baadal, chaand aur kav

अरुणाकर पांडेय

एक ऐसा बादल था जिसे अपने जीवन से घृणा थी ।इसका कारण उसका यह मानना था कि उसका जन्म संसार की जलने वाली वस्तुओं के ताप के कारण हुआ।उसका अपना कोई घर नहीं था, न ही कोई ठिकाना और न कोई गाँव !! रहा भी हो तो शायद संसार के ताप से जल कर वह भस्म हो गया होगा !! वह केवल भटकता था और खुद से बहुत नफरत करता था ।अब उसका मन होने लगा था कि वह बुरी तरह फट जाए या बरस कर बहुत कुछ नष्ट कर दे।

एक दिन इसी भाव में बहते हुए उसने पूनम के चाँद को देख लिया।उसकी नफरत और बढ़ गई और उसने यह फैसला किया कि वह उसे अपने पीछे छिपा लेगा और संसार को उसकी सुंदरता का आनंद नहीं लेने देगा ।फिर क्या था, बादल पूरी ताकत से इस लक्ष्य को प्राप्त करने में जुट गया।

इधर नीचे नदी किनारे अकेले बैठे कवि ने सारा दृश्य देखा तो उसे बेचारे बादल के प्रति करुणा जागी और उसने भी एक निर्णय लिया कि वह अपनी सारी प्रतिभा का उपयोग उसके उपचार में लगा देगा।तो उसने बादल से कहा कि “देखो, तुम्हारे साथ बहुत अन्याय हुआ है और संसार अपने में इतना मग्न और मुग्ध है कि  इसने खुद को भी खो दिया है। लेकिन इतने पर भी तुम अपनी प्रकृति को मत भूलो क्योंकि तुम भी बहुत समय के लिए नहीं हो, बरसोगे और खत्म हो जाओगे।तुम ऐसी जगह बरसो और ऐसे बरसो कि लोगों को तुम्हारा अर्थ मिल जाए, तो सब ठीक हो जाएगा।”

बादल बदल गया और वह धीरे से कहीं किसी निश्चय के साथ निकल गया ।

आज भी बहुत से बादल हैं, चाँद है और यकीनन बहुत से शब्दों के साथ कवि तो बहुत सारे हैं लेकिन फिर भी एक छोटी सी, खूबसूरत और बेहद जरूरी कहानी नहीं बन पा रही है !!

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