रमेश कुमार मिश्र
बिकती हैं जहाँ जिंदगियाँ कपड़े उतार के.
कैसे किसी ने कहा यहाँ कोई नहीं मरा.?
कोई जाति से मरा , कोई पांति से मरा.
कोई भूख से मरा, कोई प्यास से मरा.
कोई भाव से मरा , कोई अभाव से मरा.
कोई धर्म से मरा , कोई अधर्म से मरा.
कोई भार से मरा , कोई आभार से मरा.
कोई मान से मरा , कोई अभिमान से मरा .
कोई जान से मरा , कोई शान से मरा.
कोई ज्ञान से मरा, कोई अज्ञान से मरा.
मारा है किसको किसने कौन फैसला करे.?
लड़ सके जो मौत से वही जीने का हौसला करे.
कवि /लेखक –रमेश कुमार मिश्र की कलम से