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संजीव गोयल

संजीव गोयल

‘मै और मेरा’ की भावना इंसानों में होती है कितनी प्रबल

‘मै और मेरा’ से ही मिलता है लोगों को जीवन में संबल, 

‘मै’ की चादर ओढ़ कर जी रहा है इंसान अपनी मस्ती में एकल 

बेखबर कि इससे नष्ट हो जाता है बहुतों का आज और कल,

‘मै और मेरा’ त्याग कर यदि हो जाए ‘हम और हमारा’

तो प्यार की मजबूत डोर मे बंध जायेगा ये संसार सारा, 

इस ‘मै और मेरा’ ने रौंदे हैं कईं हँसते हुए परिवारों के आशियाने

इसी ने लिख दिये हैं लोगों की जिंदगी मे अंगिनत अफसाने, 

‘मै और मेरा’ से हो जाता है हमारा व्यक्तित्व नष्ट

और यही बना देता है इंसानो की प्रवर्ति को भ्रष्ट, 

‘मै और मेरा’ की सोच से हमें बाहर निकलना होगा

‘हम और हमारा’ की भावना को आत्मसात करना होगा, 

इस ‘मै और मेरा’ की दुनिया से तू देख निकल कर

तब ‘हम और हमारा’ की दुनिया  स्वागत करेगी तेरा मचल कर।

रचनाकार — हिंदी के सुप्रसिद्ध लेखक और कवि हैं।

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