धननाश मनस्ताप गृह क्लेश स्वयं का ठगा जाना और अपमान कभी किसी दूसरे को नहीं बताएं –आचार्य चाणक्य

धननाश मनस्ताप गृह क्लेश स्वयं का अपमान कभी किसी दूसरे को न बताएं –आचार्य चाणक्यimage source chat gpt

रमेश कुमार मिश्र

धननाश मनस्ताप गृह क्लेश स्वयं का अपमान कभी किसी दूसरे को न बताएं –आचार्य चाणक्य

आचार्य चाण्क्य एक महान राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री और दार्शनिक थे । आचार्य चाणक्य द्वारा लिखित राजनीति और अर्थशास्त्र नामक पुस्तक राजनीति ,आर्थशास्त्र और प्रशासन पर एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसी प्रकार उनके द्वारा लिखित दूसरी पुस्तक नीतिशास्त्र जीवन के विविध आयामों पर महत्वपूर्ण नीतियां व सिद्धांत हैं । वे अपने इसी ग्रंथ में जीवन के लिए आवश्यक गोपनीयता को बनाए रखने पर जोर देते हुए इस ओर इशारा करते हैं कि यदि व्यक्ति किसी भी प्रकार की कमजोरी को समाज में अन्य लोगों के समक्ष उजागर करता है तो कमजोर होने के साथ-साथ जग हसाई का भी पात्र बनता है । वह श्लोक इस प्रकार है—

अर्थनाशं मनस्तापं गृहे दुश्चरितानि च

वंचनं चापमानं च मतिमानं प्रकाश्यते ।।   

आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में कई महत्वपूर्ण बातें बताई हैं, जिनमें से एक यह है कि अर्थनाश (धन का नाश) के बारे में किसी को नहीं बताना चाहिए। इसका कारण यह है कि जब व्यक्ति अपनी आर्थिक हानि के बारे में दूसरों को बताता है, तो इससे उसकी समाज में प्रतिष्ठा कम हो सकती है और लोग उसका लाभ उठाने की कोशिश कर सकते हैं।

चाणक्य के अनुसार, कुछ बातें गुप्त रखनी चाहिए, ताकि व्यक्ति को समाज में अनावश्यक आलोचना या अपमान का सामना न करना पड़े। आर्थिक स्थिति और व्यक्तिगत समस्याओं को छुपाकर रखने से व्यक्ति के आत्मविश्वास पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता, और वह कठिनाइयों का समाधान खोजने में सक्षम रहता है।

चाणक्य नीति में यह भी कहा गया है कि अपनी कमजोरियों और कठिनाइयों को दूसरों के सामने उजागर करना आपको और अधिक कमजोर बना सकता है।

आचार्य चाणक्य के अनुसार, मनस्ताप (मानसिक पीड़ा या चिंता) के बारे में किसी को नहीं बताना चाहिए। चाणक्य नीति में यह कहा गया है कि मनुष्य को अपनी आंतरिक पीड़ा और भावनात्मक समस्याओं को दूसरों के सामने प्रकट नहीं करना चाहिए। इसका कारण यह है कि अगर कोई व्यक्ति अपनी मानसिक या भावनात्मक कमजोरियों को सार्वजनिक करता है, तो लोग उसका फायदा उठा सकते हैं या उसे कमजोर समझ सकते हैं।

चाणक्य की दृष्टि में, समाज में कुछ लोग आपकी पीड़ा को समझने के बजाय उसका गलत उपयोग कर सकते हैं। अपनी मानसिक चिंताओं को छुपाकर रखने से व्यक्ति मानसिक रूप से अधिक मजबूत बनता है और विपरीत परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता विकसित करता है।

इसलिए, चाणक्य का मानना था कि अपनी व्यक्तिगत चिंताओं, कष्टों और कमजोरियों को अपने भीतर ही संभालना चाहिए और उचित समय पर उनका समाधान खोजना चाहिए, बजाय इसके कि उन पर दूसरों की प्रतिक्रिया प्राप्त की जाए।

आचार्य चाणक्य के अनुसार, गृह के दुश्चरित्र (घर के अंदर होने वाली गलतियाँ या कदाचार) को भी किसी बाहरी व्यक्ति को नहीं बताना चाहिए। चाणक्य नीति में यह सिद्धांत बताया गया है कि घर के भीतर की समस्याओं, गलतियों या गुप्त बातों को सार्वजनिक नहीं करना चाहिए।

अगर कोई व्यक्ति अपने परिवार की आंतरिक गलतियों या कदाचारों को दूसरों के सामने प्रकट करता है, तो इससे न केवल उसकी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा प्रभावित होती है, बल्कि पूरे परिवार की प्रतिष्ठा भी समाज में कम हो सकती है। यह परिवार के भीतर की एकता और सम्मान को भी खतरे में डाल सकता है।

चाणक्य ने यह सिखाया कि घर की बातों को गुप्त रखना चाहिए और उन्हें घर के भीतर ही सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए। बाहरी लोग इन बातों का गलत फायदा उठा सकते हैं या आपके और आपके परिवार के बारे में नकारात्मक धारणाएँ बना सकते हैं। इसलिए, घर की समस्याओं को निजी रखना और उन्हें आपसी समझ से सुलझाना चाणक्य की नीति के अनुसार सही माना गया है।

आचार्य चाणक्य के अनुसार वंचनं यदि आप किसी के द्वारा ठग लिए गये हों तो इस बात को अपने मन के अंदर गोपनीयता बनाकर रखना चाहिए । अन्यथा जग हंसाई के साथ लोग दूसरे मौके की तलाश में रहते हैं कि दुबारा उसे कब और कैसे बेवकूफ बनाकर ठगा जाए ।

आचार्य चाणक्य के अनुसार, अगर किसी का अपमान हो जाए, तो उसे दूसरों के सामने प्रकट नहीं करना चाहिए। यह चाणक्य नीति की एक महत्वपूर्ण सीख है। इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि यदि कोई व्यक्ति अपने अपमान को सार्वजनिक करता है, तो इससे उसकी प्रतिष्ठा और भी अधिक घट सकती है, और लोग उसकी कमजोरी का फायदा उठाने का प्रयास कर सकते हैं।

चाणक्य का मानना था कि व्यक्ति को अपने अपमान को चुपचाप सहन करना चाहिए और धैर्यपूर्वक सही समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए। अपमान को दूसरों को बताने से व्यक्ति कमजोर और असहाय प्रतीत हो सकता है, जबकि अपने अपमान को भीतर रखते हुए सही समय और अवसर पर उसका प्रतिकार करना समझदारी और शक्ति का प्रतीक होता है।

इस संदर्भ में, चाणक्य ने यह सलाह दी है कि:

  1. धैर्य और संयम: अपमान की स्थिति में तुरंत प्रतिक्रिया देने के बजाय धैर्य रखना चाहिए और अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना चाहिए।
  2. समस्याओं का हल स्वयं खोजना: अपनी अपमानजनक स्थिति को दूसरों के सामने प्रकट करने के बजाय, व्यक्ति को स्वयं उसका समाधान ढूंढना चाहिए, जिससे वह मजबूत और आत्मनिर्भर बने।
  3. गोपनीयता बनाए रखना: अपमान को सार्वजनिक करने से व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा और कमजोरियों का खुलासा हो सकता है, जो उसके लिए हानिकारक हो सकता है।

इसलिए, चाणक्य के अनुसार अपमान की स्थिति को बुद्धिमानी और धैर्य के साथ संभालना चाहिए और इसे सार्वजनिक नहीं करना चाहिए।

अन्यत्र हिंदी के कवि अब्दुर्रहीम खाना जी का यह दोहा भी इस प्रकार के ही हमें संदेश देता है— 

रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय ।

सुनि अठिलैहें लोग सब, बांटि न लैहैं कोय ।।

रहिमन निज-मन की बिथा मन ही राखो गोय” का अर्थ है कि अपनी मन की पीड़ा या दुःख को अपने मन में ही छुपाकर रखना चाहिए और उसे दूसरों के सामने प्रकट नहीं करना चाहिए। यह प्रसिद्ध दोहा कवि रहीम (अब्दुर्रहीम खानखाना) द्वारा रचित है, जिसमें उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि व्यक्ति को अपनी आंतरिक पीड़ा और परेशानियों को दुनिया के सामने व्यक्त नहीं करना चाहिए, क्योंकि दूसरों के सामने अपनी तकलीफें जाहिर करने से वे आपकी मदद करने के बजाय और अधिक कष्ट दे सकते हैं या आपका मजाक उड़ा सकते हैं।

इस दोहे की व्याख्या इस प्रकार है:

रहिमन निज-मन की बिथा, मन ही राखो गोय”

  • रहीम कह रहे हैं कि अपने मन की व्यथा (दुःख, पीड़ा) को अपने मन में ही छुपाकर रखना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि दूसरों के सामने अपनी भावनाओं और कष्टों को प्रकट करने से बचना चाहिए, क्योंकि हर कोई आपके दर्द को समझ नहीं सकता और कुछ लोग आपकी समस्याओं को सुनकर उपेक्षा या मजाक भी कर सकते हैं।

सुनि अठिलैहें लोग सब, बांटि न लैहैं कोय”

  • जब आप दूसरों को अपनी तकलीफें बताते हैं, तो लोग केवल आपकी बात सुनते हैं और कभी-कभी सहानुभूति दिखाते हुए भी उस तकलीफ को बांटने या कम करने की कोशिश नहीं करते। लोग आपकी समस्याओं का हल नहीं कर पाते, बल्कि केवल आपकी कमजोरियों को जान जाते हैं। कुछ लोग आपकी कठिनाइयों का मजाक भी बना सकते हैं या उसका गलत फायदा उठा सकते हैं।

सारांश: इस दोहे में रहीम ने यह समझाया है कि हमें अपनी भावनाओं और परेशानियों को भीतर ही रखना चाहिए, क्योंकि दुनिया से मदद या सहानुभूति की अपेक्षा करना हमेशा उचित नहीं होता। समस्याओं का समाधान हमें खुद ही ढूंढना चाहिए और अपने दुःख को छुपाकर रखना चाहिए, ताकि हम मजबूत और आत्मनिर्भर बने रहें।

आचार्य चाणक्य की विचारधारा और कार्य आज भी प्रासंगिक हैं और उन्हें भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में याद किया जाता है । अतएव आचार्य चाणक्य द्वारा कही उपरोक्त बातें सदैव स्मरणीय और विचारणीय हैं । और इसी क्रम में भारतीय मनीषा के उद्भट व्यक्तित्व नीतिपरक दोहे रचने वाले रहीम जी की सीख भी हमारे जीवन में पग-पग पर महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं ।    

लेखक– हिंदी परास्नातक व हिंदी परास्नातक पत्रकारिता में डिप्लोमा दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली से हैं ।

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