रमेश कुमार मिश्र
मैं शहर जो बना तेरे ऐतबार में
तुम शहर छोड़कर यूँ चले क्यों गए?
कोई शिकवा नहीं जुस्तजू भी नहीं
यूँ चले भी गए तो कहाँ जाओगे?
रोशनी शाम की यूँ उदासी भरी
रोशनी में नहाकर किधर जाओगे?
इश्क़ का रंग बेरंग तो है भी नहीं
इश्क़ है तो छुपाकर कहाँ जाओगे?
तुम जिधर जाओगे मैं शहर पाओगे
खुद से खुद को छिपाकर कहाँ जाओगे?
एम. ए. हिंदी दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली व हिन्दी पत्रकारिता पी.जी.डिप्लोमा दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली