नूर-ए-महताब

डाक्टर संदीप

आज फिर चेहरे पर उसके शादाब देखा

खुली निग़ाहों से दिलकश ख़्वाब देखा..

थम गया नज़र में मेरी ये मंज़र सारा

जब सड़क पर चलता नूर-ए-महताब देखा..!!

वो ख़्वाब की ताबीर है या ख़्वाब क्या पता

मैंने तो अपने धड़कते दिल को बेताब देखा…

क़यामत है गुलाब से

पत्रकार, लेखक, विचारक, ब्लॉगर,अंतरराष्ट्रीय संबंधों में डॉक्टरेट अर्थात् Ph.D (Int’l & Pol. Studies), DU. @IIMCAA Alumni.

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