अरुणाकर पाण्डेय
किसी साहित्यिक विभूति को याद रखने का संभवतः सबसे अच्छा माध्यम उसका साहित्य ही हो सकता है क्योंकि वही उसकी सबसे बड़ी पहचान बनता है | यदि इतना भी हो सके कि उसकी कृतियाँ पढ़ीं-समझीं जाएँ और वे लागातार जनता की स्मृतियों में बनी रहे तो शायद इससे बड़ी बात साहित्यकार के लिए हो नहीं सकती | लेकिन सर्वविदित ही है कि आज भी यह कथन एक सपना है जिसके शायद पूरे होने की संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आती| ऐसा नहीं है कि संस्थाओं और संघटनों ने इसके लिएअथक प्रयास नहीं किये लेकिन फिर भी विवश होकर यह मानना ही पड़ेगा कि जितनी लोकप्रियता साहित्यकारों की होनी चाहिए थी वह उनको हासिल नहीं हुई | भारत में तो जो ख्याति सिनेमा,क्रिकेट खिलाड़ियों और राजनेताओं की है उसकी लेशमात्र भी साहित्यकारों की नहीं ! साधारणतः लोग उनके नाम तो जानते हैं लेकिन इससे अधिक, जैसे कि उनके जीवन वृत्त, या रचनाओं और उनसे जुड़े चरित्रों की बारे में बहुत नहीं बता पायेंगे | बोलचाल के लहजे और संप्रेषणीय गद्य में लिखी कृतियाँ उन तक नहीं पहुँचती हैं तो फिर कविता की उम्मीद रखना तो बेमानी ही है |हाँ, कुछ सीमा तक नुक्कड़ नाटकों और मंचीय कविताओं की अपनी पहुँच जरुर है लेकिन वे भी अन्य माध्यमों के बरक्स बहुत फैले हुए तो नहीं कहे जा सकते | लेकिन भारत से बाहर फिर भी साहित्यकारों की रचनाओं के साथ कई बार उनके बीते हुए जीवन को भी रचने की दुर्लभ चेष्टाओं की जानकारी मिल जाती है |
इधर साहित्य कि दुनिया के लिए एक ऐसी ही बहुत बड़ी खबर कई वर्ष पहले पढ़ने को मिली कि चीन
के फुज्होऊ में शेक्सपियर के गृहनगर स्ट्रेटफ़ोर्ड-अपोन-एवन को पुनर्निर्मित किया जाएगा | यदि यह
निर्माण इंग्लैंड में किया जाता तो यह खबर इतनी आकर्षित नहीं करती और भारतीय तथा यूरोपीय
सांस्कृतिक दृष्टि के अंतर को समझने का एक अन्य उदाहरण बनती लेकिन जब पता चला कि
शेक्सपियर का यह नगर एक ऐसे देश में बनाया जाने वाला है जहाँ आज भी लोग अंग्रेजी नहीं जानते तो
यह एक दुर्लभ बात हो गयी | स्ट्रेटफ़ोर्ड-अपोन-एवन आज भी एक अत्यंत लोकप्रिय पर्यटन स्थल है
जिसे प्रतिवर्ष लाखों लोग शेक्सपियर की वजह से ही देखने आते हैं | लेकिन आश्चर्यजनक रूप से यहाँ
सबसे अधिक पर्यटक चीन से आते हैं | यही कारण है कि इसकी एक प्रति (यदि कह सके तो !) चीन के
फुज्होऊ में बनाने का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ है | खबर है कि इस निर्माण में रॉयल शेक्सपियर थिएटर
और होली ट्रिनिटी चर्च के साथ ही साथ सोलहवीं शताब्दी के शेक्सपियर के निवास भी शामिल किये जा
रहे हैं | पर एक सवाल यह बनता है कि यह करने की जरुरत क्या थी ! पता चला है कि स्ट्रेटफ़ोर्ड की
मेयर जूलियट शॉर्ट ने इस बारे में यह कहा है कि इस पुनार्निर्मिति को देखकर और अधिक लोग
स्ट्रेटफ़ोर्ड के प्रति आकर्षित होंगे और वे शेक्सपियर की असली जन्मभूमि को देखने अवश्य आयेंगे |मेयर
का यह कहना वास्तव में उस बड़ी सोच को दर्शाता है जहाँ राजनीतिज्ञों या राजनीतिक व्यक्तित्वों का
काम एक बहुत बड़ा सांस्कृतिक संरक्षण भी होता है | शायद इसके पीछे सिर्फ शेक्सपियर ही एकमात्र
कारण नहीं है बल्कि वह समाज भी है जो लेखक-रचनाकार का महत्व भी समझता है | लेकिन यह
अकेला उदाहरण नहीं है, यदि ऐसे में 1998 में बनी ‘शेक्सपियर इन लव’ जैसी काव्यात्मक फिल्म को
याद किया जाए तो साहित्यकार और उसकी रचनात्मकता को जीने (क्रिस्टोफर मार्लो सहित !) और उसे
एक नए माध्यम पर निर्मित करने का बेजोड़ प्रयास दिखता है | फिल्म का अंत ‘ट्वेल्थ नाईट’ की
रचनात्मकता की शुरुआत में होता है | अभिप्राय यह कि स्मृति भी एक अनंत डिजाईन है | इसके कई
स्वरुप हो सकते हैं लेकिन इस मामले में अब भी यही समझ सशक्त है कि रचना से बेहतर स्मृति शायद
कोई और नहीं हो सकती क्योंकि वह इन सब का आधार है !
लेकिन यहाँ पर स्मृति के भारतीय तरीके पर भी दृष्टि डालने का मन बनता है | हम अपने किसी भी
बड़े और स्थापित लेखक के नगर का पुनर्निर्माण तो सोच भी नहीं सकते क्योंकि प्रायः उनकी रचनाओं के
साथ लोगों की बहुत आत्मीयता तो बनती नहीं दिखती या कहा जा सकता है कि वे स्मृति का हिस्सा
नहीं बन पाते | लेकिन फिर भी कुछ प्रयास अक्सर याद आते हैं |कई जगह उनके नामों पर मार्ग, भवन,
नगर, मोहल्ले तो मिल जाते हैं | जैसे, कलकत्ता में रवीन्द्र सरणी, दिल्ली में भवभूति मार्ग, लखनऊ में
कालिदास मार्ग और निराला नगर, बनारस में कबीरचौरा और तुलसी घाट।एक पूरा जिला संत रविदास नगर भी
है, निश्चित ही और भी होंगे | दो तीन रेलगाड़ियाँ भी याद आती हैं जैसे कि कामायनी एक्सस्प्रेस,
कैफ़ियत और गोदान | बहुत से साहित्यकारों के चित्रों के डाक टिकट भी समय-समय पर जारी हुए हैं |
एक बार टीवी पर देखी हुई घटना नहीं भूलती जब 2015 में सोनी चैनल पर फिल्मफेयर अवार्ड के दौरान
मजाक करते हुए कपिल शर्मा को प्रेमचन्द याद आए | मजाक यह था कि उन्होंने वह पानीपुरी (गोलगप्पा) नहीं
बनाया जिसे माधुरी दीक्षित के पति श्रीराम नेने खाकर ‘भारतीय’ हो जाते।यह पोपुलर फ्रन्ट पर प्रेमचन्द की स्थिति
है – कथा सम्राट प्रेमचन्द की ! जबकि आज भी अंग्रेजी साहित्य के सुप्रसिद्ध और अनेक बार निर्मित पात्र
शर्लाक होम्स का पता है – 221 बी , बेकर स्ट्रीट , वेस्टमिनिस्टर,लन्दन | कहते हैं कि इस पते पर लोग होम्स को
पत्र भेजा करते थे।यदि होरी,सूरदास, हामिद या फिर माणिक मुल्ला अथवा रंगनाथ को ही पत्र भेजा जाए तो उनका
पता क्या होगा ! शायद होते हुए भी नहीं होगा क्योंकि इन्हें पत्र लिखने वाले इनमें से ही कोई होते हुए भी
इन्हें नहीं जानते और यदि जानते भी रहे हों तो भूल चुके होंगे | ऐसे ही रहीम पर राहुल जी को पढ़ कर
यह धारणा बनती है कि वो अकबर की बेहतरीन कृति थे।दिल्ली महानगर में अचानक ही अनेक योद्धाओं की कब्रें
दिख जाती हैं, जिनमें से एक रहीम की भी है।लेकिन वे अपनी कविताई के लिए ही जाने जाते हैं। क्या रचनात्मकता
कब्रों से अधिक सघन स्मृति-स्थल नही है?बात वहीँ रह जाती है कि कृति ही स्मृति का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है |
लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक हैं.