ग़ज़ल

लब- ए- ख़ामोश

डा. संदीप लब-ए-ख़ामोश से जो अफ़साने बयाँ न हुए कभी आईना-ए-निगाह दिल के सारे फ़साने कह गए अगर तुम न बताना चाहो तो मत बताना किसी को नज़्मकार -पत्रकार, लेखक,…

नूर-ए-महताब

डाक्टर संदीप आज फिर चेहरे पर उसके शादाब देखा खुली निग़ाहों से दिलकश ख़्वाब देखा.. थम गया नज़र में मेरी ये मंज़र सारा जब सड़क पर चलता नूर-ए-महताब देखा..!! वो…

इश्क़

रमेश कुमार मिश्र मैं शहर जो बना तेरे ऐतबार में.तुम शहर छोड़कर यूँ चले क्यों गए? कोई शिकवा नहीं जुस्तजू भी नहीं.यूँ चले भी गए तो कहाँ जाओगे? रोशनी शाम…