अरुणाकर पाण्डेय
विंध्याचल के पार एक खोई हुई सी जगह है – सिंगरौली । सन 83 में निर्मल जी ने यात्रा करके वहां के बारे में लिखे यात्रा वृत्तांत का जो शीर्षक दिया वह था “जहां कोई वापसी नहीं”।
विकास के लिए स्थानीय ग्रामीणों का विस्थापन इस वृत्तांत का बहता घाव है। अंत में वे लिखते हैं ” मुझे याद आया ‘मोलोक’ शब्द का हिंदी पर्याय मिलने में मुझे कितनी परेशानी हुई थी ? दैत्य? दानव? बलि देवता ? कोई ऐसी अति मानवीय शक्ति ,जो धीरे धीरे अपने शिकंजों में समूची चराचर शक्ति को दबोच लेती है ,हर व्यक्ति की नियति को ग्रसती हुई काली लंबी छाया जिससे कोई छुटकारा नहीं ….
मुझे लगा जिस शब्द का अर्थ मुझे बरसों पहले मुझे शब्दकोष में नहीं मिला था,उसका चेहरा मैंने सिंगरौली में देख लिया था।”
सिंगरौली में दिखे उस चेहरे की झलक को इस पाठ में सभी को एक बार जरूर देखना चाहिए ।
आदरणीय निर्मल जी की पुण्यतिथि पर उनको सादर प्रणाम !!
छायाचित्र साभार ‘धुंध से उठती धुन’,भारतीय ज्ञानपीठ
लेखक – दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक हैं.