मौत की एक साधारण खबर
अरुणाकर पाण्डेय
एक दर्दनाक खबर सीतापुर से आई है, जहां रील बनाते हुए एक परिवार के तीन लोगों की ट्रेन से कटकर मौत हो गई है। यह खबर सीतापुर की है जिसे मीडिया और अखबारों में कोई प्रमुखता तो नहीं मिली लेकिन दबी हुई सी हाशिए पर दिखी है। ऐसी खबरों को जब तक केंद्र में नहीं लायेंगे और इस पर जब तक जम कर कवरेज नहीं की जाएगी तब तक इनमें कमी नहीं आएगी क्योंकि लोगों में इनके प्रति जागरूकता नहीं फैलेगी ।
अखबार और मीडिया के लिए यह बड़ी खबर नहीं बनी इसके मूल में दो कारण हैं। पहला तो यह कि मूल्य (news value)के आधार पर आज यह खबर बहुत उपजाऊ नहीं लगी होगी और वो खबरें जो लगभग विज्ञापन का काम करती हैं,उन्हें अधिक महत्व दिया गया होगा ।
दूसरा कारण यह है कि हादसे और मौत कोई कौतूहल पैदा नहीं कर रहे क्योंकि शायद अब वह इतनी अधिक हो चुकी हैं कि बहुत सामान्य सी लगती हैं। इंसान का असमय मारा जाना एक साधारण बात हो गई है उसमें अब कोई खबर जैसी बात नहीं है । मगर मुख्यधारा की मीडिया से अलग हटकर सोचा जाए तो यह खबर उसी सोशल मीडिया की खबर है जिसका इस्तेमाल जनसाधारण बहुत अधिक कर रहा है और अपनी भागीदारी अपनी तरह से कर रहा है।
लेकिन यह अवश्य चिंतन का विषय है कि इस खबर को यदि बढ़ाया गया होता और इस पर सार्थक चर्चा की शुरुआत की जाती तो संभव है कि यह जनसाधारण के मन में अन्य खबरों की तरह जगह बनाती। इसे महत्व दिया जाना चाहिए क्योंकि यह लोगों की जीवनचर्या और संस्कृति का बहुत व्यापक हिस्सा बन चुकी है। लोग अक्सर रील बनाकर अपनी प्रसिद्धि और पैसा प्राप्त करना चाहते हैं और इसके लिए वे सोशल मीडिया का न केवल जमकर इस्तेमाल करते हैं बल्कि अब यह उनके जीवन की स्थाई आदतों में शुमार हो चुका है। प्रश्न यह है कि क्या अब इसे रोका जा सकता है ,क्या इसके लिए कोई ठोस कानून और उसकी जानकारी के प्रचार प्रसार की आवश्यकता नहीं है !
खबर में यह पक्ष भी है कि जब सीतापुर में यह परिवार रेल के साथ रील बनाने में व्यस्त था तब वहां आसपास के लोगों ने उन्हें आवाजें देकर खबरदार किया था । लेकिन उस परिवार ने उन्हें नहीं सुना और अंततः वे तीनों पति,पत्नी और ढाई वर्ष का बच्चा उससे कटकर कई टुकड़ों में छितरा गए। जान पर खेलकर रील बनाने की इस अदम्य लालसा को समझने और इसका उपचार करने की बहुत जरूरत है।
ऐसी मौत की खबरों में यह इजाफा हुआ है कि पहले जहां मौत सिर्फ लू और ठंड से होती थी अब वह रील बनाने से भी होने लगी हैं। यहां हिंदी कवि रघुवीर सहाय की एक छोटी सी कविता ‘ठंड से मृत्यु ‘ को अवश्य एक बार ध्यान से पढ़ना चाहिए
ठंड से मृत्यु
फिर जाड़ा आया फिर गर्मी आई
फिर आदमियों के पाले से लू से मरने की खबर आई :
न जाड़ा ज्यादा था न लू ज्यादा
तब कैसे मरे आदमी
वे खड़े रहते हैं तब नहीं दिखते
मर जाते हैं तब लोग जाड़े और लू की मौत बताते हैं
(साभार कविता कोश)
रघुवीर जी मौत को प्रमुखता दे रहे हैं ,कारण को नहीं। लेकिन यदि उनकी इस कविता में क्षमा याचना सहित अगर ठंड और लू के साथ या उनकी जगह रील या सेल्फी को रख दिया जाए तो यह इस खबर को एक गहरा अर्थ दे सकती है। इस अर्थ को लोगों,मीडियाकर्मियों और पाठकों को पढ़ने और गुनने की बहुत अधिक आवश्यकता है ।
लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक हैं