कविता

विहारिका

रमेश कुमार मिश्र मैं उन्मुक्त गगन की हूँ मलिका नभ विचरण है अभिसार मेरा. मैं पुण्य धरा की नवल किशोरी , है प्रकृति पुष्प श्रंगार मेरा. मैं पुरुष हृदय की…

पिता

डॉ सत्येन्द्र सत्यार्थी है निशा जिंदगी, जागरण हैं पिता, हर तरक्की के अंतःकरण हैं पिता। जिंदगी मुश्किलों ठोकरों से भरी, उनसे बचने का दृढ़ आवरण हैं पिता। कष्ट-ग़म के हलाहल…