संभव नहीं जाति की राजनीति को रोकना : के. सी. त्यागी
रमेश कुमार मिश्र
राष्ट्रीय हिंदी अखबार दैनिक जागरण के संपादकीय पेज पर 31 अगस्त 2024 को के सी त्यागी जी का एक लेख “संभव नहीं जाति की राजनीति को रोकना” छपा है. जिसमें केसी त्यागी जी बिहार के मुख्यमंत्री मंत्री नीतीश कुमार के द्वारा जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी करने को आज जातिगत जनगणना के पक्ष में तेज हुई बहस का आधार बताते हैं. अपने इस लेख में त्यागी जी लिखते हैं कि ” मंडल आयोग की रपट लागू होते समय राजीव गांधी विपक्ष के नेताप्रतिपक्ष थे . उन्होंने न सिर्फ वी पी सिंह सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत किया, बल्कि जाति आधारित आरक्षण का विरोध भी किया ” के.सी.त्यागी जी द्वारा इस बात का उल्लेख किया जाना कांग्रेस को जगाने का है. वह कांग्रेस जो आज सत्ता की लालच में जाति आधारित जनगणना का अपने चुनावी घोषणा पत्र मे घोषणा कर रही है सदन से लेकर सड़क तक लड़ाई लड़ रही है को राजीव गांधी के सदन में जाति आधारित विचारों का आइना भी दिखाने का प्रयास है, हालांकि के .सी .त्यागी जी यहाँ बहुत सधे स्वर में कांग्रेस को यह बताना नहीं भूलते हैं कि अगर आपकी नियति जातिगत जनगणना को लेकर इतनी ही स्पष्ट है तो कर्नाटक राज्य में हुए सर्वे का आंकड़ा प्रस्तुत करने में आपको दिक्कत कहाँ है, कीजिए? के.सी .त्यागी जी पुराने समाजवादी नेता हैं डाक्टर लोहिया से लेकर चौधरी चरण सिंह तक के साथ राजनीतिक जीवन में सक्रिय रहने से लेकर इंदिरा गांधी राजीव गांधी जनता पार्टी की सरकार अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर मनमोहन सिंह व नरेंद्र मोदी तक के कार्य काल को बहुत करीब से देखे परखें हैं, अगर वे कांग्रेस को जाति जनगणना पर आडे़ हाथ ले रहे हैं तो इसका मतलब है कि वे इस बात की तरफ इशारा भी कर रहे हैं कि आज कांग्रेस के नेता राहुल गांधी जो कह रहे हैं शायद वह जाति जनगणना का एक कोरा वादा हो और कभी सत्ता में यदि कांग्रेस आती है तो यह कार्य कराएगी भी कि नहीं संशय है. बहरहाल राजनीति में नैतिक चरित्र की महत्ता का आइना भी कांग्रेस को के सी त्यागी अपने इस लेख में बताते नजर आते हैं.
अपने लेख में डाक्टर अंबेडकर का उल्लेख करते हुए वे बताने का प्रयास करते हैं कि डाक्टर अंबेडकर जाति को प्रगति पथ का रोड़ा मानते थे. इसी कड़ी में वे डाक्टर लोहिया के जाति पर विचारों का उल्लेख करते हुए बताते हैं कि डाक्टर लोहिया जाति को एक ऐसी जकड़न मानते थे उनका मानना था इस जकडन में मेहनत और गुण गौड़ हो जाते हैं और जन्म के आधार पर यह तयं होता है कि व्यक्ति का जन्म किस जाति में हुआ है. ऐसे में कुछ खास तबके हुनर सीखने का अवसर पाते हैं और बहुसंख्यक समाज उपेक्षित होकर रह जाता है, हालांकि इसी खास समस्या को दूर करने के लिए लोकतंत्र की स्थापना हुई संविधान बना और उसमें सभी की भागीदारी के द्वार खोले गए, हाशिये के लोगों को मुख्य धारा में लाने का प्रयत्न हुआ 10 वर्ष के लिए संविधान में दलितों और आदिवासियों के लिए आरक्षण का प्राविधान किया गया. लेकिन यह कालांतर में राजनीति का शिकार हुआ. शोषित वंचित जिंहे मुख्यधारा में लाने के लिए संविधान में आरक्षण की व्यवस्था हुई तो वह बाद में राजनीतिक लाभ के लिए राजनीतिक पार्टियों के लिए मुद्दा बन गया.
उपर्युक्त का जिक्र करते हुए त्यागी जी उन सभी अनुसूचित जनजातियों व आदिवासियों को यह भी आइना दिखाने का प्रयास करते हैं कि अगर यह व्यवस्था न होती तो आज जो सदन में आपके एम पी एम एल ए दिखते हैं वह न होते.
के सी त्यागी जी अपने लेख में लिखते हैं कि “देश में जातीय राजनीतिक तस्वीर को सबसे पहले भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर ने बदला, जिन्होंने वंचित तबकों में राजनीतिक चेतना जागृत की थी” वे बताते हैं कि इसके बरख्श उन्हें सत्ता से हाथ धोना पड़ा वी पी सिंह यही काम राष्ट्रीय स्तर पर किए भुगतान उन्हें भी सत्ता गंवाकर करना पडा़. यदि इसका विश्लेषण किया जाए तो तस्वीर थोड़ी साफ हो सकती है कहीं के सी त्यागी जी वर्तमान सरकार को आगाह तो नहीं करना चाह रहे हैं कि जिस जिस ने इस रेलगाड़ी पर सफर किया वह सत्ता से बेदखल हुआ.
भारतीय राजनीति के परिप्रेक्ष्य में के सी त्यागी जी राजनीति विज्ञानी रजनी कोठारी की की कही बात उल्लेख करते हुए बताते हैं कि “ भारत में जाति के राजनीतिकरण ने दलीय राजनीति में अहम भूमिका निभाई है. उन्होंने साबित किया कि जाति का राजनीतिकरण एक दोहरी प्रक्रिया है. जाति को राजनीति की उतनी ही जरूरत है जितनी राजनीति को जाति की ….
के सी त्यागी जी ने अपने जीवन की लंबी अनुभव यात्रा के आधार पर यह बात कहने की कोशिश की है कि भारतीय राजनीति की कल्पना जाति से हटकर करना बेमानी है. भारतीय राजनीति आज विकास के मुद्दों से इतर जाति के मुद्दों पर केंद्रित है. डाक्टर अंबेडकर और डाक्टर लोहिया के विचारों का उल्लेख कर त्यागी जी ए तो मान रहे हैं कि भारत की प्रगति के लिए जाति जकडन और प्रगति पथ की बाधा है लेकिन यहाँ की राजनीति में जाति शरीर में खून की तरह शामिल हो चुकी है जो है तो एक बीमारी लेकिन यह भी सच है कि वह बीमारी भारतीय राजनीति का हिस्सा है.
उपरोक्त के संदर्भ में मैं यही कहना चाहूंगा कि के सी त्यागी जी का यह आलेख सत्ता पक्ष व विपक्ष दोनों को पढना चाहिए. जाति जरूरी है तो उसके नुकसान भविष्य की राजनीति और देश की सूरत के लिए क्या होंगे और जाति का विरोध है तो फिर सामाजिक ढांचा कैसा होगा.