mittee kee maan

मिट्टी की मां

ठाकुर प्रसाद मिश्र

 पंडित दीनानाथ एक मझोले किसान थे. उनके पास चार एकड़ जमीन थी. तीन बेटों में शंभू उनके साथ खेती किसानी में हाथ बंटाता था. कोई बाहरी आमदनी नहीं थी, फिर भी अपनी मेहनत से वे जो पैदा करते थे उसमें जिंदगी आराम से चल रही थी. दोनों छोटे बेटे गांव के करीब ही सरकारी स्कूल में पढ़ते थे. पंडित जी से ज्यादा ध्यान अपने छोटे भाइयों का शंभू रखता था. जब कभी पिता अपने छोटे बेटों को डांटते फटकारते तो शंभू बीच में आकर कहता पिताजी ये दोनों अभी छोटे है इनमें समझ की कमी है धीरे- धीरे समझदार हो जाएंगे. ये दोनों हमारी आशाएं हैं मैं तो आपके अकेले होने पर खेती में साथ देने के कारण पढ़ न सका, लेकिन ए दोनों जिस दिन पढ़ लिखकर नौकरी करने लगेंगे तो हमारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे, अगर थोड़ा – थोड़ा पैसा ये लोग कमा कर देंगे तो भी मैं गृहस्थी चमका दूंगा. पंडित जी मान जाते यदि छोटे बेटे कहीं मनमानी भी करते तो यह कहकर चुप हो जाते हैं ठीक है जो मर्जी हो करो अरे तुम लोगों को सम्भू बिगाड़ रहा है,नहीं तो मैं तुम दोनों को एक दिन में ठीक कर देता. इसी बीच पंडित जी ने शंभू का विवाह भी कर दिया. भाग्यवश बहू सुलक्षणा मिल गई. वह ग्रामीण परिवेश में एक सामान्य परिवार से आई थी पढ़ी लिखी कम थी किंतु गृहकार्य में दक्ष थी उसके आने से पूरा परिवार प्रसन्न था.

 समय बीतने के साथ दोनों बेटे ऊंचे क्लास में पहुँच गए अब उन पर खर्च बढ़ गया . परिवार तो बढ़ रहा लेकिन आमदनी का स्रोत तो सीमित था. आर्थिक बोझ बढ़ जाने पर एक दिन पंडित जी ने शंभू से कहा कि अब इनमें से एक की पढ़ाई रोकनी पड़ेगी अब इन दोनों की पढ़ाई का खर्चा मेरे बस का नहीं . अब रोहन शहर जाकर कोई नौकरी तलाशे. पिता की बात सुनकर शंभू बोला पिताजी आप क्या कह रहे हैं.क्यों उसकी जिंदगी बर्बाद करना चाहते हैं? अरे हम लोग थोड़ा तकलीफ उठा लेंगे जरूरत पड़ी तो जमीन गिरवी रख देंगे, लेकिन इनकी पढ़ाई में बाधा नहीं आने देंगे. ये जब कमाने लगेंगे तो छुड़ा लेंगे. शंभू की बात सुनकर पंडित जी गंभीर हो गए, थोड़ी देर बाद शंभू की तरफ देखते हुए बोले बेटा तुम जितने भोले हो आज की दुनिया वैसी नहीं रह गई  है. ज़माना काफी बदल चुका है नई पीढ़ी पूर्णतया संवेदना और संस्कार से दूर होती जा रही है, सब मनमानी पंथ के राही होते जा रहे हैं उन्हें भविष्य के अनिष्ट की चिंता नहीं है. वे वर्तमान के कल्पनालोक में जिंदा रहना चाहते हैं, देखो अपने भाइयों को ही देखो इन्हें भी आधुनिकता का सर्पदंश लग चुका है.इन्हें भी धीरे- धीरे नशा चढ़ रहा है.मेरी समझ में तो इनसे भविष्य की आशा करना व्यर्थ है. नहीं पिताजी सब वैसे थोड़े ही हो जाएंगे हमारे भाई संस्कारी हैं पढ़ लिखकर सरकारी नौकरी मिलना तय है क्योंकि नौकरियों की घोषणा तो अक्सर होती ही रहती है. हमारे भाई योग्य होकर नौकरी अवश्य पा जाएगा शंभू ने कहा.

 फीकी हँसी हंसते हुए पंडित जी ने कहा अरे पगले अभी तेरे भोलेपन में बदलाव नहीं आया, अरे तेरे भाइयों जैसे लाखों लोग नौकरी के लिए चप्पल चटकाते घूम रहे हैं और हम तो वैसे भी ब्राह्मण हैं. इस आरक्षण् बयार में बहती सरकारों ने हमें अस्पृश्य बनाकर वैसे ही हाशिये पर धकेल दिया है, लेकिन तेरी बात काटकर तुम्हें दुखी या निराश नहीं करना चाह रहा फिर भी तेरी समझ के लिए इतना बता देना चाहता हूँ कि बड़ी- बड़ी योजनाओं की घोषणा कर सारी प्रजातंत्र की पार्टियां वोट बटोरती हैं इनके दावे या वादे धरातल पर कम ही उतरते हैं. झूठ बोलना प्रजातांत्रिक पार्टियों का परम धर्म है ,और इतना ही नहीं झूठ इन पार्टियों की प्राण वायु है . जिसदिन इनके झूठ का पुलिंदा खुलता है ये प्राणहीन हो जाती है . इसका कारण इनका यथार्थ का ज्ञान न होना है. सब हवा हवाई नियम बनाते हैं जो केवल साधारण जनों तक ही प्रभावी होता है. और दूसरी बात ये समष्टि को नकारकर व्यक्ति के लिए खुशामद की पराकाष्ठा पार कर जाते हैं. इनके बनाए नियम जो किसी एक घटना से सबक लेकर बनाते हैं तो ये नहीं सोचते हैं कि जिन्हें हम उत्पीड़न से बचाने के लिए नियम बना रहे हैं कहीं वे इस नियम के सहारे उत्पीड़क तो नहीं हो जाएंगे, जिससे लाखों निर्दोष लोग प्रताड़ित होने लगेंगे. यह देश का दुर्भाग्य है कि भारत की सुगंध युक्त संस्कृति पश्चिम की सड़ांध युक्त दूषित वायु में सांस ले रही है.और जो इससे दूर हैं उन्हें भी इस भीड़ में शामिल होने के लिए उत्साहित कर रही है. बहुत सारे लोग अपना घर फूंक चूके हैं अब दूसरे का घर भी जलाने को तैयार बैठे हैं. खैर छोड़ो मैं बहुत बोला गया जरूरत इस बात की है कि हम स्वयं इससे बचने का प्रयास करें. कलयुग का तो घोषित आचरण ही है कि

 “झूठै लेना झूठै देना झूठै भोजन झूठ चबैना

 यह बात कलि वर्णन में बाबा तुलसीदास बहुत पहले ही मानस में लिख चुकें हैं. अब जाओ तुम्हारी बात पर सोचते हैं.

 अपरिवर्तनीय कालचक्र निस्पृह भाव से आगे बढ़ता रहा, कुछ फूल मुर्झाए तो कुछ कलियाँ प्रस्फुटित हुईं. कालचक्र के साथ जगत की लीला भी चलती रही.

 समय के साथ पंडित जी के दोनों बेटे पढ़ लिखकर मध्यम श्रेणी की नौकरी करने लगे. दोनों की आधुनिक विचार वाली सुंदर लड़कियों से विवाह भी हो गया. पंडित जी शंभू और शंभू की माँ का मन तो जैसे नंदन बन में बिहार करने लगा. घर की चहल- पहल सुखी परिवार की झलक दिखाने लगी. गांव घर के लोगों में पंडित जी का परिवार सम्मान की दृष्टि से देखा जाने लगा. नई बहुएं ज्ञान शौकत में दिखावे में किसी से पीछे नहीं रहना चाहती थी.अतः अब उन्हें गांव के गवारों के बीच रहना पसंद नहीं था. दोनों बहुओं ने अपने- अपने पतियों पर शहर में साथ रहने का दबाव बनाना शुरू किया. अंततः दोनों बेटों ने समय निकालकर एक दिन घर आकर अपने भोजन पानी का हवाला देकर अपनी- अपनी पत्नियों को साथ ले जाने की बात कही. पंडित जी ने दोनों बेटों की बात सुनकर घर खाली होने की कसक तो जरूर महसूस की लेकिन पति पत्नी को साथ रहना चाहिए यही उचित है मानकर हामी भर ली.

 संध्या समय चूँकि तीनों बेटों का पूरा परिवार घर पर था तो उन्हें बुलाकर एक साथ बैठाया और कहा बच्चों तुम्हारी खुशी ही हमारी खुशी है. अपना जीवन जीने से किसी को मना नहीं करते लेकिन एक समस्या तुम्हारी पढ़ाई काल से चली आ रही है, थोड़ा उस पर भी विचार करना जरूरी है. तुम दोनों को ऊंची शिक्षा दिलाने की सामर्थ्य मझ में नहीं थी अत: शंभू के कहने से हमने एक एकड़ जमीन ढ़ाई लाख में गिरवी रखी है. सोच रहा था वह छुड़ा लेते फिर बाद में तुम लोग जैसा चाहते हैं वैसा करते. पिता की बात सुनकर कुछ देर तो सब चुप रहे फिर मझला रोहन बोला पिताजी हम सबका वेतन इतना नहीं कि शहर का सारा खर्च उठाते हुए हम एक झटके में ढा़ई लाख की व्यवस्था कर सकें. ऐसा है अभी इस मसले पर सोचना ही छोड़ दें बाद में देखा जाएगा. पंडित जी बोले बाद में कहाँ से कुबेर का खजाना मिल जाएगा. ज्यादा से ज्यादा तुम लोगों के वेतन में 200  चार सौ की बढ़ोत्तरी होगी तो आगे चलकर तुम लोगों का परिवार भी तो बढ़ेगा. बाल बच्चे होंगे उनका भी खर्च बढ़ेगा तो खेत कैसे छूटेगा? पंडित जी की बात सुनकर यकायक रोहन की पत्नी बोल पड़ी तो क्या सारे परिवार का कर्ज चुकाने का हमने ठेका ले रखा है. हमारा भी जीवन है ये कर्ज के बोझ के तले दबकर हम कब तक जिएंगे. फिर हमें न यहाँ रहना है और न खेती करनी है तो हम खेत के लिए खर्च क्यों करें ? बहू की बात सुनकर पंडितजी अवाक् रह गए जो सामने पड़ने पर घूंघट निकलती थी आज ये का एक सिंहनी सी गरज उठी. पंडित जी को पूत के पांव पालने में ही नजर आ गए. उन्होंने एक नजर शंभू के चेहरे पर डाली जो भावहीन सपाट लगा फिर उन्होंने कहा कोई बात नहीं तुम लोग जाओ आगे देखा जाएगा विवाद बढ़ाना उन्होंने उचित नहीं समझा.

 समय के एक झटके ने पंडित जी और शंभू के सपनों को तोड़ दिया पंडित जी ने मान सम्मान ताक पर रखा और वह गिरवी जमीन उसी व्यक्ति को पांच लाख में बैनामा कर दिया जो पैसा व शंभू के नाम बैंक में जमा कर दिए. गांव में चर्चा चली ऐसा क्या हुआ की दो- दो बेटों के नौकरी करने के बाद भी पंडित जी को जमीन क्यों बेचनी पड़ी ? जबकि घर में  न कभी टकराव हुआ और ना कोई बीमार वगैरह है. लेकिन इस पर पंडित जी की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई जिसे जो सोचना है सोचे कहना है कहें अपने हृदय की पीड़ा वे किसी से कह नहीं सकते थे, किंतु उसका एहसास उनकी साध्वी पत्नी को था वह भी मौन रहने लगी थी. बहू पंडित जी जिसे प्रेम से सुलखा कहते थे उसे एक कर्म पर निर्भर भाग्य पर भरोसा था. हाँ शंभू मातृ प्रेम से उबर नहीं पाया था.शहर का खर्च उनकी मजबूरी समझता था.

 यद्यपि  जग दारुण दुख नाना

  सबसे कठिन जाति अपमाना.

स्वजनों की कृतघ्नता ही संसार में सबसे बड़ा दुख है. खेत बेचने पर बचे पैसों के बारे में छोटे बेटे और बहुओं की निकृष्ट सोच पूर्ण बार- बार के वार्तालाप से अति आहत पंडित जी गंभीर बीमारी से पीड़ित हो गए यद्यपि शंभू ने काफी पैसा खर्च कर इलाज करवाया किंतु वे बच ना सके और दुखी पत्नी और भोले पुत्र  पुत्रवधू को रोते बिलखते छोड़कर परलोकवासी हो गए. दुख के बादल उमड़े तो उमड़ते ही चले गए काम क्रिया में शामिल होने अंतिम दिन पहुंचे रोहन व सोहन ने ना कोई विशेष दुख जताया नहीं खर्च – वर्च में कोई योगदान दिया बल्कि दूसरे दिन ही पंडित जी द्वारा छोड़ी प्रॉपर्टी के हिसाब – किताब में लग गए. बहुओं ने आगे बढ़कर शंभू पर बहुत कुछ हड़प लेने का इल्ज़ाम लगाया शंभू ने भाइयों की तरफ देखा वे मौन थे. मौनं स्वीकार लक्षणं के आधार पर आज शंभू को पहली बार आज की दुनिया की कुछ समझ आयी. पूर्व में पिता द्वारा कही एक – एक बात समझ में आ रही थी. उसने माँ की तरफ़ देखा जिसके नेत्र से अविरल आंसू बरस रहे थे. उसने बहुत धीरज कर कहा बच्चों मेरे बेटे शंभू पर कोई इलज़ाम लगाने का महापाप मत करो अन्यथा तुम लोगों को ईश्वर माफ़ नहीं करेगा. माँ की बात पर भड़के उन दोनों ने कहना शुरू किया हाँ क्यों नहीं तुम भी उन्हीं की तरफ हो, हमें शाप के अलावा और दे भी क्या सकती हो. मां बिफरते हुए बोली अच्छा अब मेरे सामने से हट जाओ तुम्हारे पिताजी के साथ ही तुम लोगों को संतोष कर लिया.

काफी तू तड़ाम हुई और दूसरे ही दिन दोनों वापस चले गए. बच्चों के हृदय हीनता के आघात को माँ भी सह न सकीं उनका भी स्वास्थ्य गिरा तो गिरता चला गया. मात्र छह माह के अंदर ही वे भी सुरधाम  सिधार गईं, उनके कामकाज में भी दोनों भाई आए मात्र दो दिन रुके और सारी चीजों का बंटवारा कर अपने हिस्से की चीजें कमरे में बंद कर वापस चले गए. बरसात के बाद उन लोगों ने अपने नाम आई हिस्से की जमीन भी बेंचकर घर से नाता तोड़ दिया. शम्भू अब अपने आप को नितांत अकेला और कमजोर महसूस करने लगा. अब उसका किसी काम में मन नहीं लगता. जमीन भी थोड़ी रह गई थी.उसमें गुज़ारा होना नहीं था बेटी 5 साल की हो गयी थी बेटा 1 साल का था अभी माँ का दूध पीता था. भरण पोषण की कठिनाई सिर पर थीं गांव में संभव न समझ उसने शहर जाने का मन बना लिया. गांव के कुछ लोग दिल्ली में रहते थे वे लोग घरों में पी ओपी का लेबरों का काम करते थे. उनसे बात किया तो उन लोगों ने कहा अब सीज़न शुरू होने वाला है.हम लोग जा रहे हैं. खुद सेट होने के बाद तुम्हें भी बुला लेंगे. रोजही का काम तो मिल ही जाएगा. उन लोगों से बात करके उसने दिल्ली जाने की तैयारी पूरी कर ली, बची जमीन बंटाई पर देकर घर में ताला बंद कर एक दिन दिल्ली के लिए सपरिवार निकल पड़ा. गांव छोड़ने का यह पहला अवसर था कुछ हिचक उत्साह कुछ रोमांच और कुछ अचरज से चलती ट्रेन के बाहर के इलाके एवं डिब्बे से भरी भीड़ को निहारते हुए ट्रेन का सफर जारी था. संयोग से इन दोनों को बैठने की सीट मिल गई थी कुछ देर बाद ट्रेन की गैलरी पर शंभू की निगाह पड़ी तो देखा एक औरत भीड़ में गोद में छोटा बच्चा लिए खड़ी  जहाँ खड़ी थी वहाँ से हिल भी नहीं सकती थी.उसका बच्चा रह रहकर रो पड़ता था. आगे खड़ा एक युवक शायद उसका पति था इधर- उधर सीट की तलाश में कातार दृष्टि फेंक रहा था. लेकिन समाधान मिलना ना देख रुहासा होकर चेहरे पर आए पसीने को बार- बार गमछे से पोंछ रहा था.ज्ञशंभू से उसकी पीड़ा बर्दाश्त नहीं हुई वह अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ और बोला भाई साहब ये आपकी पत्नी हैं युवक के हाँ कहने पर उसने उसे अपनी सीट दे दी.उस बेचारी को तो जैसे नया जीवन मिल गया. और युवक का मुखमंडल भी प्रसन्नता से चमक उठा बोला बहुत बहुत धन्यवाद भाई साहब आप जैसे बहुत कम ही लोग मिलते हैं.

 प्रकृति अनुसार स्त्रियां आपस में परिचय बहुत जल्द बना लेती हैं. यही हुआ सुलेखा के साथ भी कुछ देर बाद सवारी उतरने पर शंभू और उस युवक को भी वहीं बगल में सीट मिल गई. साथ में 8-10 घंटे का सफर प्रगाढ़ परिचय के लिए काफी था. युवक भी दिल्ली में पी ओ पी का काम करता था और उसकी बीवी भी शहर में बड़े लोगों के यहाँ बर्तन वगैरह साफ करने का काम कर लेती थी. दस –  बारह हजार महीने के कमा लेती थी.कोई दिक्कत नहीं थी.

 उस औरत के दस-बारह हजार कमा लेने की बात सुनकर सुलेखा को बल मिला उत्सुक होकर बोली क्या मुझे भी ऐसा काम मिल सकता है? क्यों नहीं वह औरत बोल पड़ी लेकिन एक बात है हम बिहार से हैं हमारी जात माझी की है. हमें यह काम करने में कोई दिक्कत नहीं है,लेकिन भाई आप लोग ब्राह्मण हैं किसी का जूठन धोना आपके लिए उचित नहीं होगा. हाँ अगर ऐसा कोई ब्राह्मण परिवार मिल जाए तो चल सकता है. हम जात- पांत को गांव में छोड़कर आए हैं बहन जी. अब हमें पहले रोटी कमाने के बारे में भी सोचना है. शंभू बोला तो विजय ने टोका ऐसा नहीं है मैं भी थोड़ा पढ़ा – लिखा हूँ हर बात समझता हूँ.  जाति- पांति  आपने नहीं आपकी मजबूरी ने छोड़ा होगा, लेकिन आपके संस्कार आपकी सहृदयता आपके संग चल रही है. कोई बेवकूफ़ ही होगा जो इसे नहीं समझ पाएगा पहचान पाएगा. आप पी ओ पी करने का मन बनाकर निकले हैं अभी आपको मालूम नहीं है कि नए लोगों की कमाई में कमीशनखोरी होती है. अब आपको कहीं नहीं जाना है चलिए हमारे साथ. हफ्ता दस दिन काम नहीं भी मिला तो हम आपका काम लगवाएंगे.

 ट्रेन पहुंची टेंपो में सबको साथ ले विजय एक घनी आबादी वाली बस्ती में पहुंचा जिसमें लगभग सभी निम्न आय वर्ग वाले रहते थे, उसी में एक मकान एक कमरे का सेट विजय ने ले रखा था .  वहाँ पहुँचकर सबने वहाँ आराम किया. दूसरे दिन विजय शंभू को साथ ले गया काम करने का ढंग स सिखाने के लिए. विजय वहाँ मेट था. शंभू को अपने गांव का रिश्ते का भाई बताकर कामगारों से परिचय कराया. सबका व्यवहार प्रेमपूर्ण था दो चार दिन में ही शंभू काम सीख गया और दिहाड़ी लग गई, और इधर विजय की औरत ने अपने बगल में ही एक अपने जैसा मकान 5000 महीने पर ले लिया. और उन्हें वहाँ रहने लायक छोटी- मोटी व्यवस्था करा दी विजय वहाँ का पुराना निवासी था अतः कोई खास समस्या इनके सामने नहीं आई . दो चार दिन बाद विजय की औरत अपने पुराने काम पर जाने लगी. जो अभी उसने दूसरी औरतों के जिम्मे कर रखा था . काम पर जाते वक्त वह बच्चे को कुछ समय के लिए पड़ोस की बूढ़ी दादी के पास छोड़ जाती, और आते समय थोड़े बहुत फल- फूल दादी के लिए ले आती अतः दोनों खुश रहते थे.

 एक दिन फिर सुलखा बोली बहन बैठे- बैठे दिन नहीं कटता मेरे लिए भी कोई काम देखो. वह औरत जिसका नाम रामरती था लोग उसे रत्ती के नाम से पुकारते थे. जिस बिल्डिंग में काम करती थी उसके हाल से होकर लौट रही थी,तो उसने गर्भभार से पीड़ित एक महिला को देखा उससे नमस्ते करके बोली कैसी हो दीदी ?: महिला ने जब इसे देखा तो हौले से बोली अरे रत्ती कहाँ चली गयी थी. काफी दिनों से तुम्हें देखा नहीं मैं तुम्हारे इंतजार में थी. ये यहाँ कंपनी के मालिक महेश शर्मा की बी. बी जो इस बहुमंजिला इमारत में एक शानदार अपार्टमेंट में रहते हैं. वे बोली अरे इधर इस बेंच पर बैठते हैं कुछ बात करते हैं. रती बोली अरे नहीं मेमसाहब आप बैठो मैं आपके पास खड़ी होकर सुन रही हूँ . बैठते हुए श्रीमती शर्मा बोलीं रत्ती तुम्हें तो मालूम ही है अब तक हम दो ही प्राणी थे,किसी कामकाज में कोई समस्या नहीं थी लेकिन अब तो तुम देख रही आपके किसी तीसरे के भी आने की तैयारी है. सातवाँ महीना चल रहा है. अब शरीर बोझ लगने लगा है तो अब किसी काम वाली की जरूरत महसूस हो रही है. लेकिन समस्या इस बात की है कि कोई मेरी माँग के अनुसार मिल नहीं रही है. तुम पर भरोसा है यदि ढूंढ सको तो ढूंढो ? कैसी काम वाली चाहिए मेमसाहब? काम वाली पहली शर्त के अनुसार स्वच्छता पसंद होनी चाहिए. ईमानदार होनी चाहिए अधिक समय दे सकने वाली होनी चाहिए क्योंकि अब मेरी हालत उठकर एक गिलास पानी भी लेने की नहीं है. डॉक्टर ज्यादा से ज्यादा आराम करने की सलाह देते हैं हाँ यदि कोई कहार जात की होती हो तो अति सुंदर, क्योंकि मेरे मायके में जब तक मेरे बाबा जिंदा थे गांव की एक कहारन काम करती थी. हम भाई बहन उन्हें महरिन भाभी कहा करते थे. हमारा पूरा परिवार उन्हें बड़ा स्नेह व सम्मान देता था. रती बोली ठीक है मैडम देखते हैं. अगर कोई ऐसी है तो हाँ एक और बात काम वाली कोई ब्राह्मण जाति की ना हो क्योंकि सुनती हूँ आजकल कुछ ब्राह्मणों के लोगों की औरतें भी मजबूरी बस ऐसा काम करती हैं. लेकिन हम उनसे जूठन साफ करवाने का काम नहीं करते, भले ही हम भी ब्राह्मण हैं. क्योंकि बचपन में हमने बाबा से सुना था-

 विप्र टहलुआ चीक धन औ बेटी की बाढ़.

 याहू से धन न घटे तब करै बड़े से रार

 ब्राह्मण से अनुचित सेवा, बध किए जाने वाले पशु का क्रय- विक्रय और खानदान में बेटियों का आधिकाधिक संख्या में उत्पन्न होना धन नाश का कारण बनता है. इसलिए बुजुर्गों की थोड़ी बहुत शिक्षा को भी महत्त्व देना पड़ता है. और ना ही तो आज के युग में जाति पांति की सोच सही नहीं रह गई है. सभी मनुष्य अपना कमाते खाते हैं.जाति किसी के घर भोजन नहीं पहुंचाती है. हाँ हँसते हुए अलबत्ता यह सरकारों के घर में वोट के लिए जिंदा ही नहीं फल भी रही हैं. मेमसाहब मैं कल आपको बताऊँगा यह कहकर रत्ती चली गई.

 रती क्वार्टर पर पहुंची तो आशाभरी नजरों से सुलखा उसकी तरफ देखकर बोली बहन मेरे बारे में भी कुछ बात कहीं हुई रत्ती बोली पंडित को आने दो, वे भी आ जाए तब कोई चर्चा हो घर तो अच्छा मिल गया है, मालकिन है तो नई उम्र की लेकिन विचारों से जकड़ी हुई है.

 थोड़ी देर बाद शंभू और विजय भी आ गए तो रत्ती ने बात उठाई बोली सुलखा दीदी के लिए काम का एक घर तो मिल गया है लेकिन वहाँ एक शर्त है कि अपना जूठन साफ करने या किसी निम्न स्तर की सेवा करवाने के लिये वे किसी ब्राह्मण को अपने घर पर काम के लिए नहीं रखेंगी. घर तो धनवान एवं सभ्य व्यक्ति कंपनी वाले महेश शर्मा जी का है . पैसा तो मुँहमाँगा मिलेगा लेकिन उन्हें इस काम के लिए कहार जाति की औरत चाहिए मालकिन की दादी के घर कहानी ही काम करती थी . शादी के बाद शहर आने पर केवल पति- पत्नी ही थे तो अभी तक कभी किसी काम वाली को नहीं रखा है. यह पहला मौका है क्योंकि मालकिन गर्भवती है यह सुनकर सुलखा चहक उठी बोली तो क्या हुआ मैं अपने को कहारिन बताऊंगी यहाँ हमें कौन जानता है. आखिर रोटी के लिए एक झूठ बोलकर काम करके धन कमाना कौन सा पाप है. और आखिर वह भी शर्मा हैं उनको अपना परिवार समझकर काम करने में हर्ज ही क्या है ? शम्भू बोला यदि तुम निभा सकती हो तो जाओ.

  मैडम इंद्राणी शर्मा को सुलखा जैसी साफ सुथरी और गंभीर नौकरानी मिली तो गदगद हो गईं. उन्हें सुलेखा का काम करने का ढंग बहुत पसंद आया. उन्होंने सुलेखा से कहा अगर तुम चाहो तो कहीं और न जाकर दिन भर हमारे यहाँ ही रहो तो मैं तुम्हें पंद्रह हजार तक वेतन कर सकती हूँ .  सुलखा बोली मेमसाहब मेरा छोटा बेटा अभी एक साल का है बेटी बड़ी है वह पआंच साल की है दिन भर हम से दूर नहीं रह पाएंगे वे दोनों. हमारे क्वार्टर के पास एक बूढ़ी माँ है अभी तो दो घंटे के लिए उन्हीं के पास छोड़कर आ जाती हूँ. अपने कमरे में बैठे महेश जी ने जब यह बात सुनी तो बाहर निकलते हुए बोले तो क्या हुआ सुलखा इतना बड़ा पांच कमरों का फ्लैट है हम केवल दो है उन्हें साथ लाया करो बगल के कमरे में उनके खेलने का इंतजाम कर देंगे. अगर वे भूखे होंगे तो यहीं उन्हें खिला- पिला देना इसे अपना ही घर समझो हमारे घर आने वाले नए मेहमान का स्वागत बच्चों की किलकारियों से होना शुभ होगा. महेश जी के अनुमोदन पर इंद्राणी जी प्रसन्न हो गईं. बोले हाँ सुलखा कल से बच्चों को भी लाना उन्हें यहाँ कोई तकलीफ नहीं हो पाएगी.

 दूसरे दिन सुलेखा के साथ आए दो साफ सुथरे सुंदर बच्चों को देख इंद्राणी एवं महेश जी प्रसन्न हो गए. बच्चे उनकी कल्पना के विपरीत काफी सुंदर स्वच्छ और सवस्थ थे.

महेश संग इंद्राणी जी के ममत्व भरे व्यवहार से बच्चे जल्दी ही घुल -मिल गए. घर में आनंदानुभूति बढ़ गयी, संध्या समय जब बच्चे वापस जाते तो शर्मा जी को घर सूना लगता. शर्मा दम्पत्ति के लिए तो सुलेखा का बेटा खिलौना बन गया था.ज्ञउन्हें जब भी मौका मिलता उसके साथ तो तोतली भाषा में बात करते. हंसते -:हंसाते खुश होते जीवानंद में बीत रहा था कि वह समय भी आ गया जब घर में नवागत की छवि आंगन में उतरने को आई इंद्राणी ने एक सुन्दर बालक को जन्म दिया घर में खुशियों की बौछार होने लगी. अस्पताल से लौटने पर सुलखा ने इंद्राणी की इतनी सेवा की कि इंद्राणी जी कृतज्ञता के भार से दब गईं. उन्होंने सुलेखा से कहा आज मैं आप से कुछ मांगना चाहती हूँ. इनकार मत करना वरना मेरा दिल टूट जाएगा. सुलेखा बोली मैं किस लायक हूँ मेमसाहब. तो इंद्राणी बोली आप जैसी भी हो जो भी हो मेरी बड़ी बहन लायक हैं. मैं आज से आपको दीदी कहूँगी और आप भी मुझे केवल इंदिरा कहेंगी मेमसाहब नहीं. आपकी खुशी के लिए आप की हर आज्ञा का पालन करूँगी. इंद्राणी बोली दीदी मुझे किसी अपने अति करीबी से तुम सुनना अच्छा लगता है आप नहीं . एक बात और जब से आप आई हैं मेरा घर खुशियों से भर गया है. आज से आप मेरे नवजात बेटे को भी अपना बेटा मानना क्योंकि आप उनकी परवरिश मुझसे अच्छा कर सकती हैं. सुलेखा बोली आज तुम ऐसी बात क्यों कर रही हो.? मैं तुम्हारे बेटे को अपने बेटे से सदा बढ़कर मानती रहूंगी यह वचन देती हूँ. लेकिन आज तुम इतनी बाकी बाकी बातें क्यों कर रही हो? आज मेरा मन कुछ बताने और कुछ जानने का हो रहा है तो मैं पहले अपने बारे में बताती हूँ, कि मेरा जीवन ज्यादा दिन का नहीं है. मुझे दो बार साइलेंट हार्ट अटैक आ चुका है. शर्मा जी इस बात को जानते हैं. इसलिए ही डाक्टरों की सलाह पर मुझे हमेशा खुश देखना चाहते हैं. लेकिन मैं अब जब अपने नवजात शिशु का मुख देखती हूँ तो खुशी के बदले मुझे भय सताने लगता है कि कभी भी मैं इस सुंदर बच्चे को छोड़कर परलोक जा सकती हूँ. यह भय मेरे हृदय में बढ़ता जा रहा है. इसी से लगता है मुझे जल्दी ही जाना होगा दीदी ध्यान रखना मेरे बच्चे का उसे माँ की कमी न खलने पाये. अब एक ऐसा प्रश्न जो शायद आपको चौंकाए लेकिन आज आप मुझसे कुछ छिपाइयेगा नहीं सच  बइताएगा मुझे शक है कि आपने हमारे यहाँ काम पाने के लिए अपनी जाति छिपाई है. क्योंकि आपको और आपके बच्चों को देखकर ऐसा नहीं लगता कि आप उस जाति की हो जो आपने बताया है. आज सच बताएं आप कौन हैं कुछ देर चुप रहने के बाद सुलखा ने अपने बारे में सबकुछ बताने के बाद इंदिरा का मुख देखने लगी तो इंदिरा ने नाराज होने के बदले उसे गले लगाकर बोली मेरा अनुमान सच निकला दीदी यह संसार ही दुख- सुख वाला है मनुष्य को हिम्मत नहीं हारनी चाहिए.

  एक सप्ताह बीता इंद्राणी खा पीकर सोई तो सोई ही रह गई. शर्माजी पर दुखों का पहाड़ टूट गया वे दुखों के पहाड़ से ऐसे दबे की नेत्रों से अश्रुपात तक नहीं हुआ उनकी दशा विक्षिप्तों जैसी हो गई. वे नितांत एकांत सेवी हो गए कभी रोते तो कभी शून्य में इंदिरा से बात करते तो कभी हंसने लगते. दुखों के भार से तो सुलेखा भी अधीर हो गई थी. लेकिन उसने बच्चे के साथ- साथ घर को अपने घर की तरह सम्भाला जब तक कि न तो रिश्तेदारों का आना- जाना रहा. दिन  दिन बीते क्रियाक्रम बीतने के बाद जब सब जाने लगे तो नानी बच्चे की तरफ देखकर बोलीं इस कलमुहें को इंदिरा के साथ जला दिया होता. कलमुहा आते ही मेरी बेटी को खा  गया अब इस अपशकुन को कौन पालेगा. व्यथा पीड़ित महेश जी सिर नीचे किए बैठे रहे कुछ बोले नहीं किंतु सुलखा  ने बच्चे की नानी की बोली बर्दाश्त नहीं की. वह अपने स्वभाव के विपरीत तड़पकर बोलीं शर्म आनी चाहिए आपको बड़े घरों में भी आप जैसी मूर्ख और कर्कसा नारियाँ होती हैं, एक फूल जैसे बच्चे के लिए ऐसा कठोर शब्द कहते हुए आपकी जुबान कट कर गिर क्यों नहीं गई? सुन लीजिए यदि इस बच्चे की जन्मदात्री का नाम इंद्रा है उसे पालने वाली माँ का नाम सुलेखा है. इसने एक ही माँ खोया है दूसरी अभी जिंदा है. यह सुनकर बुढि़या बड़बड़ाती हुई बोली हाँ – हाँ तेरे जैसी चोर चकार नौकरानियां ही तो बड़े घरों के बच्चे पालती हैं. अब महेश बोल पड़े अम्मा अब बस भी करो क्यों मेरे उजड़े घर को जलाने आई हो? आप जाइए मुझे सुलखा जी के हर कथन पर भरोसा है.हम पाल लेंगे अपने बच्चे को हमें आप सब की किसी की मदद की जरूरत नहीं है. सब चले गए तो सुलखा बोली मालिक आप धैर्य धारण करिए जो ईश्वर  बिगाड़ता है वही बनाता भी है.

 सुलखा ने अपने बच्चे के लिए ऊपर का दूध बंधवाया और शिशु को अपना दूध पिलाना शुरू कर दिया वह हर समय बच्चे के लालन-पालन मेँ व्यस्त रहने लगीं. शाम को घर जाते समय बच्चे को साथ ले जाती धीरे- धीरे समय चक्र घूमता रहा और पुरानी यादों पर राख सी पड़ने लगी. कुछ अपने लोगों के दबाव के कारण पंडित जी ने दूसरी शादी कर ली. सुलेखा बड़ी प्रसन्न हुई कि चलो एक उजड़ा घर बस गया लेकिन अंतर यह था कि मालकिन अति आधुनिक स्वभाव की थी. थोड़े समय के बाद ही उन्होंने रंग दिखाना शुरू किया. अब वो बात-बात पर सुलखा को भी झिटक देतीं, कहती इन नौकरानियों को भगवान ने बुद्धि ही नहीं दिया है. देखो मालिक के बेटों को कैसे अपना बनाकर रखती है. जिससे मालिक इसके बस में रहे और इसका उल्लू सीधा होता रहे. महेश समझाते तो कहती तुम चुप रहो जी दिन भर कंपनी में सिर खपाते हो तुम्हें दुनिया दारी का तुम्हें कुछ पता नहीं.

 पंडित जी ने बेटे का नाम चंद्रकांत रखा था. सुलखा दुलार से उसे चंदू कहती थी सुरेखा पंडित जी की नई पत्नी जब कभी उसे अपने पास बुलाती तो वह माँ माँ कहता हुआ सुलखा के पास भाग जाता. सुरेखा कहती देखते हो यह भी नौकरों की भीड़ का हिस्सा बनकर रह गया है. नौकरानी के बच्चों को ही अपना भाई बहन समझता है.और उनकी माँ को ही मां. हो चुका जैसे होना था.ज्ञदिन बीतने के साथ परिस्थितियां भी बदली सुरेखा ने एक बेटे को जन्म दिया. छोटे बच्चे के पास चंदू जब खेलने जाता तो सुरेखा उसे झिड़क देती लब्बोलुआब ए रहा कि सुरेखा किसी हालत में चंदू की माँ नहीं बन सकी. बिमाता की विकृति उसके आचरण में रच बस गयी थी.

  चंदू अब छ: साल का हो गया था. घर का विपरीत वातावरण देख पंडित जी ने हृदय पर पत्थर रखा और बच्चे को बोर्डिंग वाले स्कूल में डाल दिया. कुछ दिन बच्चा माँ सुलेखा के लिए परेशान रहा फिर साथियों का साथ मिलने से सामान्य हो गया. अब उसका मन पढ़ने में भी लगने लगा पंडित जी जब उससे मिलने जाते सुलखा साथ में जाती चंदू उसे देखकर दौड़कर मामा करते हुए उससे चिपक जाता. समय पंख लगाकर उड़ता रहा दिन महीने साल बीतते गए सुलखा चंदू के मोह में आई अभी काम करती रहीं किंतु एक दिन सुरेखा के अति अनुचित व्यवहार से वह अत्यंत दुखी हुई . उसने अपने परिवार की तरफ देखा बेटी ब्याहने लायक हो गई श्यामू भी ऊंचे क्लास में पहुँच गया है. शहर की पढ़ाई में खर्च बहुत आ रहा है. घर पर बटाई दिए भी काफी दिन हो गए हैं. कुछ तो वहाँ से भी मिल जाएगा अब कुछ दिन के लिए घर चलते हैं. प्रोग्राम बना सुलखा पंडित जी के यहाँ गई. पंडित जी से बोली मालिक घर पर कुछ जरूरी काम आ गया है कुछ दिन की छुट्टी चाहिए. पंडित जी तो सोच में पड़ गए पर सुरेखा बोल पड़ी ठीक है ठीक है जाओ तुम मैं भी तुमसे अब ऊब चुकी हूँ. जाओ मैं दूसरी रख लूँगी. सुलखा जाने लगी तो  पंडितजी भरे गले से बोले अरे सुलेखा अपने हिसाब के पैसे तो लेते जाओ. सुलेखा बोली मालिक मेरे चंदू का ध्यान रखना, और मेरे पैसों से निशानी के तौर पर जब वह घर आवे तो एक मिट्टी की माँ खरीद देना. इतना कहकर वह चली गई पत्नी के इस व्यवहार से शर्माजी को आज  बहुत पीड़ा हुई लेकिन उद्दंड नारी पर इसका कुछ असर नहीं हुआ.

 जब चंदू को सुलखा का शहर छोड़कर जाने का पता चला तो वह रोने लगा. शांत होने पर पिता से उसका पता पूछा तो वे बता नहीं सके, क्योंकि सुलेखा का घरेलू पता उनको मालूम ना था चंदू पश्चाताप करता रह गया.

 समय बीतता रहा उच्चशिक्षा के बाद चंद्रकांत आई एस बन गया. जब वह जब घर आता तो उसे सुलेखा की याद आती.  बिमाता या उनकी संतानों से उसका कोई लगाव नहीं था. पिता से मिलकर वापस चला जाता.इस बीच पंडित महेश जी के आग्रह पर एक अति सुंदर संस्कृत शिक्षिका से इस शर्त पर शादी कर ली कि वह विवाह बाद नौकरी छोड़ देगी. लड़की का नाम तिलोत्तमा था. उसका यथा नाम तथा गुण भी था शादी के समय तिलोत्तमा ने अपने पति के आंखो में आंसू भरे देखे तो सशंकित हो गई कि कहीं मेरे साथ शादी से ए खुश नहीं हैं? यह शादी किसी दबाव के कारण तो नहीं हुई है.? फिलहाल वह उस समय वह किसी से कुछ पूछ नहीं सकती थी.दूसरे दिन घर पहुँचकर वे दूसरे दिन अपनी तैनाती वाले जिले में चले गए. समय बीतता गया लेकिन कभी-कभी चंद्रकांत उदास हो जाते पूछने पर ड्यूटी की थकान बताकर पल्ला झाड़ लेते.ज्ञइस बीच तिलोत्तमा गर्भवती हो गई नौकरों की फौज के बीच भी वह अपने को नितांत अकेली महसूस करती थी.बिमाता सास का व्यवहार वह जान चुकी थी. ननद भी कोई नहीं किससे अपने मन की बात करती. चंद्रकांत ने एक दिन कहा कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि आज हमारे साथ हमारी माँ नहीं है. बुरे दिनों में सारा प्यार मुझ पर लुटाकर मुझे पाला और आज जब अच्छे दिन आए तो अपने पोते पोती  को देखने के लिए यहाँ ना होकर जाने कहाँ है? है भी या नहीं कह नहीं सकते, लेकिन मेरी माँ अभी जिंदा है हो चाहे जहाँ भी.

  घर पहुँचकर सुलखा ने देखा सब कुछ बदला- बदला सा है,.घर  बेमरम्मत होन से गिर रहा है. कमरों में मौजूद सामान उपयोग लायक नहीं रह गए हैं. उस दिन पड़ोसी के घर रुककर दूसरा दिन घर की सफाई में लगा जैसे तैसे सामान रखा लोगों से मिलना जुलना हुआ. बधाई दारों को दिया हुआ खेत भी की देखभाल कर बटआई वालों से हिसाब किताब हुआ.एकाध हफ्ता बीतने के बाद जब जिंदगी कुछ पटरी पर आई तो लोगों की बातों पर ध्यान दिया लोग कहते हैं बेटी तो ब्याहने लायक हो गई है. अब इसकी शादी जल्दी कर देनी चाहिए. इसी बीच पड़ोसी के घर रिश्तेदार आए थे. उनकी निगाह जब ऋचा पर पड़ी तो पूछ बैठे यह किसकी लड़की है ? बड़ी सुन्दर है मेरा बेटा दरोगा हुआ है और उसकी शादी भी करनी है. लड़की तो मेरे घर लायक है लेकिन पता नहीं दहेज दे पाएंगे की नहीं. भाई लड़का दरोगा है. बिना बड़े दहेज के तो शादी नहीं करनी है. पड़ोसी बोला कई वर्षों बाद कमाकर तो लौटे हैं पैसा तो होगा ही. लेकिन पूछे कौन कहीं बुरा मान गए तो.?  बुरा मानें तो अपने घर रहें. मैंने तो लड़की की सुंदरता पर हामी भरी है, नहीं तो मेरे यहाँ तमाम दहेज देने वाले लाइन लगाए हैं. मैं तो जा रहा हूँ यदि ये लोग राजी हो तो हमें सूचित करना यदि ये लोग एक चौपहिया और सिर्फ दस लाख भी दे देंगे तो भी शादी कर लेंगे. पड़ोसी ने शाम को इनसे मिलकर बात चलाई तो ये लोग बोले इतना पैसा होता तो हम शहर में ही रहते,वहीं से सादी ब्याह करते हमें किसी खाते पीते साधारण परिवार में शादी करनी है . हम दहेज नहीं दे पाएंगे. उधर दरोगा का बाप अपने घर पहुँच कर लड़की की सुंदरता की इतनी तारीफ किया कि घरवाले वहाँ शादी के लिए लालायित हो गए. उनकी बातें सुनकर दरोगा खुद रिश्तेदारी के बहाने पड़ोसी के घर आया और लड़की को देखते ही पसंद कर लिया. रिश्तेदार से बोला ये जो भी देंगे हम उतने में ही शादी कर लेंगे. हमारे लिए पैसा मायने नहीं रखता.ज्ञदरोगा हूँ कमा लूँगा यह सूचना मिलने पर परिवार खुश हो गया. घर बैठे ही अच्छी शादी मिल गई. पड़ोसी के साथ जाकर शंभू शादी तय कराया. लेकिन आते समय लड़के का बाप बोला समधी जी लड़के को तो लड़की मिल गई मैं दारोगा का बाप मुझे कुछ नहीं मिलेगा तो मेरी बदनामी होगी. शम्भू सोच में पड़ गया लेकिन कुछ बोला नहीं घर आया परिवार से बात की और कार देने के लिए अपने हिस्से में आए जमीन का एक टुकड़ा बेंच दिया. धूमधाम से शादी हुई रिचा खुशी – खुशी अपने घर गयी. अब शंभू ने श्याम किशोर की भी शादी की एक साधारण परिवार में कर दी. जमीन का थोड़ा हिस्सा इसमें भी बिका परिवार बढ़ा खर्च बढ़ा अतः श्यामू परिवार के साथ एक दोस्त के बुलावे पर सूरत चला गया. उसे वहाँ सिल्क मिल में काम मिल गया काफी दिनों के बाद श्यामू एक बार घर आया भी दो चार सौ रूपये शंभू को दिए फिर लौट गया. तब से मुड़कर माता-पिता का नाम नहीं लिया.कभी वहाँ रहने वालों के जरिए हाल चाल मिल जाता. लेकिन घर या माता – पिता के बारे में बात भी नहीं करता शम्भू दिन रात चिंतित रहता इसी में उसकी तबियत बिगड़ गयी पास में पैसा था नहीं सुलखा ने बची जमीन बेंचकर उसका इलाज इधर- उधर करवाया किंतु चिंता की अग्नि में  जलता वह भी चिता वह भी चिता पर चढ़ गया.

 सुलेखा पर विपत्ति के बरसने वाले बादल रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. शंभू के क्रियाकर्म में बेटा बहू बेटी दामाद आए तो लेकिन वहाँ सुलेखा की दयनीय हालत देख उन्हें अपनी बेइज्जती का अहसास हुआ. बिना किसी औपचारिकता के वापस चले गए. सुलखा को अपनी ही विपत्ति की आग में जलने के लिए छोड़ गए. यह तो भला हो उस प्रधान का जिसने सुलेखा की वृद्धावस्था पेंशन बनवा दिया था.सुलखा जैसे- तैसे दिन काट रही थी एक दिन एक पड़ोसी नवयुवक उधर से गुजरा तो सुलेखा से उसने प्रणाम किया.सुलेखा बोली कहाँ रहते हो बेटा बहुत दिन बाद दिखाई पड़े हो.हाँ दादी घर नहीं था इस समय मैं दिल्ली में रहता हूँ. वहाँ कोई नौकरी करते हो हाँ एक रंगाई- छपाई की कंपनी में काम करता हूँ. रंगाई -छपाई तुम्हारे कंपनी के मालिक का क्या नाम है? क्यों क्या तुम उन्हें जान पाओगी, उनका नाम महेश शर्मा है? महेश शर्मा को मैं खूब जानती हूँ बेटा मैंने भी उनके घर पर काम किया है. क्या आप उन्हें जानती है हाँ क्यों नहीं मैं उनके पूरे परिवार को जानती हूँ. उनका बड़ा बेटा चंदू मुझे माँ कहता था. पता नहीं वह कहाँ है कैसे है? उनकी अभी भी मुझे बड़ी याद आती है.वह हमारे श्याम से एक साल छोटा है. अरे! दादी चंद्रकांत भैया बहुत बड़े अधिकारी बन गए हैं. और कंपनी में ही सुना हूँ है कि इस समय वे यहीं अयोध्या के एस पी हैं? क्या अयोध्या के एस .पी.?हाँ दादी. क्या बताऊँ असहाय हूँ विपत्ति ने शरीर की ताकत भी छीन ली है मजबूर हूँ नहीं तो चंदू से जरूर मिलती.? लेकिन अब पता नहीं वह मुझे पहचानेगा की नहीं. लेकिन भले ही वह नही  पहचाने तो भी एक बार उसे देखती कि मेरा लगाया बिरवा कितना बड़ा हुआ है. और तो अपने शरीर से पैदा हुए नहीं पहचानते इस युग में तो उनका का क्या ? युवक बोला दादी चली जाओ अयोध्या तीर्थ भी कर आओ और मिल भी आओ. यह कहकर युवक चला गया सुलखा सोचने लगी भाड़े के पैसे तो हैं नहीं, नहीं तो कल ही चली जाती. लोगों से पता किया पेंशन आई है. दूसरे दिन पेंशन निकाला और लोगों से अयोध्या एस पी आवास का पता पूछा और सुबह बस पकड़ने के लिए तैयार होने लगी, तभी ख्याल आया अगर चंदू ने पहचान लिया और पूछ लिया माँ मेरे लिए क्या लाई हो तो क्या जवाब दूंगी? फिर उसने दुकान से दो किलो गुड़ खरीदा और सफेद तिल भूनकर छोटे- छोटे लड्डू बनाए गुड़ का. और सुबह पहली बस से चल पड़ी दो बजे फैज़ाबाद पहुंची फिर रिक्शे से एस पी आवास पहुंची. पुलिस अधीक्षक आवास पर अफसरों की कोई मीटिंग चल रही थी. तमाम अधिकारी एवं पुलिस वहाँ उपस्थित थे उसी समय सुलखा गेट की तरफ बढ़ी. गेट पर पहरे पर खड़े सिपाही ने उसे टोंका, डांटकर बोला कहाँ चली जा रही है?…, अंदर तमाम साहब लोग इकट्ठे हैं.इस समय किसी का भी अंदर जाना मना है. मेरी नौकरी लेना चाहती है क्या? उसने समझा फरियादी है बुढ़िया. रुककर बोली भैया मेरा चंदू सुना है अफसर बनकर यहाँ आया है. ठीक है मैं अंदर नहीं जाउंगी, उसे यही बुला दो पहरेदार फिर कड़कदार आवाज में बोला यहाँ कोई चंदू अफसर नहीं हैं. भाग जाओ नहीं तो पुलिस तुम्हें उठाकर जेल में डाल देगी. पहरे वाला बोला वाला मुस्कुरा कर बोला ठीक है बेटा जेल में डाल देना कोई बात नहीं है, लेकिन एक बार मेरे चंदू से मिला दो मैं बड़ी दूर से आई हूँ दुखियारी हूँ थकी हुईं हूँ, एक बार चंदू से मिला दो फिर मैं वापस चली जाऊँगी अब पहरेदार गुस्से में रपटकर बोला तू तो मेरी नौकरी के पीछे ही पड़ गई हो चली जाओ नहीं तो ठीक नहीं होगा. अंदर प्रांगण में घास पर कुर्सियाँ डाले दो तीन दरोगा बैठे थे. उसकी कड़क आवाज को सुन कर वहीं से पूछने लगे क्या बात है पहरा..? साहब एक बुढ़िया आई है बार- बार चंदू से मिला दो चंदू से मिला दो की रट लगाए है. बार -बार अंदर जाना चाहती है.मना बार बार अंदर जाना चाहती है करता हूँ मानती नहीं है. उसी समय एस. पी का अर्दली बाहर निकाला किसी काम से तो दरोगा उससे बोला भाई साहब कोई बुढ़िया किसी से मिलने के लिए गेट पर हठ कर रही है, ज़रा आप देख लो कौन है क्या चाहती है? अर्दली गेट पर गया और बुढ़िया से पूछा क्या बात है अम्मा किससे मिलना है, सुलखा बोल पड़ी बेटा मेरा चंदू यहाँ अफसर बनकर आया है. मुझे उसी से मिलकर तुरंत वापस चली जाना है. अर्दली ने कुछ देर सोचा चंदू तो किसी का नाम नहीं है. फिर भी पता करता हूँ ठीक है अम्मा तुम यहाँ रुको मैं पता करके बताता हूँ. अर्दली मीटिंग हॉल में जाकर खड़ा हुआ तो जस पी  ने ? वाचक नजरों से देखा तो सब का ध्यान उधर गया अर्दली बोला साहब एक बुढ़िया अंदर आने की जिद कर रही है कह रही है सुना है मेरा चंदू यहाँ अफसर बनकर आया उससे मिलना है, क्या आप लोगों में से किसी का नाम चंदू है..?मेरा नाम चंदू है कहाँ हैं वह बूढ़ी माँ…? गेट पर हैं सर..

 एस पी साहब तुरंत कुर्सी छोड़कर दौड़ पड़े. सारे अधिकारी अवाक होकर उनके पीछे चले बुढ़िया को देखते ही एस पी  साहब माँ मेरी माँ कहाँ चली गयी थी. तुमने हमें भुला दिया नहीं मेरे लाल भला मैं तुझे सांस रहते कैसे भूल जाती? मजबूरी बस मैं गांव चली आयी थी. माँ तेरी दी हुई मिट्टी की माँ अब भी मेरे पास मौजूद है. जिसे पिताजी ने तेरा आशीर्वाद कह कर दिया है. एस पी साहब बार- बार माँ के चरणों की धूल माथे पर लगाते बार-बार गले लगाते उनकी इस गरिमा में भावुकता के सामने सब नतमस्तक थे. सबने बुढ़िया की चरणधूलि ली मीटिंग कैंसिल कर चंद्रकांत जी सुलेखा को अंक भर कहते जा रहे थे, माँ तेरे बिना तेरी बहू बिकल रहती थी पूछती थी क्या माताजी जिंदा होंगी? क्या वह शुभ घड़ी आएगी जब हम माँ को देख सकेंगे ? अंदर बंगले में कदम रखते ही चंद्रकांत चिल्ला कर बोले तिलोत्मा देखो ईश्वर की कितनी बड़ी कृपा हुई कि मेरी माँ स्वयं चलकर मेरे पास आ गई. सुलेखा के नयन बरस रहे थे. वाणी मूक थी. चरणों में पड़ी बहू के सिर को आंसुओं से अभिषिक्त कर उसे उठाकर गले लगा लिया. सारे कर्मचारी इस हृदयद्रावक दृश्य को दूसरे दूर से निहार रहे थे.

 कुछ आश्वस्त होने के बाद चंद्रकांत ने कहा माँ तेरे बिछोह ने मुझे प्रति दिन तड़पाया लेकिन अब मैं तुम्हें कहीं नहीं जाने दूंगा. मां तुम्हारे दूध का दाम तो मैं सौ जन्मों तक नहीं चुका सकता. लेकिन अब मेरे ऊपर कृपा करके मुझे पुत्र धर्म का पालन करने देना.  नि:शब्द सुलखा ने अपने दोनों आशीष में उठाए हाथ चंद्रकांत के सिर पर रख दिया.

कहानीकार हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं.

प्रकाशित हिंदी उपन्यास “रद्दी के पन्ने

प्रयुक्त द्वारा फोटो ए आई

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