कामनाImage source meta Ai

ठाकुर प्रसाद मिश्र

THAKUR PRASAD MISHRA

भावना की पुष्करणि में मन जलधि का नीर भरकर. 

कल्पना की डुबकियों से ढूंढ़ते मुक्ता मनोहर.

काम की आसक्ति ही यदि पूर्णता का द्वार होती.

कर्मफल होता बिकल शुभ उक्तियाँ सिर पीट रोतीं.

मृग पिपासा मरु में यदि, कहीं मृदुल जल सागर बनाती.

रंक बन जाते नृपति सब दीनता न मुख दिखाती.

त्याग में सुख बोध कैसा?  क्लीव जन – मन को बनाता.

क्या किसी टूटे हृदय को वह कभी है जोड़ पाता.

ग्राह्य है लाली सदा अनुराग की नि: स्वार्थ जो.

कर्मयोगी हो स्वयं पर भाव में परमार्थ हो.

जीत सकते हो तभी जीवन के इस संग्राम को.

कामना तो पूर्ण हो ही, अमरता भी नाम को.

रचनाकार -सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं, 

प्रकाशित हिंदी उपन्यास “रद्दी के पन्ने”

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