अरुणाकर पाण्डेय
एक ऐसी किताब जिसकी कहानी सर्वविदित हो, आखिर कितने मूल्य में बिक सकती है ? इसके साथ ही यह विचार किया जाए कि कोई ऐसी किताब क्यों खरीदेगा तो यह साहित्य की दुनिया में कौतूहल पैदा करने वाली खबर ही मानी जाएगी | किताब का नाम है हैरी पॉटर की सीरीज का पहला उपन्यास –‘हैरी पॉटर एंड द फिलोस्फर्स स्टोन’ जिससे जे.के. रॉलिंग ने शुरुआत की थी | उसके प्रथम संस्करण की एक प्रति की नीलामी जून में एडिनबर्ग के लायोन एंड टर्नबुल ऑक्शन हाउस में की गई तो वह 53000 यूरो यानी लगभग 49 लाख रूपये में हुई | यह प्रति 1997 के पहले संस्करण में प्रकाशित 500 प्रतियों में से एक है | यूरोपियन वेबसाइट यूरो न्यूज़ के अनुसार जब इसका पहला संस्करण आया था तब प्रकाशकों को इसके बिकने की बहुत उम्मीद नहीं थी और इसलिए उन्होंने इसकी मात्र 500 प्रतियाँ ही छापी थीं | इसकी त्रुटियों को देखते हुए इस प्रति के बिकने का अनुमान चालीस से साठ हजार पोंड के बीच लगाया जा रहा था जो कि लगभग तिरालिस लाख रूपये से लेकर साढ़े चौसठ लाख रूपये के बीच बनता है | पर यह किताब बिकी लगभग 49 लाख रूपये में |
इसकी कम कीमत में बिकने के पीछे जो त्रुटियाँ बताई गई हैं दरअसल उन्हें जानना संपादन की दृष्टि से और भी रोचक है | बताया जा रहा है कि इस पुस्तक की प्रति में दो ऐसी त्रुटियाँ हैं जिसके कारण इसका लगभग दस लाख रूपये का नुक्सान हो गया है | पहली त्रुटि तो यह है कि इस प्रति के निचले कवर में फिलोस्फर्स शब्द की वर्तनी गलत है | दूसरी त्रुटि यह बताई गई है कि उस संस्करण के पृष्ठ संख्या 53 पर ‘1 वैंड’ शब्द दो बार छपे हुए हैं | मतलब यह स्पष्ट है कि इन दो गलतियों की वजह से इस संस्करण की प्रति लगभग दस लाख के घाटे में चली गई |
इसे इसके पिछले मालिक ने दो दशक पहले लंदन में एड्रियन हैरिंगटन की केंसिंग्टन चर्च स्ट्रीट शॉप से प्राप्त किया था। किताबों और पांडुलिपि भाग की प्रमुख कैथी मार्सडेन ने कहा, “हैरी पॉटर एंड द फिलोसोफर्स स्टोन का पहला संस्करण किसी भी स्थिति में मिलने वाली एक असाधारण दुर्लभ पुस्तक है, और ऐसी उत्कृष्ट स्थिति में इसे किसी भी हैरी पॉटर संग्रहकर्ता के मुकुट का गहना कहा जा सकता है।”
मार्सडेन ने कहा, “यह देखते हुए कि अधिकांश लेखन एडिनबर्ग में हुआ, यह उचित है कि हैरी पॉटर इतिहास का यह प्रारंभिक और महत्वपूर्ण अंश राजधानी में बेचा जाएगा।”
पहली पुस्तक के साथ-साथ, एक अमेरिकी संग्रहकर्ता से प्राप्त लॉट में “हैरी पॉटर एंड द चैंबर ऑफ सीक्रेट्स” की 1998 के पहले संस्करण की प्रति भी शामिल थी, जो £7,560 (€8,900)(नौलाख उनचास हज़ार रूपये) में बिकी, और उसमें‘हैरी पॉटर एंड द फिलोसोफर्स स्टोन “का प्रारंभिक 1997 संस्करण” भी शामिल था जिसमें राउलिंग द्वारा पिछले मालिक को लिखा गया एक नोट भी मौजूद है।
इस पुस्तक के साथ इयान फ्लेमिंग द्वारा लिखी जेम्स बांड सीरीज़ का पहला उपन्यास ‘कैसिनो रोयाल’ £38,951 (बयालीस लाख रूपये) और विनी द पूह के लेखक ए.ए. मिल्ने द्वारा लिखित “व्हेन वी वेयर वेरी यंग” का 1924 का पहला संस्करण भी नीलामी के दौरान £15,120 (€17,900) (सोलह लाख तीस हजार रूपये)में बिका।
बिक्री के बाद, मार्सडेन ने कहा कि वह परिणामों से “खुश” हैं और उन्हें लगता है कि ये “आज के बाजार में आधुनिक प्रथम संस्करणों की ताकत दिखाते हैं”। उन्होंने कहा कि “इयान फ्लेमिंग और जेके राउलिंग जैसे साहित्यिक दिग्गजों की कृतियाँ नीलामी में बहुत लोकप्रिय साबित होती रहती हैं और मुझे उम्मीद है कि इन पुस्तकों का उनके नए घरों में बहुत आनंद लिया जाएगा और उन्हें संजोकर रखा जाएगा।”
यदि किसी भी भाषा के साहित्य के इतिहास की दृष्टि से देखा जाए तो जे.के.राउलिंग और उनके साहित्य की उपस्थिति बहुत पुरानी नहीं कही जा सकती क्योंकि आज भी कई ग्रंथों की मूल प्रतियाँ देखने को मिल जाती हैं जो कम से कम 1997 से बहुत पहले की हैं | लेकिन यदि उनके रख-रखाव की भी बात की जाय तो संभवतः इतना खर्च आज तक उन पर नही हुआ होगा | यह सोचने की बात है कि जो इतना मौलिक और प्राचीन साहित्य आज भी न जाने कितने पुस्तकालयों और संग्रहालयों में रखा हुआ है उसके प्रति ऐतिहासिकता की भावना हमारे समाज में क्यों नहीं पनप सकी | बल्कि वे जितनी पुरानी होती चली जा रही हैं वे जनता के मन मस्तिष्क से भी मिटती चली जा रही हैं | हालांकि इस दृष्टि से एक गंभीर अध्ययन की आवश्यकता साहित्य के अध्येताओं के लिए अवश्य बनती है तभी इस विषय पर कुछ ठोस बात की जा सकती है |
इस समाचार ने एक अन्य बात की ओर ध्यान आकर्षित किया है और वह है गंभीर संपादन कार्य | भाषा और वर्तनी की अशुद्धियों और मानकता को लेकर बहुत कम चर्चा साहित्य जगत में देखने को मिलती है | एक वर्तनी की गलती और एक संपादन की गलती ने किताब की कीमत लगभग दस लाख रूपये कम कर दी और ध्यान देने की बात है कि इन त्रुटियों के कारण पहले ही यह अनुमान भी बाजार लगा चुका था और अंततः हुआ भी यही कि वह साठ लाख के बजाय उनचास लाख में बिकी | यदि वे दोनों त्रुटियाँ नहीं होती तो उक्त किताब के लगभग साठ लाख रूपये मिलते | यह एक अन्य प्रकार की मानसिकता का बाजार (पुस्तकों का) है जो भारत जैसे देशों में अभी तक पनप नहीं सका है लेकिन इस घटना से यह तो सोचना ही चाहिए कि संपादन का महत्व क्या हो सकता है | बहुत कम लोग हैं जो इस काम के प्रति बहुत गम्भीर रवैया अपनाते हैं नहीं तो हर प्रकार के प्रकाशन में और विशेषकर सूचना और साहित्य में और शिक्षा में हिंदी को लेकर बहुत संजीदगी नहीं दिखाई देती | किताबें बस किसी तरह प्रकाशित हों, उनका लोकार्पण हो, और कुछ समूहों में वे सिमटकर रह जाएं और सरकारी खरीद या लेखक की जेब के भरोसे हों, यही तो परिदृश्य दिखाई देता है |
इसके बावजूद यह विषय निश्चित ही चर्चा और शोध का विषय है जिसे अब विश्विद्यालयों,संस्थाओं,प्रकाशकों,लेखकों और उन सब के बीच जाना चाहिए जो पुस्तक के होने के अर्थ को ऐतिहासिक प्रतिष्ठा दिलाना चाहते हैं | भारत के संदर्भ में यह विषय पुस्तक की बिक्री मूल्य का नहीं बल्कि उसके ऐतिहासिक महत्व का है जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है |
लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक हैं।