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ठाकुर प्रसाद मिश्र

Thakur Prasad Mishra

वंजर मरुभूमि का भी उच्च भाल हो गया ।

श्वेत पंख ओढ कैक भी मराल हो गया ।

कागज के फूल में सुगंधि इत्र की बसी

प्रकृति महान की महानता जहां लसी ।

खा रही है यज्ञ भाग राक्षसी न रोक है ।

म्लेक्ष पाशकपिला रभां रही सशोक है ।

कुक्कुट सारिका से सम्प्रति महान है ।

शुचिता परित्यक्ता अशुचिता का मान है ।

म्लेक्ष वृत्ति शक्तियों का अट्टहास गूंजता ।

चाटूकार जगत को है चाटुकार पूजता ।

मिथ्या अभिमान काही नशा अति प्रचंड है ।

अर्थहीन आसन का अनुपम घमंड है ।

न्याय नाम से विरत जो न्याय वो क्या करेगा ।

स्वारथी तज स्वार्थ परमार्थ को वरेगा क्या।

कटुभाषी दंभी से मानवीय कामना ।

आतुर विष कुंभ से हैं अमृत रस मांगना ।

वृद्ध जन मनोरथ सब इंद्रजाल खो गया ।

आहत मर्यादा कंकड प्रवाल हो गया ।

लेखक- हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं । प्रकाशित हिंदी उपन्यास रद्दी के पन्ने 

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