबर ने कहा हां ज्योति हम सिर्फ दोस्त ही हैं हम साथ पढ़ते हैं और तुम मुझे अच्छी लगती हो इसलिए हम दोनों दोस्त हुए। दिगंबर का हाथ पकड़ते हिए ज्योति ने कहा सिर्फ अच्छी लगने से मैं तुम्हारी दोस्त कैसे हुई? दिगंबर ने कहा मैं मोबाइल में वीडियो देख रहा था उसमें कहते हुए सुना था कि जो अच्छा लगे उसे अपना दोस्त सममझना चाहिए। ज्योति जैसे कि तुम मुझे लगती हो।

अच्छा मोबाइल में और क्या -क्या देखते हो तुम ज्योति ने मुस्कुराते हुए कहा ।सब कुछ देखता हूं ज्योति सब कुछ. मोबाइल तो वह चीज है जिसमें सब कुछ देखा जा सकता है। लेकिन ए घर वाले हैं कि मुझे पूरे चौबीस घंटे में केवल बीस मिनट के लिए ही मोबाइल देखने देते हैं। एक तुम्हारे घर वाले हैं जो तुम्हारा इतना ख्याल रखते हैं और एक मेरे घर वाले हैं कि मेरे पापा की मोबाइल तो भाई और मम्मी को छूने तक के लिए नहीं मिलती है। मेरी मम्मी कहती हैं कि ए मोबाइल तो बच्चों के भविष्य के लिए नाश का घर है । जानते हो दिगंबर मम्मी कहती हैं कि इससे बच्चे बिगड़ जाते हैं. मेरे पापा बता रहे थे कि उनकी आफिस के साहब की छोटी बिटिया बहुत अधिक मोबाइल देखती थी और उसके नाते उसकी आंख खराब हो गयी ,आपरेशन हुआ और लेंस पडा़ , मम्मी कहतीं हैं कि अब वह लेंस वाली आंख से दुनिया में क्या तरक्की करेगी।

गांव के स्कूल से तहसील के इंटर कालेज और बी.ए इलाहाबाद विश्वविद्यालय से साथ करते हुए दिगंबर और ज्योति साथ-साथ एम.ए करने दिल्ली विश्वविद्यालय पहुंच गए । दाखिला हुआ छात्रावास मिला । पढाई शुरू हो गयी । गांव की पृष्ठभूमि और आर्थिक कमजोरी के शिकार दोनों ही के परिवार वाले थे । ज्योति और दिगंबर के लिए जो सबसे बडी़ समस्या थी वह मासिक खर्च की । यद्यपि दोनों ही पढ़ने में मेधावी छात्र थे । लेकिन भारत में ऊंची शिक्षा पाने के लिए सिर्फ मेधावी होना पर्याप्त नहीं है। उसके लिए धनिक भी होना चाहिए । और किसी जाति विशेष की कृपा भी प्राप्त होनी चाहिए । न तो संघर्ष करने की क्षमता बहुत होनी चाहिए। यह अलग बात है कि गरीबी और अमीरी हर जाति में होती है ।

 दिगंबर की प्रतिभा ने पूरी हिंदी फैकल्टी में उसको सबका प्रिय बना दिया। एक दिन दिगंबर के एक सीनियर ने कहा कि दिगंबर तुम मेधावी हो अगर बुरा न लगे तो मैं तुम्हें एक सलाह दूं ।तुम अपनी पढ़ाई के साथ-साथ एक प्रकाशन में प्रूफ रीडिंग का काम कर लो । दिल्ली के दरियागंज इलाके में मेरे एक जानकार मित्र का प्रकाशन है जिन्हें मैं बोल दूंगा और तुम नियमित रूप से जाकर वहां तीन -चार घंटे भी काम कर लोगे तो पैसे की तंगी की वजह से तुम्हारी पढ़ाई में कभी रुकावट नहीं आएगी । दिगंबर ने कहा भैया आप तो मेरे भगवान बन गए । राजेश ने दिगंबर के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा कि भाई ही रहने दो भगवान न बनाओ भगवान बहुत बड़ी सत्ता हैं। लेकिन मेहनत बढ़ जाएगी ।तो य़ह देख लेना कि कहीं तुम्हारी पढ़ाई में दिक्कत न आए। दिगंबर ने कहा नहीं सर ऐसा बिल्कुल नहीं होगा ।मेहनत ही तो किसी विद्यार्थी का सबसे बड़ा हथियार है जो मेहनत ही न कर सकता वह पिर क्या कर लेगा ?

राजेश ने कहा सही कहा दिगंबर तुमने, मेहनत का कोई विकल्फ नहीं होता है इसलिए ही तो तहुम मेधावी हो। दिगंबर ने धन्यबाद कहते हुए कहा कि सर एक निवेदन और कर सकता हूंँ क्या ? राजेश ने कहा हां क्यों नहीं ? कहो कहो क्या बात है ? दिगंबर ने कहा भैया वहां एक और जगह बन जाएगी क्या ? हमारी मित्र ज्योति के लिए । राजेश ने कहा हां क्यों नहीं ? लेकिन बच्चू ध्यान रहे  दिगंबर बाबू ए लड़कियों के चक्कर में ज्यादा न पड़ना न तो एक दिन ….

 दूसरे दिन सुबह राजेश जी ने जैसा कहा था दिगंबर और ज्योति दरियागंज स्थित रचना पब्लिकेशन पहुंच गए । सिफारिस राजेश जी की होने के वजह से मुलाकात किसी मैनेजर वगैरह से न होकर सीधे रचना पब्लिकेशन के मालिक विनीत से हुई।

 विनीत के पिता जी की मृत्यु पिछले छः माह पहले ही हुई थी । उसके बाद से ही विनीत ने आफिस का काम संभाला था । रचना पब्लिकेशन की कुल नेटवर्थ दो सौ करोड की थी ।रिसेप्शनिष्ट ज्योति और दिगंबर को विनीत की केबिन में लेकर गयी । दो भागों मे बंटा विशालकाय आलीशान केबिन देखकर दोनों की आंखें फटी की फटी रह गयीं । गांव से निकलकर दोनों ने कभी इतनी बडी़ किसी की केबिन नहीं देखा था। विनीत जब फोन पर बात करने में ब्यस्त हो गये तो ज्योति ने दिगंबर से कहा कि तुम्हें लगता है कि इतने बडे पब्लिकेशन मे हमें और तुम्हें कोई चपरासी भी रखेगा। दिगंबर ने कहा कितना भी बडा हो हमारे विश्वविद्यालय से बडा  नहीं होगा,और हम उसी विश्वविद्यालय के छात्र हैं।और फिर राजेश भैयभैया की सिफारिश भी तो….

विनीत ने फोन रखते हुए कहा कि आप सब राजेश जी को कब से जानते हैं? दिगंबर ने कहा यही कोई पांच छ: माह से । जब से कैंपस मे क्लास लेनेआने लगे तब से । वे बहुत अच्छे हैं । अच्छा, हां यह तो है, अच्छे तो हैं । आप दोनों ने अपने नाम नहीं बताए । कोई बायोडाटा लाए हैं क्या ? नहीं सर हम कोई बायोडाटा नहीं लाए हैं . हमें लगा कि प्रूफ रीडंग के काम के लिए बायोडाटा की जरूरत नहीं होगी । हम तो देख रहे हैं कि हमारे विश्वविद्यालय में कितने लोग हाथ में सीधा डिग्री ही लिए घूम रहे हैं उन्हें तो कोई पूछता ही नहीं , फिर बायोडाटा का अर्थ क्या ? अब राजेश भैया का ही देख लीजिए उन्हें ही अभी तक नौकरी की तलाश है। दिगंबर ए कह ही रहे थे कि ज्योति ने दिगंबर का हाथ दबाते हुए रोक दिया और बोली सर मैं ज्योति और ए दिगंबर ।

ओह! ब्यूटीफुल नेम . जितनी खूबसूरत आप हैं उससे कहीं ज्यादा खूबसूरत तो आपका नाम है। जी बताएं क्या लेंगे चाय काफी या फिर कुछ स्नैक्स ? दिगंबर ने कहा नहीं सर केवल पानी । विनीत ने कहा कि दिगंबर जी पानी तो जीवन है न मिले तो जिंदगी खत्म और आंख का मर जाए तो इज्जत खत्म।हर किसी को पानी के बारे में सचेत रहना चाहिए। हम चाय और पानी दोनों पिएंगे। ज्योति जी शर्माइए मत इसे अपना ही आफिस समझिए । वैसे आपकी उम्र क्या है?

जी सर 22 ईयर है।अच्छा तब फिर ठीक है । मेरी भी उम्र ज्यादा नहीं है अभी 25 का मैं भी हूं।आप मुझे भी अपना मित्र ही समझें। पिता जी के मरने के बाद इकलौती औलाद का दर्द होने का दंश झेल रहा हूं।मेरे पढने- लिखने -खेलने-कूदने की उम्र में अब मुझे यहां बिजनेस संभालना पड़ रहा है। मैं तो इस बिजनेस की कुर्सी से जकड़ गया हूं ।अकेले होने का दर्द बहुत सताता है।

नहीं सर आप तो बहुत भाग्यशाली हैं इस उम्र में आकर लोग जिस नौकरी के लिए दर- दर भटकते हैं वह तो आपको विरासत में मिली है। फिर इतने स्टाफ हैं आपके पास घर में मम्मी औऱ चाचा चाची होंगें ही फिर आप अपने को अकेले क्यों क्य़ों कह रहे हैं?

ज्योति जी मां तो मेरी दुर्भाग्य से मर गयी । पापा की जब शादी हुई तब हमारे परिवार के आर्थिक हालात ठीक नहीं थे मुझे पैदा करके मेरी मां एक अमीर की रात और दिन की सहेली हो गयी और हम सभी को छेडकर उसके साथ चली गयी ।दिगंबर बाबू आपकी साथी आपको छोडकर कब चली जाएगी यह आपको नहीं पता ।यह तो नियति ही जानती है, न हम और न आप ।

ज्योति और दिगंबर ने लंबी सांस लेते हुए संवेत स्वर में कहा कि ओह! सर आपकी जिंदगी की कथा तो बहुत ही करुण है। यह तो हमारी गरीब से भी बढ़कर है. हां यह तो है । बरहाल आप सब मुझे ए बताएं कि आप सब नौकरी करेंगे या प्रूफ रीडिंग । दिगंबर ने कहा सर हम सब छात्र हैं । हमें पढ़ना भी है गांव से सपना लेकर निकले हैं । तो हमें तो राजेश जी ने प्रूफ रीडंग के लिए ही कहा था । विनीत ने कहा ठीक है । आप कल से आ सकते हैं । सबको हम क्या देते हैं उससे आप सबको मतलब नहीं होना चाहिए ? आप दोनों के लिए मैं राजेश जी के नाते से सात रूपए प्रति पेज दूंगा फिलहाल । दिगंबर और जिया दोनों खुश हो गये।

बेल बजी चपरासी आया बिनीत ने उससे कहा कि ड्राइबर को बोलो कि गाडी़ लगा दे । और मेरा बैग लैपटाप, कुछ किताबें गाडी में रख दो । वैसे आप सब  किधर जाएंगे ।सर हम तो दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रा मार्ग ही जाएंगे । फिर तो ठीक है मुझे भी उधर से ही निकलना है । चलिए आप दोनों को माल रोड पर ड्राप करता जाऊंगा । ज्योति ने कहा ठीक है सर । गाड़ी का दरवाजा खुला दिगंबर अगली सीट पर ज्योति और विनीत पिछली सीट पर बैठ गये। गाड़ी में बैठते ही ज्योति ने कहा कि वाह क्या गाडी है? इतनी शानदार गाड़ी में तो मैं कभी बैठी ही नहीं थी । विनीत ने कहा कि ऐसी और भी महंगी मेरे पास पंद्रह और गाडियां भी हैं। ज्योति ए सब तो मुझे विरासत में मिली हैं। और मेरे पिता ने यह सब कर दिखाया कि अगर इंसान ठान ले तो क्या नहीं कर सकता है? गाड़ी चलती रही माल रोड आया ज्योति और दिगंबर मर्सिडीज से नीचे उतऱ गए ।

दिगंबर ने कहा कि ज्योति चलो विवेकानंद की मूर्ति पर कुछ देर बैठते हैं और फिर उसके बाद चाय पिएंगे। नहीं अब यहीं बेंच पर बैठते हैं मैं बहुत थक गयी हूँ ।अब तो काम भी मिल गया है अभी एक दिन में ही मेरी हालत ऐसी हो गयी है तो फिर रोज का आना – जाना तो….

लंबी सांस भरते हुए दिगंबर ने कहा ज्योति हम दोनों अब रचना पब्लिकेशन काम करने नहीं जाएंगे । ज्योति ने  कहा ए क्या बात हुई क्यों नहीं जाएंगे जी । देखो ज्योति मैं कभी नहीं चाहता कि तुम्हें कोई बुरी नजर से देखे । वह सुधरे बाप की बिगड़ी औलाद है विनीत तुम जबसे उसके सामने बैठी थी तबसे वह कमीना तुम्हारी खूबसूरती के पीछे ही पड़ गया था । न करना हमें ऐसी जगह काम जहां तुम सुरक्षित नहीं रह सकती हो । चिल्लाती हुई ज्योति ने कहा यही है तुम्हारी पुरुषवादी घटिया  मानसिकता । तुम सबकी यही सबसे बड़ी प्राब्लम है।तुम जिसे पसंद करते हो वह या तो तुम्हारी तिजोरी में बंद रहे या फिर चार दीवारी की कैद में ।एक मर्द को दूसरे मर्द की हैसिएत से इतनी ईर्ष्या तो मैं जीवन में पहली बार देख रही हूं। वह मुझे कैसे देख रहा था विषय यह नहीं है ? विषय मैं बताती हूं जनाब आपको ,तुम उसकी तीन करोड़ की गाड़ी में बैठकर उससे ईर्ष्या करने लगे। तुम्हारी असली प्राब्लम तो यह है जी । तुम मुझे पसंद करते हो यह ठीक है , अब यह तो नहीं हो सकता न कि मैं सुंदर हूं तो मुझे कोई और देखे ही नहीं और पसंद भी न करे यह कैसे हो सकता है ? क्या घटिया सोच है? यह तो घोर पिछड़ेपन की निशानी है।भाड़ में जाए ऐसा साथ और तुम्हारे द्वारा दिलाया गया काम । झटके में ज्योति उठी और अपने छात्रावास जाने लगी । ज्योति का हाथ पकड़ते हुए दिगंबर ने कहा कि जैसा तुम कह रही हो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है । मैं तुमसे बुहत प्यार करता हूं इसलिए तुम्हें खोना नहीं चाहता । हाथ झटकते हुए ज्योति अपने छात्रावास को यह कहते हुए चली गयी कि अगर प्यार से पेट भरता तो आज हम और तुम भी मर्सिडीज से चल रहे होते । तुमने मूड खराब कर दिया मेरा.

रात को तीन बज गये दिगंबर लगातार ज्योति को काल और मैसेज करता रहा ज्योति ने कोई जबाब नहीं दिया । सुबह के समय पता नहीं कब कुछ देर के लिए दिगंबर को नींद आ गयी . सात बजे की क्लास के लिए एलार्म बजा तो दिंगबर जल्दी -जल्दी उठा नहाया और बिना नाश्ता किए ही क्लास  के चल दिया । रास्ते में ज्योति का मैसेज आया कि सारी मैं फोन बंद करके सो गयी थी अभी तुम्हारा मैसेज देखी हूं, क्लास में आ जाओ।

क्लास खत्म होने के बाद दिगंबर ने कहा ज्योति से कहा कि चलें … चलें मतलब , वहीं रचना पब्लिकेशन …क्यों मुझे तो विनीत भगा ले जाएगा न फिर तुम क्या करोगे दिगंबर बाबू? वह ऐसा नहीं कर सकता । क्यों नही कर सकता जी ? मैं सुंदर हूं जवान हूं और उसके पास गाड़ी है बंगला है पैसा और वह भी तो खूबसूरत है तो ऐसा क्यों नहीं हो सकता ? तुम मुझे छोड़ नहीं सकती । छोड़ नहीं सकती मतलब । मतलब कि मुझे तुम पर भरोसा है। और मैं तुम्हें छोड़ गयी तब … अगर तुम ऐसा करोगी तो भूत बनकर तुम्हारे बदन में बैठकर समा जाऊगा फिर देखना क्या करूंगा ? भूत और तुम , एक रात जनाब को मैमेज न गया तो चेहरा सूख गया चलें हैं भूत बनने ।भरोसा नाम की भी चीज होती है । इंसान को यह तो भरोसा होना ही चाहिए कि मैं कोई पागल नहीं हूं सब कुछ समझती हूँ कौन क्या चाहता है ? चले बडे़ बूत बनने ।हमारा दिल कोई उजाड़ चमन नहीं जो तुम्हारे जैसे भूत यहां बैठें , मेरा दिल तो लाल गुलाब है जहां विनीत रूपी भौंरे ही बैठ सकते हैं । ज्योति का इतना कहना था कि दिगंबर उठकर चल दिया । ज्योति दौड़कर दिगंबर के आगे जा खड़ी हुई और बोली यही प्राब्लम है जनाब की कि मजाक तक नहीं सह सकते । जाने दो मुझे और अब बिल्कुल भी मेरे से बात नहीं करना तुम। अच्छा चलो जाने दिया फिर रात को मैसेज न करूँगी तो पिर कल के अखबार में जनाब की फोटो छपेगी एक लड़के के ने लड़की के पयार मे दिया जान और बन गया भूत ।चलो चलकर चाय पीते हैं हम कहीं नहीं जा रहे हैं । यार दिगंबर तुम्ही तो मेरी जिंदगी हो तुम कैसे सोच लेते हो कि मैं….गांव से लेकर शहर तक मैं जो सबसे बड़ी कमाई की है वह है तुम्हारे जैसा प्यारा सा दोस्त । अच्छा तुम कह रही हो कि तुम मुझे बहुत प्यार करती हो … हां बाबा सच कह  रही हूं, अब यही बात क्या अखबार में छपवाऊं ।

चाय की दुकान पर बैठे दिगंबर और ज्योति ने एक बार फिर से तयँ किया कि हम कल से रचना पब्लिकेशन जाएंगे ।और दूसरे दिन से दोनों जाने लगे । इन दोनें को औरों से ज्यादा सहूलिय़त मिलने लगी । ज्योति तो देखत देखते उस आफिस पर राज करने लगी । करीब दो माह बीता था कि एक दिन दिगंबर की मोबाइल पर उसकी बड़ी बहन का फोन आया कि भाई पापा का मोटर साइकिल से ऐक्सीडेंट हो गया है, तुम जल्दी से घर आ जाओ । वह रोने लगा पास में बैठी जिया ने पूछा कि क्या हुआ दिगंबर किसका फोन था ? दिगंबर ने कहा कि पापा पापा …. ज्योति ने कहा क्या हुआ अंकल जी को ? फिर दिगंबर ने  ज्योति को सब बताया । दिगंबर ने कहा कि अब क्या होगा ज्योति हमारे पास तो पापा के इलाज के इतने पैसे भी नहीं हैं कि हम उनका इलाज करा पाएंगे ? गरीबी का सबसे दुखदायी दिन यही होता है कि अपनों का इलाज भी गंभीर चुनौती बन जाता है। कहां हम रात दिन करके अपनी पढ़ाई के जुगाड में थे औऱ इसी बीच में  यह हो गया वह बहुत परेशान हो गया । यह बात  जैसे ही पब्लिकेशन के मालिक विनीत को पता चली तो उन्होंने बड़ा दिल दिखाते हुए कहा कि तुम अभी यहीं से घर जाओगे । ड्राइबर को बुलाकर कहा कि दिगंबर जी को इनके गांव रचनापुर (जौनपुर ) छोड़ आइए और तुरंत दो लाख रूपये कैश निकालकर दिगंबर के हाथ पर रख दिया । दिगंबर ने हाथ जोडते हुए कहा कि सर आपका यह एहसान मैं जिंदगी भर नहीं भूलूंगा । विनीत ने कहा दिगंबर तुम्हारे पापा मेरे अंकल हुए फिर मेरी भी अपने अंकल के प्रति जिम्मेदारी बनती है। और एक बात पैसे की वजह से अंकल जी के इलाज में कोई कमी नहीं आनी चाहिए जितने लगेंगे मुझे बताना । बाहर ड्राइबर गाडी लेकर खडा है।बिना देर किए निकलो। दिगंबर ने ज्योति का हाथ पकड़ते हुए कहा कि चलो ज्योति चलते हैं। विनीत ने रोकते हुए कहा कि नहीं ज्योति को यहीं रहने दो आपकी अनुपस्थति में आफिस का काम देखेगी । और फिर इसका सेमेस्टर का पेपेर भी तो नजदीक है। ज्योति ने विनीत की हां में हां मिलाया ।और बोली ध्यान रखना अपना और अंकल जी का ,जल्दी वापस आना ।ज्योति कार तक दिगंबर का हाथ पकडे़ हुए गयी और उसे गाड़ी में बैठाकर बोली दिगंबर ए ज्योति कल भी तुम्हारी थी और आज भी । मेरे प्यारे दोस्त आराम से जाओ औऱ जल्दी आओ। मैं अभी यहां से मंदिर जाऊंगी और प्रसाद भी चढाऊंगी कि अंकल जल्दी से ठीक हो जाएँ। यह कहते कहते ज्योति ने दिगंबर की हथेली चूम ली और दिगंबर इसी चेतना में अपने गांव पहुंच गया .        

दिगंबर के पिता जी को अस्पताल से छुट्टी तो मिल गई, लेकिन घर की खेती बाड़ी की जिम्मेदारी अब सब कुछ दिगंबर पर ही आ गई। किसी तरह से दिगम्बर प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा में शामिल हो सका। अंतिम पेपर के दूसरे दिन फिर से दिगंबर की बड़ी बहन का फ़ोन उसके मोबाइल पर आया। दिगंबर की बड़ी बहन ने दिगम्बर से कहा भाई पापा को  हार्ट अटैक आ गया है, तुम जल्दी से घर आ जाओ। हम लोग इन्हें अस्पताल लेकर जा रहे हैं। 112 नंबर सरकारी एंबुलेंस से। किंकर्तव्यविमूढ़ दिगम्बर थोड़ी देर तो अपने छात्रावास के कमरे में कुर्सी पर बैठा रहा। फिर थोड़ी देर बाद उसने बहन को फ़ोन लगाया और पूछा बहन तुम लोग अस्पताल पहुंचे क्या?  रोती हुई बहन ने कहा नहीं भाई हम सब घर आ वापस आ गये अब पापा को  कभी भी अस्पताल ले जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी  अब वे महा पथिक हो गए । दिगम्बर धड़ाम से धरती पर गिर गया पिता का साया सिर से जो उठ गया था। दिगंबर की पढ़ाई में पैसों की दिक्कत न आए उसके पापा श्यामलाल रात और दिन काम करते थे। बडी इच्छा थी कि दिगंबर पढ लिखकर कुछ बन जाएगा तो वर्षों की गरीबी हर लेगा। अच्छी खेती करके बेटा दिगंबर की पढ़ाई का खर्च हर माह भेज ही देते थे। अब कौन भेजेगा? प्रति माह चार हजार रुपए। अभी तो विनीत का भी बहुत एहसान है। दुबारा। उनसे कह भी नहीं सकता हूँ। दिगम्बर रो ही रहा था कि ज्योति का फ़ोन आ गया। बोली जल्दी से कपड़े रख लो गाड़ी तैयार है। जल्दी से घर पहुंचना है। हमारे साथ इस बार विनीत भी चल रहा है। दिगम्बर कुछ पल के लिए अवाक रह गया। ज्योति को तो मैंने अभी बताया ही नहीं था। फिर वह यह कैसे जान गयी कि पापा.. दिगंबर की बड़ी बहन ने फिर से दिगंबर को फ़ोन किया कि भाई मैंने ज्योति को फ़ोन कर दिया है। वह विनीत के साथ तुम्हारे छात्रावस पहुँच रही है। गाड़ी लेकर तुम जल्दी से घर आ जाओ। विनीत, दिगंबर और ज्योति देर रात होते होते जौनपुर अपने घर पहुँच गए। सुबह अंतिम संस्कार के बाद विनीत ने दिगम्बर को कुछ पैसा पकड़ाते हुए कहा कि भाई अंकल जी के क्रिया कर्म में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए।  और तुम किसी भी बात की चिंता मत करना । पैसे के पैकेट को खोल जब ज्योति ने देखा तो उसमें पाँच ₹500 की चार गड्डियां थी। बिनीत अपने ड्राइवर के साथ वहाँ से वापस दिल्ली के लिए चल दिया। चलने से पहले विनीत ने ज्योति के घर पर ज्योति से कहा था कि वह चाहे तो मेरे के साथ ही उसकी गाड़ी में दिल्ली वापस चल सकती है। ज्योति ने दिगंबर पर पड़ी दुख की घड़ी में परिवार के साथ रहना ही उचित समझा और विनीत का धन्यवाद करती हुई बोली आप पहुंचो मैं काम निपटने के बाद आती हुं। ज्योति के ना से विनीत  निराश हो गया और उसी दशा में वह दिल्ली पहुँच गया। रात्रि 11:00 बजे के करीब जब ज्योति अपने घर सोने के लिए बिस्तर पर गयी, तो वह विनीत की अमीरी और दरियादिली के बारे में सोचने लगी। प्रतिदिन डायरी लिखने की आदती ज्योति ने वउस दिन भी डायरी लिखने के लिए कलम और डायरी उठाई। उसने डायरी में लिखा कि सुना था कि अमीरों के पास दिल नहीं होता और यह  विनीत है कि 200,00,00,000 का मालिक भी है और साहज इतना कि ₹4,00,000 एक प्रूफ रीडिंग करने वाले पर खर्च कर गया। विनीत, विनीत, विनीत…. तुम कितने अच्छे हो विनीत सामने दीवार में टाग रहे बड़े शीशे में अपना चेहरा देखती हुई ज्योति ने कहा कि मर्द हो तो विनीत जैसा । आज कितनी उम्मीद से विनीत ने मुझे अपने साथ गाड़ी में वापस दिल्ली जाने के लिए कहा था। लेकिन मैं निकली मूर्ख की 200,00,00,000 के मालिक की बात टाल दी। खैर अगर कल विनीत फिर फ़ोन करेगा और कहेगा तो मैं यहाँ से कोई न कोई बहाना करके चली जाऊँगी। पूरी रात कभी ज्योति तकिये को सीने के नीचे दबाती तो कभी तकिये को सीने के ऊपर।

 सुबह हुई और विनीत का फ़ोन ज्योति के फ़ोन पर आ ही गया। ज्योति ने कहा, विनीत सॉरी विनीत ने कहा कि इस बात के लिए। ज्योति ने कहा, मैंने तुम्हारी बात कल नहीं माना कल मुझे तुम्हारे साथ चलना चाहिए था। लेकिन फिर यहाँ दिगंबर और दुखी हो जाता, और परिवार वाले भी तो… लेकिन काम निपटते ही मैं सीधे दिल्ली तुम्हारे पास आ रही हूँ। तुम बहुत अच्छे हो विनीत। कल पूरे दो चार गांव में तुम्हारी दरियादिली की बात पहुँच गई। सब तुम्हारी तारीफ कर रहे थे कितना बड़ा अमीर आदमी होकर इतना सरल है मैं तो यार रात भर सोई नहीं, बस तुम्हे ही याद करती रहीं थैंक यू यार, सो नाइस।

 ज्योति की बात सुनकर विनीत बिस्तर से उछल पड़ा बोला पैसे में बहुत ताकत है। अब समझ आएगा दिगम्बर को। जो इतनr खूबसूरत और तेज तर्रार पढ़ी लिखी लड़की का बिन ब्याहे ही मालिक बन बैठा था । आई लव यू ज्योति मैं तो तिम पर लुट गया, तुम्हारे मोहक सौंदर्य पर अपने 200,00,00,000 वार दूँ। वैसे भी आज तक मुझे पिता के अलावा किसी महिला का सच्चा प्यार मिला ही नहीं है। अब मज़ा आएगा ज्योति आ  जाय बस । तुरंत शादी करके उसे लेकर हनीमून पर चला जाऊंगा और खूब इंज्वाय करूंगा। आज विनीत ने सुबह-सुबह ही बोदका का एक पैक भी लगा लिया। अब प्रतिदिन सुबह शाम ज्योति और विनीत घंटों-घंटों बातें करने लगे। ज्योति ने एक रात सोने गयी और डायरी उठायी लिखने के लिए और थोडी देर के बाद उसकी कलम डायरी पर चल पडी। उसने लिखा प्रिय दिगंबर तुम मेरे सच्चे और प्यारे मित्र तुम बचपन से ही मुझे पसंद करते हो । मेरे हर मौके पर तुमने हमारा बहुत साथ भी दिया है। रात दिन तुम मेरे बारे में जागे हो। आज मैं जो कुछ भी पढ़ लिख पायी हूं वह सब कुछ तुम्हारी वजह से संभव है । इतना बड़ा और इतना अच्छा आदमी विनीत भी मुझे तुम्हारी वजह से ही मिला है। मेरे बहुत अच्छे और प्यारे मित्र हो आप, और रहोगे भी जब याद करोगे मुझे साथ पाओगे, विनीत से कहकर मैं तुम्हारी तनख्वाह रचना पब्लिकेशन में बढ़वा दूंगी। कहोगे तो तुम्हें विनीत की एक गाड़ी भी दिला दूंगी। अब समय आ गया है कि मैं अपने पर तुम्हारे द्वारा किया गया एहसान उतार दूँ कारण की अब तुम्हारी आर्थिक हालत पहले से भी खराब हो गई है। मैं तुम्हारे लिए एक अच्छी सी लड़की ढूंढकर तुम्हारी शादी भी करवा दूंगी। और तुम्हारी शादी के सारे खर्चे भी मैं ही उठाउंगी। मुझे माफ़ करना मैं अब  विनीत को जुबान दे चुकी हूँ और आज से 10 दिन बाद मैं विनीत से शादी करने जा रही हूँ। हमने तो हनीमून पर भी जाने की तैयारी कर ली है।

 दूसरी सुबह ज्योति अपना ब्रीफकेस लेकर दिगंबर के घर उससे मिलकर यह बताने गयी कि वह दिल्ली के लिए निकल रही है। दिगंबर ने कहा ज्योति ये क्या है? और इतनी भी जल्दी क्या है? और मैं भी तो चलूँगा। क्योंकि मुझे पढ़ना भी है और विनीत का मुझपर बहुत बड़ा अहसान है  विनीत ने पूरे 4,00,000 रुपए दिए हैं मुझे। कौन करता है ऐसा यार? वह तो मेरे लिए भगवान से भी बढ़कर है। इस जन्म में उसका पैसा उतार ले जाऊं तो बहुत बड़ी बात और उसका एहसान तो अगले कितने जन्मों तक …। ज्योति ने दिगंबर का हाथ पकड़ते हुए कहा कि तुम मेरे परम मित्र हो इसलिए तुमसे कह रही हूँ कि तुम यहाँ के काम निपटा कर आना। कम से कम हम दोनों में से कोई एक तो हो उसके पास, नहीं तो वह सोचेगा कि हम उसके पैसे  लेकर ही गायब हो गए सब। दिगम्बर को ज्योति की यह सलाह अच्छी लगी और उसने कहा सही कहा तुमने? तुम पहुँचो अगले सप्ताह मैं भी आ रहा हूँ। ना होगा तो मम्मी अकेली हैं, इन्हें भी लेकर आ जाऊंगा। छात्रावास छोड़कर वहां किसी छोटी कॉलोनी में कमरा ले लूँगा और कुछ दिन विनीत से कह कर उसके यहां नौकरी भी कर लूँगा, उसमें ओवर टाइम भी करूँगा और विनीत का कर्जा उतारने की कोशिश करूँगा। ज्योति ने कहा सही है, वह निकल गई। वह जौनपुर से सीधा बनारस बाबतपुर हवाईअड्डा गई। विनीत ने उसका हवाई जहाज का बनारस से दिल्ली का टिकट पहले ही करा दिया था। वह दिल्ली पहुंची तो अचानक से विनीत की तबियत बहुत खराब हो गई। और उसकी विनीत से सीधी मुलाकात दिल्ली एम्स अस्पताल में हुई। ज्योति ने विनीत का अस्पताल में बहुत ख्याल रखा अस्पताल से छुट्टी मिलने पर। विनीत के साथ ज्योति भी पहली बार उसकी कोठी पर गयी। कोठी की शान शौकत देख वह अवाक रह गई। और बोली विनीत तुम तो बहुत बड़े आदमी हो तुम इतने बड़े घर में अकेले रहते हो। विनीत ने कहा नहीं मेरे पापा हर पल मेरी यादों में रहते हैं और साए के साथ मेरे साथ, और अब तुम आ गई हो जो साथ रहने के लिए, अब तक तो यह केवल भूतिया डेरा था। तुम्हारे आने से अब यह घर हो जाएगा।  ज्योति हंस पड़ी और बोली ए मिस्टर पहले शादी तो हो जाए। परसों शादी और उससे पहले आप अस्पताल में। इससे भला तो मेरा दिगम्बर ही था कि गरीबी की बदहाली में भी मुझे खुश रखने की वजह से कभी बीमार न पड़ा। यह सुनकर विनीत बिल्कुल शांत हो गया। ज्योति ने विनीत से कहा मैं मजाक कर रही थी। विनीत ने कहा, मुझे तो मजाक से भी डर लगता है। ये दिगम्बर तुम्हारे दिल से हमारी शादी के बाद भी नहीं निकलेगा क्या । ज्योति ने कहा वह तो मेरे रोम- रोम में बसा है। लेकिन दिल और दिमाग में तो अब तुम हो। अच्छा जी रोम- रोम में रहकर सारा मज़ा दिगम्बर लें। दिल और दिमाग में रहकर मैं झुनझुना बजाऊंगा क्या? ज्योति सोच लो तुम दिगंबर की हो या मेरी। ज्योति ने कहा अभी तो फिलहाल विनीत की। विनीत ने ज्योति का हाथ पकड़ा और कहा अच्छा तो चलो फिर हम बिस्तर हो जाते हैं। जिस पल से तुम्हें देखा हूँ दारू कम, तुम्हारी यादें ज्यादा पीता हूँ। ज्योति ने हाथ छुड़ाते हुए कहा विनीत शादी से पहले क्या यह ठीक होगा? विनीत ने कहा मैं शादी से पहले अपनी होने वाली बीवी के साथ ही तो संबंध बनाने जा रहा हूँ। ज्योति और फिर तुम्हारा शरीर भी तो तप रहा है शीतलता तो तुम्हे भी चाहिए। ज्योति  विनीत के साथ हम बिस्तर हो गयी। इन दोनों ने फैसला किया कि अब शादी अगले महीने करेंगे। पहले खूब जिंदगी जी लें। ज्योति और विनीत साथ-साथ आफिस जाते और आते दोनों बिना ब्याह सामाजिक रूप से अमान्यता प्राप्त लिव इन रिलेशन संबंध में रहने लगे।

  एक सुबह ज्योति ने अपना ब्रीफकेस खोला तो उसकी डायरी उसमें नहीं थी। उसने घर पर भाभी को फोन किया और बोली भाभी मेरे रूम में देखना, आलमारी में एक हैंड पर्स पड़ा है क्या। भाभी ने देखा और बताया की हाँ है तो, लेकिन इसमें बहुत छोटा सा ताला भी लगा है।  ज्योति बोली हा उसंमें में मेरा कुछ ज़रूरी और पर्सनल सामान पड़ा है। कल दिगम्बर आ रहा है, उसे यह पर्स दे दीजिएगा। मैं बोल देती हूँ, वह ले आएगा।

 जब दिगम्बर घर से निकल रहा था तो ज्योति ने फ़ोन करके कहा ए मिस्टर दिगंबर मेरा पर्स ज़रा संभाल कर लाना। दिगम्बर ट्रेन में बैठा तो अपने उसी बैग को सीट पर लेटते हुए तकिया के रूप में। सिरहाँने लगा लिया तो उसमें ज्योति के बैग में लगा ताला उसके सिर में चुभ रहा था। जब उसने उसे निकालकर सीधा करना चाहा तो वह खुल गया। पर्श खुलते ही दिगंबर ने उस बैग में पड़ी डायरी बाहर निकाल लिया और पढ़ने लगा। डायरी का अंतिम  लिखा हुआ पन्ना पढ़ा तो चीख पड़ा, बोला ज्योति और विनीत तुम दोनों की जिंदगी हराम कर दूंगा। उसने ज्योति का फ़ोन मिलाया और फिर विनीत का भी दोनों के दोनों नंबर बंद आ रहे थे।  दिगम्बर सीट से उठकर गेट पर गया। गेट पर जाकर वहां खड़ा हो गया। और बोला वाह रे किस्मत उधर पिता गए और इधर ज्योति फिर अब किसके लिए जीना है? वह चलती ट्रेन से छलांग लगा दिया। छलांग लगाते समय दिगंबर के हाथ में ज्योति की वही डायरी थी। थोड़ी देर बाद सुबह हुई दिगंबर की लाश पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दी गई। और उस डायरी पर ज्योति ने अपना नंबर लिखा था तो पुलिस ने ज्योति को फ़ोन करके बताया कि दिगंबर नाम के आदमी ने ट्रेन से छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली है । और उसके पास से एक डायरी बरामद हुई जिस पर आपका नाम और आपका फ़ोन नंबर भी लिखा हुआ है। ज्योति तो बहुत दुखी हुई। लेकिन विनीत इस बात से बहुत खुश हुआ। शीशे में टी शर्ट की कॉलर सीधा करता हुआ बोला, ज्योति अब तो दिगम्बर भी रास्ते से हट गया। ज्योति अब दुखी रहने लगी उसने। सारी की सारी गलती मेरी है। दिगंबर ने मुझे इतना चाहा कि उसने मेरे लिए अपनी जान भी दे दी।

दिगंबर की मौत के एक सप्ताह बाद विनीत और ज्योति विनीत के एक मित्र के यहाँ से देर रात पार्टी से वापस आ रहे थे तो गाड़ी विनीत ही चला रहा था। उस दिन विनीत का ड्राइवर छुट्टी पर था। विनीत ने कुछ पी भी रखी थी और गाड़ी भी चला रहा था और गाड़ी दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रा मार्ग से लेकर बढ़ रहा था कि उसे  बीच सड़क पर दिगंबर खड़ा दिखा। विनीत ने तेज हार्न बजाया, ब्रेक मारा, गाड़ी रुकी तो विनीत हांफता हुआ जल्दी से गाड़ी के नीचेउतर कर  देखने लगा इसने सोचा दिगम्बर जिंदा था और उसका मेरी कार से एक्सीडेंट हो गया। उसने कार के सामने देखा तो कुछ भी नहीं था ना ही कार के नीचे  कुछ था वह हैरान रह गया। गाड़ी में अंदर बैठकर बोला। कि लगता है मैंने दारू ज्यादा पी लिया है। ज्योति ने कहा लेकिन पिया तो तुमने है ना? मैंने तो नहीं मैंने भी दिगम्बर को साफ -साफ सड़क पर देखा है। यह क्या क्या हो रहा है हम सब के साथ। उसी समय ज्योति ने देखा कि जब पहले दिन जब रचना पब्लिकेशन से इंटरव्यू देकर वह दिगंबर के साथ यूनिवर्सिटी वापस आई थी  और  फिर दूसरे दिन उसकी बहसदिगंबर के साथ हुई थी तो वह उस समय एक बेंच पर बैठी  थी। वह वही स्थान था,  बेंच रोड साइड में लगी हुई थी जहां घटना घटी थी। और बहस  उसे याद आया कि बहस के दौरान जब ज्योति ने दिगम्बर से कहा था कि एक  दिन वह विनीत की हो जाएगी, विनीत उसे भगा ले जाएगा । तब दिगंबर ने कहा था कि फिर मैं भूत बनकर तुम्हारे बदन में समा जाऊंगा। वह यह बात सोच और दिगंबर की मौत सोच सिहर गई। और विनीत से चिल्ला कर बोली जल्दी गाड़ी में बैठो और चलो यहाँ से। विनीत भी गाड़ी में बैठ गया और गाड़ी स्टार्ट करके चल दिया तो ज्योति के पैरों के दोनों पंजों में इस तरह गुदगुदी होने लगी जैसे कोई हाथ से गुदगुदा रहा हो। वह कभी पैर उठाकर सीट पर दोनों हाथों से दबाती तो कभी पैर झटकने लगती। विनीत ने कहा, ज्योति तुम्हें दिगंबर को फोबिया हो गया है , वह बोलीं मेरा बैठना दुर्लभ हुआ है और तुम्हें को फोबिया नजर आ रहा है। विनीत और दिगम्बर की बात सही हो गई। उसने मुझसे यही कहा था कि अगर मैं विनीत की हुई। तो वह भूत बनकर मेरे शरीर में समा जाएगा, आज वही हो रहा है। विनीत ने कहा अच्छा, अगर वह भूत है तो मैं महाभूत।

दिगंबर का भूत
Image source meta ai

अगर हिम्मत है तो मेरे सामने आए वह। यह मत भूलो कि  उस पर मेरा कर्ज भी तो है। और कर्ज में दबा चाहे इंसान हो या भूत निगाह निगाह उठाकर बात करने की इनकी हैसियत नहीं होती है। गाड़ी माल रोड की रेड लाइट पर रुक गई और ग्रीन लाइट होते ही वह रेड लाइट पार कर गई। विनीत गाड़ी चला ही रहा था कि उसके दोनों हाथों में बहुत तेज गुदगुदी होने लगी। वह कभी इस स्टेयरिंग छोड़ देता तो कभी पकड़ लेता। थोड़ी देर बाद वह बहुत ज़ोर -ज़ोर से हंसने लगा। पेट्रोल पंप पर गाड़ी खड़ी करके ज़ोर- ज़ोर से हंसने लगा। विनीत ने ज्योति से कहा कि ज्योति मेरे पूरे शरीर में कभी इधर तो कभी उधर गुदगुदी हो रही है। वह हंसते -हंसते कभी जमीन पर लेट जाता तो कभी गाड़ी की सीट पर जाकर बैठ जाता। एक समय तो ऐसा भी आ गया कि विनीत ने अपना पैंट और शर्ट भी उतार दिया और जमीन पर लोट लोट कर हंसने लगा। देर रात्रि को उधर से इक्का- दुक्का वाहन गुजर रहे थे। गाड़ियों में बैठे लोग विनीत की हरकत देख कुछ पल के लिए रुकते और फिर यह कहते हुए निकल जाते कि जब नहीं संभाली जाती तो इतना अधिक पीने की क्या जरूरत ही है? पीकर अब यहाँ रोड पर नाटक कर रहा है । और लोट रहा है। और रात के अंधेरे में छोकरी लेकर घूम रहा है। विनीत की हरकत देख एक काले रंग की मर्सिडीज विनीत की गाड़ी के पास आकर रुक गई। उसमें से दो लोग उतरे और विनीत के ऊपर दो बोतल पानी डालकर बोले भाई इसे जूता सुंघओ सुना है जब मिर्गी आती है तो जूता सुंघाने से ठीक हो जाती। और उसमें से  दूसरे ने कहा हाँ भाई इस तो दारूवाली मिर्गी  है, जूते मारने से भी ठीक हो सकती है। और ज्योति के करीब दोनों आए और बोले क्या मैडम? इतनी खूबसूरती लेकरइस झंडू के साथ रात खराब क्यों कर रही हो यह तो आपको रात को…. । चलिए मेरे साथ आप जैसी पर तो मैं अपना पांच सौ करोड वार दूं। ज्योति ने कहा दो सौ की लालच में तो मेरा यह हाल हुआ है। अब पांच सौ करोड की लालच में पडूंगी तो न जाने क्या होगा। लालच बुरी बला है। आप लोग जाओ। और वे मेरे होने वाले पति है, अभी 5 मिनट में ठीक हो जाएंगे। दूसरे ने कहा अरे चलो ना मैडम रात अच्छी गुजरेगी हम दोनों में जोश भरपूर और आप में जवानी भरपूर। शराब का नशेड़ी रात अकेले में जवान लड़की पर बिजली बनकर टूट पड़ता है। ज्योति चिल्ला पड़ी विनीत बचाओ मुझे विनीत उठा तो बड़े ज़ोर से लेकिन पेट पर हाथ रखकर हंसता हुआ बोला अबे साले तू भी हसना चाहता है। जो गल्ती मैंने की वही तुम कर रहे हो। वह जिसकी प्रेमिका है वह तो साला भांग का गोला है । जैसे भांग के गोले को इंसान खाकर उड़ने लगता है और हंसता ही रहता है। वैसे ही दिगंबर की प्रेमिका भांग का गोला है। जो खायेगा वह हंसता ही रहेगा। उन दोनों में से एक को ज्यादा ही लगी थी। देर रात की वजह से। सुनसान भी था। उसने ज्योति को पकड़ना चाहा कि उसके पेट में भी गुदगुदी होने लगी और वह भी दिगंबर की तरह हंसते- हंसते लौट गया। लोट लोट कर वह हंसने लगा। दूसरे ने कहा ये चुड़ैल है क्या? जो सबको हंसा रही है। उसने ज्योति को देखा कि कहीं इसके हाथ पैर उल्टे तो नहीं है। क्योंकि बचपन में उसकी दादी उसको कहानियाँ सुनाया करती थी कि चुड़ैल? का सिर हाथ और पैर इंसानों के विपरीत दिशा में होते हैं।  उसने ज्योति को सब तरफ से देखा। तो उसे निश्चय हुआ की नहीं या चुड़ैल नहीं, लड़की ही है। उसने ज्योति को पकड़ना चाहा। और उसका हाथ बढ़ा ही था कि उसके गाल पर ज्योति ने एक तमाचा जड़ा। ज्योति ने कहा अबे साले लड़की हूँ रात में सुनसान सड़क पर परेशानी में खड़ी हूं तो क्या तू मेरा शरीर नोचेगा। तू भूल गया की मैं नारी हूं । तमाचा लगने के साथ वह भी पीछे हट गया। उसकी पीठ, गर्दन और जांघों में बहुत तेज गुदगुदी होने लगी। देखते ही देखते विनीत और वे दोनों सब लोग गुदगुदी के शिकार हो गए। गुदगुदी से परेशान होकर इन तीनों ने अपनी पैंट शर्ट उतार कर। सड़क पर पैर रगडना शुरू कर दिए।  कभी हाथ तो  तो कभी सिर पकड़ते। कभी दोनों हाथों से आंखें बंद कर लेते और अब इनमें से कोई भी ज्योति की तरफ देखने से डर रहा था। अब धीरे- धीरे। वहाँ खड़ी दोनों मर्सिडीज भी कभी आगे हो जाती तों, कभी पीछे, कभी थोड़ी ऊपर उठ जातीं फिर ऊपर से नीचे गिर जातीं । देखते ही देखते दोनों मर्सिडीज जैसे  डांस करने होड़  में लगी हो वैसे ही घूमने लगी। लग रहा था कि जैसे वे दोनों मर्सिडीज भी डांस करने लगे। यह सब देख। ज्योति का शरीर बहुत तेज कांपने लगा। वह ज़ोर -ज़ोर से चीखने लगी। वह बहुत तेज रोने और चिल्लाने भी लगी। बगल में सो रही उसकी भाभी ने उसे झकझोर कर जगाया। ज्योति क्या हुआ? वह एक झटके में उठकर बैठ गई और रोने लगी। अभी मेरा दिगम्बर कहां है, कैसा है? बहुत बुरा सपना देख रही थी भाभी। मुझे अभी दिगंबर के पास जाना है। भाभी ने कहा अभी तो रात है सो जाओ। ज्योति ने देखा कि रात्रि के 4:00 बज रहे थे। सुबह होते ही वह अपनी स्कूटी निकाली और दिगंबर के घर पहुँच गई। दिगम्बर से बोली ऐ मिस्टर दिगंबर के भूत इधर आओ। दिगम्बर ज्योति के पास आया ज्योति के पास बैठ गया बोला बताो कैसी हो।  ज्योति ने कहा यार कल रात गबजब स्व्न आया और फिर उसने सिलसिलेवार तरीके से दिगंबर को पूरा स्वप्न सुनाया, जो सब कुछ उसने देखा था -। दिगम्बर ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा, और बोला कि हां तो और क्या अगर तुम विनीत की हुई तो मैं भूत बनकर तुम्हारे शरीर में बस जाऊंगा और फिर देखना…..अभी तो सिर्फ सोचने भर से यह हाल है । ज्योति बोली हाँ दिगम्बर यार तुम तो भूत निकले। अब ये बताओ भूत अपनी ज्योति से शादी कब कर रहा है? दिगंबर ने कहा, ज्योति अभी पिताजी को मरे एक। माह ही हुए हैं और विनीत जी का भी तो बहुत अहसान है मुझपर उनके 4,00,000 भी तो देने हैं । ज्योति ने कहा हाँ यह तो सही बात है, फिर पढ़ाई भी चलो देखते हैं। ज्योति और दिगंबर चाय पी ही रहे थे कि रामदीन एलआईसी एजेंट विनीत के दरवाजे पर आकर मोटरसाइकिल खड़ी किये और विनीत के बगल दिगंबर के बगल खाली पडी कुर्सी पर आकर बैठ गए। बोले बेटा दिगम्बर तुम्हारे बाबूजी ने दस लाख का जीवन बीमा ले रखा था। अब उनकी मौत पर उसका कुल डेथ क्लेम 16,50,000 के करीब बन रहा है। पॉलिसी बांड दे दीजिए और अपनी माता जी का आधार कार्ड पैन कार्ड बैंक खाता डिटेल दे दीजिए। और इस  डेथ क्लेम फॉर्म पर हस्ताक्षर भी करा दीजिए। दस दिन में भुगतान हो जाएगा। दिगम्बर कुर्सी से उठा और रामदीन के पैर छूते हुए बोला दिगम्बर  अंकल मुझे माफ कर देना जब भी आप हमारे घर आते थे और पिताजी को बीमा की बात बताते थे तो मुझे आप पर बहुत गुस्सा आता था मैं सोचता था। क्या ये फालतू की चीजें? लेकर आप पापा को समझाने चले आते हैं। लेकिन आज समझ में आया। जीवन बीमा जीवन के लिए कितना जरूरी है।  किसी व्यक्ति की आमदनी यदि एक रूपसे की हो तो कम से कम उसे 20-25 पैसे का जीवन बीमा जरूर कराकर कर रख लेना चाहिए असामयिक मृत्यु के समय यह बीमा बच्चों के लिए ढालबनकर रक्षा करता है। लेकिन अंकल पापाप ने कभी मुझे बताया नहीं इस बारे में । रामदीन जी बोले कि वह तुम्हारी गुसेसा से डरते थे इस लिए ही मुझे भी मना कर रखे थे । ज्योति ने कहा वाह यह तो  बीमा जीवन के लिए जरूरी है। इतना कि  जैसे दिगंबर का भूत। दिगंबर ने कहा अ्ंकल पापा ने तो हमारी सारी समस्या ही खत्म कर दी। ज्योति अब इससे हम विनीत के कर्ज भी उतार देंगे और अपनी पढ़ाई और शादी… ज्योति हंसती हुई बोली हाँ बाबा न तो तुम फिर भूत बनकर हमें सताने लगोगे………. मिलते हैं आगे के भाग में

लेखक – ( रचनाकर ) एम. ए. हिन्दी और पी. जी डिप्लोमा हिन्दी पत्रकारिता दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली से हैं ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *