टीम कहानीतक : हिंदी दिवस के मौके पर संसदीय राजभाषा के अध्यक्ष केंद्रीय गृह व सहकारिता मंत्री अमितशाह ने राजभाषा की हीरक जयंती पर सिक्का जारी करने के साथ, भारतीय भाषा अनुभाग का शुभारंभ किए. इसके बाद अपने संबोधन में हिंदी भाषा और साहित्य संवर्धन के लिए जो कुछ कहा है वह आप सभी को पढ़ना जानना और समझना जरुरी है. उनका मानना है कि जो मातृभाषा को बचाने की जिम्मेदारी है वह विद्वत समाज, माताओं और अभिभावकों की है. अपने बच्चे से अपनी मातृभाषा में बात करें साहित्य पढ़वाएं और वाचन कराएं अपने देश की मातृभाषा भाषा और साहित्य में रुचि पैदा करें. उन्होंने बहुत आत्मविश्वास के साथ कहा है कि बच्चे के कैरियर के लिए किसी अन्य भाषा को अपनाने की जरूरत नहीं है, भारत की राजभाषा दुनिया की भाषा बनेगी और भारतीय भाषाओं में ही तमाम अवसर उपलब्ध होंगे. आइए उनके द्वारा संबोधन में कहे गए कुछ अंशों को पढ़ते हैं—-
वे कहते हैं कि ” मोदी जी ने बड़े से बडे़ मंच पर पूरी दुनिया को हिंदी में संबोधित कर कर हिन्दी की स्वीकार्यता को बढ़ाने का काम किया है. जब अटल जी ने UN जनरल असमबेली को हिंदी में संबोधित किया तो दुनिया अचंभित रह गई. आज हम हिंदी प्रेमियों को बताना चाहते हैं कि हम दुनिया के दस से अधिक देशों की द्वितीय भाषा बन चुके हैं. और अब इससे आगे हिंदी अंतराष्ट्रीय भाषा बनने की दिशा में आगे बढ़ रही है. हिन्दी की स्वीकार्यता बढ़ रही है, जरूरत है कि हम स्वयं हिंदी भाषा के महत्व को समझें, हमारी मातृभाषा के महत्व को समझें, हमारी नई पीढ़ी को मातृभाषा को बोलना पढ़ना और साहित्य में रुचि को बड़ी करके बच्चे को मातृभाषा का विद्वान बनाना है इस दिशा में काम करना है.
” इस मौके पर अमितशाह जी ने कहा कि हमारी भाषाओं को कौन बचा सकता है, यहाँ बैठे विद्वत बचा सकते हैं, मैं बड़ी विनम्रता से कहता हूँ कि सरकार तो बचा नहीं सकती है, हमारी भाषाओं को कोई बचा सकती है तो वह है मां. मां ही बचा सकती है. हर परिवार के अभिभावक तयं करें कि हम अपने बच्चे के साथ मातृभाषा में ही बात करेंगे, तो कोई हमारी मातृभाषाओं को समाप्त नहीं कर सकता है. और हमारी भाषाएं चिरकाल तक बनी रहेगी और दुनिया की सेवा करेंगे . आज जरूरत है हमारे देश के अभिभावकों को अपने बच्चे के साथ अपनी मातृभाषा में बात करने की और मातृभाषा को सीखने के लिए उनको प्रेरणा दें. और मैं आपको विश्वास से बता रहा हूँ कि आपको बच्चों के विकास की चिंता कर कर किसी दूसरी भाषा की शरण में जाने की जरूरत नहीं है. आने वाला समय भारत की भाषाओं का है . राजभाषा का है. इस देश को गुलामी में कोई नहीं रख सकता और मातृभाषा की गुलामी में तो कतई नहीं.
भारत सरकार द्वारा तैयार कराए जा रहे शब्द सिंधु पर बात करते हुए वे कहते हैं कि “हिंदी शब्द सिंधु का प्रयोग अभी अधूरा है, इस पर और काम चल रहा है, और मेरे मन में इच्छा है कि अगले चुनाव के पहले हिंदी शब्द सिंधु हमारा शब्दकोश होगा और वह दुनिया का सबसे बड़ा शब्द कोश बनेगा”
अमितशाह जी मातृभाषा पर जोर देते हुए कहते हैं कि “हमारा देश एक मात्र देश है जो भू- राजनीतिक नहीं, भू- सांस्कृतिक देश है. हमारे देश को जोड़ने वाली अगर कोई कड़ी है तो वह है हमारी संस्कृति. आप देश के नार्थ ईस्ट चले जाइए वहाँ मणिपुर नृत्य के अंदर कृष्ण मिलेंगे दक्खिन में चले जाइए तो वहाँ भी कृष्ण मिलेंगे गुजरात चले जाइए तो वहाँ भी कृष्ण मिलेंगे”.
वे कहते हैं कि” जब देश में मुगलों का शासन लंबे समय तक चला. तब उसके खिलाफ देश के अलग अलग हिस्सों में स्वाभाविक रूप से लड़ाई पंजाब ,राजस्थान ,सुदूर महाराष्ट्र में भी शुरू हुई. जब युवा शिवाजी स्वराज की लड़ाई लड़ रहे थे तब उनके साथियों ने उनसे पूछा कि हम जो लड़ाई लड़ रहे हैं उसका उद्देश्य क्या है? ,हमारे पास न संसाधन है, न साधन, न सेना, न हथियार तब उन्होंने तीन उद्देश्य बताए स्वराज ,स्वधर्म ,स्वभाषा. जो ये तीनों को समाहित नहीं करता, अपनी आने वाली पीढ़ियों को गुलामी से मुक्त नहीं करता.और इसलिए स्वराज की व्याख्या में ही स्वभाषा भी समाहित है. जो देश जो प्रजा,अपनी भाषाओं की रक्षा नहीं कर सकता है वह अपने इतिहास ,साहित्य और संस्कार की रक्षा नहीं कर सकता है, और आने वाली पीढ़ियां गुलामी की मानसिकता के साथ आगे बढ़ती हैं.और ए बहुत जरूरी है कि आजादी के 75 वर्ष बाद भी हम स्वराज, स्वभाषा, स्वधर्म के इस शिवाजी के महाराज के इस उद्देश्य पर काम करें.
इस मौके पर अमितशाह जी ने भारतीय भाषा अनुभाग का शुभारंभ किया. उन्होंने कहा कि “भारतीय भाषा अनुभाग एक प्रकार से राजभाषा विभाग का पूरक अनुभाग बनेगा. क्योंकि राजभाषा का प्रचार प्रसार तब तक नहीं हो सकता जब तक हम हमारी स्थानीय भाषाओं को मजबूत न करें और राजभाषा का इसके साथ संवाद स्थापित न करें”. आगे कहते हैं कि… “कई सारे लोग ऐसा प्रचार करते हैं कि हिंदी की स्थानीय भाषाओं के साथ स्पर्धा नहीं है. मैं इस मंच से स्पष्ट करता हूँ कि हिंदी का स्थानीय भाषाओं के साथ कभी स्पर्धा हो ही नहीं सकती है इसलिए हमने निर्णय किया है कि भारतीय भाषा अनुभाग के माध्यम से हिंदी और सभी स्थानीय भाषाओं के संबंध मजबूत किया जाएगा.”
उपर्युक्त के आलोक में हिंदी भाषा का फलक विस्तार के सरकार द्वारा सतत प्रयास जारी है .स्थानीय भाषाओं और राजभाषा के बीच सखी वाला माहौल स्थापित करने की कोशिश करके हिंदी संबधी किसी भी विवाद को खत्म करके हिंदी की स्वीकार्यता को बढावा देना चाहते हैं.किसी भाषा को सुरक्षित रखने की जितनी अपेक्षा सरकार से होती है उससे कहीं ज्यादा समाज के विद्वत जन औरअभिभावकों से होती है.
खबर का आधार सोशलमीडिया “एक्स”