जो बिकने लगा वह किसी एक का होकर नहीं रहता है
रमेश कुमार मिश्र
मुर्गे की पहली बांग के साथ रामू काका जाग जाया करते थे.उनके पास एकमात्र गाय थी.सुबह उठने के साथ रामू काका उसकी हउदी में चारा पानी डाल देते थे. गोबर इकट्ठा कर उसे पलड़ी में भरकर पलड़ी सिर पर रखकर गोबर खेत में ले जा कर फेंक देते और गाय के लिए हराचारा काटकर घर पर लाकर पटक देते थे.हाथ मुँह धोकर थोड़ा सा गुड़ लेकर एक लोटा पानी पीकर अपना रिक्शा चलाने का काम शुरू कर देते थे. रोज की तरह हिलते हाथ से सूरज की पहली रोशनी के साथ रिक्शा लेकर चौराहे पर पहुँच सड़क किनारे रिक्शे के ब्रेक में कपड़े से बनी डोरी की ओटन फंसाकर रिक्शा खड़ा कर दिए. शंकर के हाथ में पांच रूपए का सिक्का पकड़ाते हुए बोले लाओ बेटा शंकर हमारी सुबह की चाय दे दो .शंकर बोला बेंच पर बैठ जाओ रामू काका . रामूकाका ने गले से गमछा उतार बेंच पर बैठी असंख्य मक्खियों को भगाते हुए कहा कि शंकर बेटा सुबह- सुबह न जाने कहाँ से इतनी सारी मक्खियां आ जाती हैं.शंकर ने कहा जैसे आप सुबह- सुबह अपना रिक्शा लेकर काम पर आ जाते हैं उसी तरह ये मक्खियां भी अपना काम कर रही हैं सब अपने -अपने स्वभाव में मस्त हैं. शंकर अभी चाय पकने में और कितना समय लगेगा. मूंज के बेने की धौकनी को भट्ठी के मुहं पर तेज़ी से भौंकते हुए शंकर ने कहा रामू काका आजकल मिलावट का दौर चल रहा है.कोयले में भी बहुत मिलावट आ रही है . कोयले के बहुत से सारे दाने जलते ही नहीं इसलिए भट्ठी गर्म होने में टाइम लग जाती है.हाँ बेटा मिलावट तो सब तरफ हो गई है. इस सड़क को ही देख लो अभी छ: माह पहले यह पीच रोड बनी थी और इसमें मिलावट का आलम ये रहा ठेकेदार द्वारा कि आज अपने करम को रो रही है. चायदानी ऊपर उठाते हुए शंकर ने कहा हाँ तभी तो इस जवानी में तुम इस सड़क पर रिक्शा मोटरसाइकिल की गति में भी चलाना नहीं छोड़ रहे हो काका . जानते हो ये सब ठेकेदारों की गलती है . ठेकेदार तारकोल में जली हुई मोबिल मिला देते हैं . बचे हुए तारकोल के ड्रम को बेच लेते हैं तारकोल भी काला और मोबिल भी काली .अब लोग समझ नहीं पाते हैं कि हर काली दिखने वाली चीज़ तारकोल नहीं होती फिर सड़क टिकेगी कैसे…? ए ठेकेदार बहुत पहुँच वाले होते हैं बेटा शंकर उनकी पहुँच सांसद विधायक और मंत्रियों तक होती है चमचागिरी कर करके कर करके वे ये ठेका पाते हैं और फिर उसमें हेराफेरी और मिलावट करते हैं.अब सैयां भए कोतवाल तो डर काहे का यह कहावत तो सुनी ही होगी रामू काका ने कहा. शीशे के गिलास में चाय डालते हुए शंकर ने कहा हां सुना तो है आप ही कई वर्षों से कभी न कभी मुझे सुना जाया करते हैं. चाय को जोर से खींचते हुए रामू काका ने कहा हाँ बेटा हम तुम बात ही तो कर सकते हैं. तुम चाय बनाओ हम रिक्शा चलाएं . शंकर ने कहा हाँ काका अपने देश में बोलने की ही तो आजादी है जब तक सांस है तब तक बोलना ही है.
रामू काका जल्दी-जल्दी चाय पियो पीछे से आवाज आई मुझे बस तक जल्दी छोड़ दो नहीं तो पांच मिनट में हमारी बस निकल जाएगी,पीठ पर बैग टांगे सलोनी ने कहा..अच्छा बिटिया कहीं पढ़ने जा रही हो क्या रामू काका ने पूछा ? काका जल्दी करो बात करके समय बर्बाद मत करो मेरा सलोनी ने उत्तर दिया जल्दी चलो ये लड़की तो चाय भी ना पीने देगी. शंकर बेटा सुबह की पहली सवारी है बोहनी खराब ना हो इसलिए जाऊं बेटा. हाँ जाओ काका का पता बोहनी अच्छी हो जाए और आज का दिन आपकी जिंदगी में अद्भुत हो जाए शंकर ने मुस्कुराते हुए कहा. पहले से ही रिक्शे पर बैठ चुकी सलोनी को लेकर एक किलोमीटर दूर खड़ी बस की तरफ रामू काका चल दिए.काका जल्दी पहुंचा दो प्लीज़. हाँ बिटिया कोशिश तो कर रहा हूँ लेकिन ये सड़क है कि चलने ही नहीं देती ठेकेदार ने सब चौपट कर रखा है.ये तो ऐसे ऊंची – नीची है जैसे अपने देश और समाज में अमीर और गरीब . सलोनी ने कहा काका ठेकेदार और ये सरकारी कर्मचारी भ्रष्ट हैं ये गरीब जनता के हक लूट- लूट कर अपना घर भर रहे हैं और हम हैं कि मूक बनकर देखते रहते है. अपने ही गांव से चौराहे तक जाने वाली सड़क जब बन रही होती है तो हमारे सामने ही ठेकेदार उसमें पड़ने वाला मैटेरियल खराब डाल रहा होता है, तब हम उसका विरोध करने के बजाय उसे पानी और चाय पिलाते हैं तो यह तो होना ही था. जल्दी -जल्दी चलो काका सलोनी ने कहा.अधिक गढ़्ढों की वजह से रामू काका कभी रिक्शे से उतरकर पैदल ही तेज रिक्शा दौड़ाने की कोशिश करते तो कभी सीट पर बैठ कर पैर तेजी से ऊपर ले जाने की कोशिश करते . इसी बीच उन्होंने कहा बिटिया आज पछुआं हवा बहुत तेज है रिक्शा डोल ही नहीं रहा, नहीं तो एक किलोमीटर पहुंचने में बस दो तीन मिनट ही लगते हैं. आज इतनी जल्दी सड़क पर रिक्शा लेकर आ गए रामू काका. बिटिया मैं तो कई वर्षों से सुबह – सुबह सड़क पर आ जाता हूँ रिक्शा लेकर जो तीन बसें यहाँ से लखनऊ, कानपुर और दिल्ली जाती हैं. उनकी सवारी सुबह- सुबह मिल जाती हैं. जैसे आज तुम…..बिटिया आज अभी तुम को बस तक छोड़कर आने के बाद देखूंगा एक दो चक्कर और सवारी मिल जाएगी तो उन्हें पहुंचाकर उसके बाद गांव के प्रधान के पास जाना है .पता करना है कि हमारा राशन कार्ड बना की नहीं रामू काका ने कहा. काका आपका राशन कार्ड अभी इस उम्र तक नहीं बना आश्चर्य से सलोनी ने कहा. बिटिया आज से तीन साल पहले प्रधान और सेक्रेटरी घर पर आए थे तो बोले कि काका अगर जल्दी से राशन कार्ड और कॉलोनी चाहिए तो कल तक दस हजार कैश की व्यवस्था कर लीजिएगा. कल रजिस्ट्रेशन की आखिरी तारीख है. पक्का मकान हमारे पास भी हो जाएगा यह सोचकर अपने खून पसीने मेहनत मजदूरी की कमाई से इकट्ठा की किए हुए पैसों को मैंने तुरंत ही प्रधान के हाथ पर रख दिया. तब से आज दो साल हो गए न राशन कार्ड मिला और ना ही कॉलोनी. और तो और बिटिया प्रधान के यहाँ जाने के लिए तीन बीरा पान जो नहीं ले जाता प्रधान उससे बात नहीं करता है .यह सब भी तो नुकसान ही है . तुम्हारी दादी जब मरी थी तब मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए प्रधान और सेक्रेटरी घर पर आए थे तब बोले काका तीन हजार कैश दे दीजिए दादी के मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए तभी वह आपको मिल पाएगा. बिटिया हम जैसे ही पिछली बात कहे कि हमारा तो…सेक्रेटरी बोल पड़े काका ज्यादा इधर- उधर की बात में समय ना गंवाओ . प्रधान जी के पास तो इस बात की भी सूचना है कि दादी बहुत दिन से बीमार पड़ी थी तो आप उनके इलाज और सेवा से बचने के लिए उनका गला दबा कर उन्हें मार दिए. अब ऐसे में यह बात बीडियो साहब को पता चल गई है तो वो तो बिफरे पड़े हैं. कहते रामू काका तो हत्यारा है.प्रधान जी से कह रहे थे कि उसका नाम जो कॉलोनी व राशन कार्ड की लिस्ट में डाले हो उसे निरस्त करो और एफआईआर कराओ रामू काका पर. तब हमने उन्हें बीच में रोकते हुए कहा कि नहीं रामू काका से हम बात करेंगे अगर कुछ ले दे कर केस रफा दफा हो जाए तो कर देते हैं . अब रामू काका क्या बताऊँ समझ लीजिए ये बीडियो जो है न बहुतै खब्बू है. इसमें से पच्चीस सौ रूपये तो उसे ही चाहिए. हमारे और प्रधान जी के जिम्मे तो केवल ढ़ाई ही आएगा लेकिन सेवा हमारा धर्म है तो हम आप जैसे मेहनती आदमी की सेवा में कोई कमी नहीं छोड़ेंगे भला हम मजदूर का हक कैसे मार सकते हैं हम जानते हैं दादी अपनी मौत से मरी हैं लेकिन अब वीडियो साहब को कौन आपका दुश्मन जाकर बताया कि कल देर रात प्रधान जी को और हम को बुलाकर ये बात बोले हम सुबह – सुबह सबसे पहले आपके पास ही आ गए काम धाम छोड़कर. मरता क्या नहीं करता बिटिया तुम्हारी दादी ही इस दुनिया में हमारी सब कुछ सगी थीं. हम उसका गला भला कैसे दबा सकते थे. यह जानते हुए कि यह सब नाटक है टूटी अटैची और ताखे में पड़े रूपये उसमें भी ₹500 कम पड़ रहे थे जो तुम्हारे बड़े बाबूजी से सुबह- सुबह उधार मांगकर हम प्रधान के हाथ पर रख दिए.बिटिया तुम तो जानती हो ये पुलिस और कोर्ट कचहरी के चक्कर में कौन पड़े …? उलझता तो आने वाली सरकारी कॉलोनी और राशन कार्ड भी नहीं मिलता कॉलोनी आ जाएगी तो प्रधान और सेक्रेटरी को उसमें तीस हजार लेंगे ही लेकिन हमारा क्या है सरकार ढ़ाई लाख दे रही है . तीस हजार सरकारी कर्मचारी ही तो ले रहे हैं, तो भी उसमें से दो लाख बीस हजार अपने जिम्मे आ तो रहा है.मुझे दो कमरे का मकान बनाने के लिए इतने पैसे बहुत हैं. एक साध है कि कम से कम जिंदगी के अंतिम वर्ष में ही अपना पक्का मकान हो जाए . ज़िंदगी के कुछ दिन अपने पक्के मकान के छत के नीचे बीते जिसमें एक पंखा भी लगवा लूं रामू काका ने पैडल पर पैर रख जोरसे पेडल दबाते हुए कहा. बहुत बेकार आदमी हो आप रामू काका मूर्ख गंवार .इस तरह प्रधान और सेक्रेटरी से अपना शोषण कराते फिर रहे हो . कौन कहता है कि राशन कार्ड और कॉलोनी के लिये पैसे लगते हैं.यह तो सरासर अन्याय है. तहसीलदार और एसडीएम ऑफिस जाओ इन सब के नाम की शिकायत करो और इन सभी के नाम एफआईआर कराओ. हमारे देश की जनता की यही सबसे बड़ी कमी है कि बिल्ली के गले गले में घंटी कौन बांधे, थोड़ा पाने की लालच में अधिक गंवा देने वाले गवाह न जाने कब जागेंगे . भ्रष्टाचार नेताओं और अधिकारियों के खून में तह तक समा गया है.अच्छा काका आने दो लौटकर मुझे मैं बात करूँगी प्रधान से रिक्शे से उतरते हुए सलोनी ने कहा . ठीक है बिटिया जाओ और खूब मेहनत से पढ़ लिख कर अफसर बनकर आना रामू काका ने कहा . हार्न देती हुई बस चलने ही वाली थी कि सलोनी झट से बस में चढ़ गई और बस में पीछे से तीसरी सीट पर बैठा रोशन हाथ हिलाकर सलोनी को अपने पास वाली सीट पर बुला लिया. सलोनी ने मुँह पर चुनरी बांधते हुए कहा कैसे हो रोशन .?बहुत डर लग रहा है…..कोई दिक्कत तो नहीं होगी.तुम डरो मत सब ठीक होगा ये बताओ कि घर पर कुछ बता कराई हो की नहीं सलोनी का बैग अपने पैर पर रखते हुए रोशन ने कहा. पागल हो क्या तुम क्या बता कर आती कि मैं घर छोड़ कर भाग रही हूँ आओ मुझे पकड़ लो तेज सांस लेती हुई सलोनी ने कहा ……?
रामू काका दो तीन चक्कर सवारियां बस तक छोड़कर तीन बीरा पान लगवाकर चौराहे से गांव के प्रधान के यहाँ पहुँच गए. प्लास्टिक की कुर्सी पर बहुत से लोग बैठे थे. प्लास्टिक के गिलास में चाय बराबर चल रही थी . प्रधान जी की समाजसेवा इस बात से समझी जा सकती थी कि एक टेबल पर तिजोरी रखे उनका मुंशी आने वाले सभी आवेदकों या मिलने वालों से पहले तीन बीरा पान व ₹30 जमा करा रहा था. पान व पैसा जमा होने के बाद ही प्रधान जी आने वालों की बात सुनते थे.रामू काका का नंबर सबसे आखिरी था. प्रधान के सामने आते ही रामू काका ने कहा प्रधान जी हमारी इस जिंदगी में तो हमें पक्की छत नसीब हो जाएगी ना . पान की पिच घोंटते हुए प्रधान ने कहा चाचा ऐसे आते रहो अगले दो तीन माह में उम्मीद करो. रामू काका हम आप सबको बिल्कुल भी परेशान नहीं करना चाहते हैं.आप भी सोचते होंगे की ये प्रधान हमसे तीन वीरा पान और ₹30 ले कर अपने घर की रोटी चलाता है. रामू काका ऐसा है नहीं ए पान अभी तुम्हारे सामने पान दानी में बंद करके उन्हीं सभी ऑफिसरों के घर पर जाएगा जो आपकी पक्की छत और राशन की व्यवस्था कराते हैं.और अब आप तो जानते ही हैं कि किसी अधिकारी के घर जाने या ऑफिस जाने पर मिठाई के बिना तो साहब लोग बात भी करना पसंद नहीं करते हैं . क्या कहूँ रामू काका इधर तो दो – तीन सालों से हमारी तहसील में जो भी अधिकारी आते हैं वे सभी पान के नशेड़ी हैं. आज तो कम ही लोग आए हैं लग रहा है अपनी ही जेब से पान और मिठाई के पैसे मिलाने पड़ेंगे. चाचा तुम ही बताओ क्या फायदा ऐसी प्रधानी से . घर के उड़द भी ब्याने पर हो रहा है . मन तो करता है कि सब छोड़ छाड़ दूं. ऐसे तो बाप दादा की बनाई सारी विरासत ही मिट जाएगी .
इधर चौराहे पर रामू काका ढूंढे जा रहे थे. प्रधान के घर से निकलते समय रामू काका से महेश ने कहा लो तुम यहाँ हो तुम्हारी खोजबीन चौराहे पर हो रही है. अरे महेश! प्रधान के चक्कर में हम तो सब तरह से उजड़े जा रहे हैं . सुबह से अभी तक की कमाई के तीन वीरा पान और तीस रूपये सब प्रधान की सेवा में चला गया . बचे रूपये पांच, जो सुबह लेकर निकले थे .ये बुढ़ापा भी अब मुझ पर तरस नहीं खाता है. हे भगवान! सवारी छूट न जाए बूढ़ी टांगों से तेज रिक्शा भगाते हुए रामू काका चौराहे पर शंकर की चाय की दुकान के सामने पहुँच गए . भीड़ देखकर शंकर से पूछे क्या हुआ शंकर बेटा कोई बीमार है क्या मुझे आने में देर हो गयी क्या वो प्रधान?… रघु ने कहा वो रहा रामू काका जब मैं सुबह डेरी पर से दूध देकर आ रहा था तो ये सलोनी को रिक्शे पर बैठाए बहुत तेज उधर बस की तरफ भागा जा रहा था . सलोनी को भागने में इसी का हाथ है अब यही बताएगा कि आखिर वह कहाँ गई और किसके साथ गई …? सलोनी ने जरूर इसे शाम को कह रहा होगा कि सुबह आप चौराहे पर जल्दी रिक्शा लेकर पहुँच जाना तभी आज ये धोखेबाज बहुत जल्दी रिक्शे को लेकर चौराहे पर आ गया रघू ने रामूकाका को गरियाते हुए कहा. मैं तो रोज़ इसी समय चौराहे पर आता हूँ जाड़ा हो गर्मी होक्काइदो बरसात हो मैं तो सुबह ही आता हूँ . तुम्हारी काकी जब मरी थी तब के वह दो चार दिन छोड़ कर मैं इसी समय रोज़ चौराहे पर आता हूँ चाहो तो शंकर से पूछ लो गमछा लपकते हुए रामू काका ने कहा. ज्यादा गमछा न ल पकाओ बुड्ढे ना तो अभी तुम्हारी सब रंगदारी उतार देंगे ,नीच कहीं का नीचता की भी हद होती है, अपनी ही बहन बेटियां भगाने में शर्म नहीं बेशरम को. अब बचोगे नहीं तुम. रामू काका ने हाथ जोड़कर कहा अरे बेटा तुम सब समझते काहे नहीं अब इस उम्र में यही काम रह गया है क्या मेरा…? जीवनभर मेहनत मजदूरी से दो पैसे कमा कर खाएं है. कभी किसी का एक पैसे हराम का नहीं खाया है. राम – राम सलोनी तो हमारी बिटिया है हम भला उसे कैसे …….?
रामू काका तुम तो बिटिया की बात मत ही करो निरबंसिया कब से औलाद की दर्द समझने लगे सलोनी के पापा ने कहा. बेटा औलाद का दर्द तो सभी को होता है .औरत के गर्भ से जन्मे बच्चे से लगाव सिर्फ उसी औरत को ही तो नहीं होता ह. वह बच्चा तो और दूसरे औरत मर्दों का भी प्यारा होता है. उसको चोट लगती है तो बाप जो कि मर्द है उसे भी दर्द होता है.घर में जो दादा है उसे भी दर्द होता है .उसी हक से मैं भी सलोनी को बिटिया मानता हूँ अगर उसके साथ कुछ ऊँच नीच हो गया तो दर्द मुझे भी होगा. वह अफसर बनी तो मुझे उतनी ही खुशी भी होगी जितनी की माँ और पिता होने के नाते तुम दोनों को रामू काका ने कहा.
दादा साफ – साफ बता दो ना तो पुलिस आएगी और तुम्हारे नाम से एफआईआर होगी संतू ने दो छलांग उछलते हुए कहा. उधर से अरे मैं तो लूट गई रे .वह करमजली घर में रखे पैसे और दो थान गहने भी ले गई. नफरत ने उछलकर रामू काका की गर्दन दबोच लिया . जिस रामू काका को कोई तू नहीं कहता था आज उनकी गर्दन एक लड़की सवारी होने से होने वाली बोहनी की लालच में पकड़ ली गई . चिल्लम- चिल्लाहट के बीच रामू काका बस यही बोलते रहे मैं कुछ नहीं जानता कुछ भी नहीं जानता पूरी जिंदगी हाथ से चूल्हा जलाना और चार हथपोइया रोटी चटनी के साथ बनाकर खाने और रिक्शा चलाने के अलावा मैं अपनी जिंदगी में कुछ नहीं जानता. सरकार द्वारा दिया जाने वाला मकान प्रधान नहीं देता और चौराहे पर जनता जीने नहीं देती. हाय जिंदगी तुम हमसे इतनी नाराज क्यों? संतू ने कहा पुलिस को फोनकर नटरुआ .
रामू काका की गर्दन नटरु के पकड़ते ही शंकर चाय की केतली भट्ठी पर पटकते हुए बोला नटरुआ छोड़ दे रामू काका को नहीं तो….हे शंकरलाल तैं बस चाय बनाओ तोर औकात नाय है कि दूसरे की बहन बेटी को… हमारे गांव का मामला है . शंकर हिरनौटा की तरह उछाल मार भट्ठी पार कर गया और गरियाते हुए नटरु को एक तगड़ा घूसा मारते हुए बोला सब मामला गांव तक सीमित नहीं होता है.मैं एक अच्छे इंसान के नाते रामू काका की इज्जत करता हूँ और वे मुझको बेटा कहते हैं इसलिए मैं उनकी अपने बाप जितनी इज्जत करता हूँ आज तो बस… लतम- जुत्तम के बीच रामू काका के सिर में चोट आ गई खून बहने लगा बीच सड़क पर ही वे गिर पड़े. उसी में से किसी ने पुलिस को फ़ोन कर दिया था उसी बीच पुलिस भी आ गई. सभी आरोपियों को पुलिस थाने पर ले गई .दोनों पक्षों का मेडिकल होना तयं हुआ .एक कांस्टेबल ने रामू काका से कहा की देखो दादा आप और शंकर दोनों फंसोगे अब लड़की भगाने के जुर्म में, तो दरोगा जी कह रहे हैं कि कम से कम पचास हजार की तुरंत व्यवस्था कराओ तभी मेडिकल से लेकर एफआईआर तक सब मैनेज हो पाएगी. पचास हजार तो बहुत है साहब और इस उम्र में मैं लड़की भगाने वाला दिखता हूँ क्या आपको .रामू काका यह बात कह ही रहे थे की हाथ में सफेद कागज लिए दीवान साहब गाली देकर बोले हरामजादे पैसों की व्यवस्था कर नहीं तो अब सारी उम्र जेल में सड़ेगा.
उसी बीच गांव के प्रधान जी दारोगा से सिफारिश के लिए थाने पहुंचे .दरोगाजी की टेबल पर सिल्वर पेपर में पैक पान की पोटली को खोलते हुए बोले साहब बहुत अच्छे पान हैं खास आपके लिए अभी -अभी लगवाए हैं.सुना है आपको पान बहुत पसंद है. थोड़ी दूर पर जमीन पर बैठे रामू काका उन पानों में अपने उन तीन पानों को पहचानने की कोशिश कर रहे थे जो कि वे सुबह प्रधान को देख कर आये थे . भीड़ में कौन अपना कौन पराया पहचानना मुश्किल हो जाता है .
प्रधान जी ने इशारे से दरोगा जी को दूसरी तरफ आने के लिए कहकर थाने में बने मंदिर की तरफ जाकर खड़े हो गए. कुछ मिनट बाद इन सालों का मेडिकल कराओ और तगड़ी धारा में डाल दो सालों को लंबे समय के लिए कहते हुए दरोगा जी उठकर प्रधान जी की तरफ चले गए. असंसदीय शब्दों का प्रयोग संवैधानिक रूप से सभी के लिए वर्जित है लेकिन लगता है कि कुछ भारतीय पुलिस वालों को यह भी दहेज में ही मिला हो.जो किसी का भी दोष -पाप जाने बिना बहन बेटियों की गाली देने लगते हैं .
किसी की सिफारिश हेतु बैठे लेखक ने बगल में बैठे पत्रकार से कहा क्या जमाना आ गया है. सिधाई का जमाना ही नहीं है.
बगल में बैठे पत्रकार ने कहा लेखक महोदय आप बहुत सीधे हैं . हमारे समाज में जब तक रिश्वत और गाली न चले तब तक हम पत्रकारों की तो न ही जेब है भरती है और न महफिल सजती है. ये लेखकीय आदर्श का चोला गरीबी के अलावा और कुछ नहीं देता है. आप -अपनी ही दशा पर ज़रा गौर फरमाइए और तो और आप सब की बात दरोगा तो छोड़िए एक होमगार्ड भी नहीं सुनता है. हम तो कहते हैं. आप भी ए उपन्यास ,कहानी, कविताएं लिखना छोड़ पत्रकारिता कर लीजिए .दुकान चल पड़ेगी. हर माह दस केस में मोटी रकम मिल जाया करेगी फिर ये टूटी पुरानी साइकिल की जगह आप भी मोटरसाइकिल और फिर जल्दी ही कार से चलने लगेंगे . तेवर चढ़ाते हुए लेखक महोदय ने कहा शायद आज तक आप ये न समझ पाए कि जो बिकने लगा वह किसी एक का होकर नहीं रहता है फिर क्या अपना और क्या पराया.
उधर प्रधान जी ने दरोगा जी से कहा ये रामू काका और शंकर चाय वाला दोनों चौराहे के कलंक हैं.सुबह से ही आने- जाने वाली बहन बेटियों पर फब्तियां कसते रहते हैं और बुरी नजर से देखते हैं . सामने मंदिर है जिसमें भगवान की मूरत है उनकी कसम खाकर कहता हूँ दरोगाजी कि मैं तो शंकर के हाथ की चाय और रामू काका के हाथ का पान तक छूना पसंद नहीं करता हूँ. बस अब इनको ऐसा रगड़ दीजिए की इनकी ये गलत निगाही सब के लिए सबक बन जाए.दरोगाजी आप अपनी कीमत बता दीजिये मैं सन्तु और नटरुआ से बात कर लेता हूँ आप जो कहेंगे आपकी सेवा में हाजिर हो जाएगा. बस ये रामू और शंकर…दारोगाजी ने प्रधान के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा देखिए प्रधान जी हमारी कीमत आप की कीमत से बड़ी थोड़े ही है. हाँ इतना जरूर है कि हम बिकते हैं क्या करें ऊपर तक की सेवा करनी पड़ती है और फिर हमारे भी बीबी बच्चे तो हैं…? जैसे आपको हर माह एक निश्चित राशि अपने अधिकारियों को पहुंचानी होती है वैसे ही हमें बल्कि आप से ज्यादा यहाँ तो बड़े- बड़े ऑफिसर और मंत्रियों तक की हिस्सेदारी शामिल है कितना भी करो पेट भरता ही नहीं. प्रधान जी हमेशा के लिए अगर रामू और शंकर को आप अपने चौराहे पर नहीं देखना चाहते हैं तो बस कह दीजिए आपके बंदे से डेढ़ लाख की व्यवस्था करें और शाम को आ जाएं.मैं मेडिकल से लेकर एफआइआर तक सब मैनेज करा दूंगा .
पान थूकते हुए प्रधान जी ने कहा अरे साहब यह तो बहुत ज्यादा है उन सब की तो औकात ही नहीं है .
इतनी औकात नहीं है तो आप जाईये घर छोड़ दीजिए उन सभी को अपने हाल पर एक 65 वर्षीय बूढ़े को मारा है हत्या के प्रयास की धारा लगाकर जेल भेज दूंगा सालों को फिर वे कभी जेल से बाहर ना आ सकेंगे दरोगा ने प्रयोग प्रधान से दूर जाते हुए कहा.अरे सरकार नाराज मत होइए बस कुछ देख लीजिए प्रधान जी ने दारोगा जी का हाथ पकड़ते हुए कहा. देखिए प्रधान जी आप अपना और हमारा समय बर्बाद न कीजिए अभी हमारे पास बहुत सारे क्लाइंट बैठे हैं सब को सेट करना है .
न्याय के मंदिर में अन्याय की आवाज बुलंदी पर थी जाते -जाते दरोगा जी ने प्रधान जी से कहा ठीक है आप अगर कहते हैं कि कुछ कम हो जाये तो आप अपना वाला 10% हिस्सा कम कर लीजिएगा आप अपना हिस्सा उन गरीबों के लिए छोड़ दीजिए और फिर उन्हीं की योजनाओं को रोज़ भुना कर अपना बैंक बैलेंस और महल बना रहे हैं . इतना तो उनके लिए कर ही सकते हैं . दरोगाजी आप ही तो हम सब के अन्नदाता हैं. हमारे पेट पर लात क्यों मार रहे हैं …? मैं बात करता हूँ प्रधान जी ने हाथ जोड़ते हुए कहा.लौटते हुए पान का बीड़ा मुँह में दबाते हुए दारोगाजी ने प्रधान से कहा सुनिए प्रधान जी लड़की भागी ही तो है न, न मरी है न बलात्कार हुआ है फिर बालिग है सारे खर्चे से माँ बाप को बचा गई. लाखों – लाख उसकी शादी में उसका बाप खर्चा करता है ना.अब तो सब बच गया उसमें से तो मैं केवल डेढ़ लाख ही मांग रहा हूँ . बगल में खड़ा लेखक बस अपनी कहानी में इतना ही लिख पाया कि जिस देश में एक लड़की के गुम हो जाने पर पुलिस प्रशासन उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट एफआईआर दर्ज करने के लिए उसके परिजनों से रिश्वत की मांग करता हो फिर वहाँ क्या और कौन सी एफआईआर उस समाज की सुरक्षा किसके भरोसे…?
कहानीकार युवा साहित्यकार हैं।