रमेश कुमार मिश्र

वर्ष  बीस रहे  संग हम साथिया.

उलझनों ने हमें फासला दे दिया.

कौन था फिर सही कौन था फिर गलत. 

ए कहने का हमको हौसला दे दिया.

दर्द सीने में मेरे दफन है सुनो.

दर्द सहने की तुमने वजह दे दिया.

तेरे खातिर जमाने से रुसवा हुई.

तूने बेवफा कहने की तुझको वजह दे दिया.

फूल हमने जना इस चमन के लिए.

फूल को ही हमने दगा दे दिया.

दर्द क्या तेरे मेरे सीने में है.

सोच हमने सुमन को चमन क्या दिया.

दर्दे  महफ़िल सजेगी तेरी भी मेरी भी.

क्या कहेगा मुन्ना मेरे मम्मी पापा का तलाक हो गया.

लेखक – दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी में परास्नातक व हिन्दी परास्नातक पत्रकारिता डिप्लोमा हैं

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