अरुणेश मिश्र
पहले हम जनसेवी हुए
संकल्पवान हुए
फिर जननायक हुए
स्वागत सम्मान हुआ
वह सोना हो गया
जिसे जिसे छुआ
हमारे आसपास बहुत सी गायिका हुईं
गायक हुए
हमको लगा हम भी किसी लायक हुए
नायक हुए
धीरे धीरे हम पंचर होते गए
अपना ईमान धरम खोते गए
फिर भ्रष्ट हुए
अब हम चरित्रहीन हैं
समर्थक कहते हैं – जमे रहो ऐसे ही
आप विकल्पहीन हैं ।
कवि हिंदी के ख्यातिलब्ध साहित्यकार हैं और सीतापुर इंटर कालेज के पूर्व प्राचार्य रह चुके हैं.