अरुणाकर पाण्डेय
संसद को जानने का एक यह भी तरीका है कि लोक सभा और राज्य सभा के सांसदों के व्यक्तित्व से कई बार ऐसी बातें समझने को मिलती हैं जो अनायास ही अपनी ओर आकृष्ट कर लेती हैं | इस पर भी जब सांसद युवा हों या पहली बार चुन कर आएं हों तो मामला और भी रोचक हो जाता है | इस बार भी विगत लोकसभा के आम चुनावों में कुछ युवा सांसद पहली बार चुन कर आए हैं | जाहिर है कि इनके कन्धों पर बड़ी जिम्मेदारियाँ हैं और वे इस बात को लेकर सर्तक और उत्साहित नज़र आ रहे हैं |
ऐसे ही मात्र पचीस वर्ष के एक सांसद चुन कर आए हैं श्री पुष्पेन्द्र सरोज ! पुष्पेन्द्र सरोज पूर्वी उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी लोकसभा क्षेत्र के सांसद हैं जो पहले प्रयागराज का ही एक अंग था | लेकिन बाद में वह एक स्वतंत्र लोकसभा क्षेत्र बन गया | पुष्पेन्द्र समाजवादी पार्टी के सांसद हैं और इनके पिता इन्द्रजीत सरोज भी पहले सांसद रह चुके हैं और अब विधान सभा सदस्य हैं | पुष्पेन्द्र की ओर ध्यान तब आकर्षित हुआ जब उन्होंने हाल में ही एक अंग्रेजी समाचार पत्र को यह बयान दिया कि “मैं शायद अंग्रेजी में अधिक सहज हूं, लेकिन आगे चलकर, मैं संसद में जो कुछ भी बोलूंगा वह हिंदी में होगा..मैं अपने लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं और उन्हें मुझसे आशा है। वे चाहते हैं कि कोई उनके लिए बोले, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि मैं कैसा आचरण करता हूँ ।” (“I am probably more comfortable in English but going ahead, whatever I speak in Parliament is going to be in Hindi ..I am representing my people and they have hope in me. They want someone to speak for them, so it’s important how I conduct myself”)
ध्यान देने की बात यह है कि पुष्पेन्द्र सरोज ने सांसद की अपनी शपथ अंग्रेजी में ली थी और बताया जाता है कि तब उनके क्षेत्र में लोग इस पर मुग्ध हो गए थे | इसलिए उनका यह व्यक्तव्य और भी रोचक है क्योंकि वे अंग्रेजी भाषा से मुग्ध करने के बजाय अपने कर्तव्यों का पालन करने और उसे संप्रेषित करने के लिए हिंदी के चुनाव की घोषणा कर चुके हैं | यह लोकतंत्र और शासन-प्रशासन में अंग्रेजी की अनिवार्यता को अनावश्यक रूप से बढ़ाने को हतोत्साहित करता है | जाहिर है कि उनका अंग्रेजी भाषा से कोई विरोध या शत्रुता नहीं है बल्कि अपने क्षेत्र कौशाम्बी के अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचने का स्वाभाविक साधन है | वैसे यह भी स्वाभाविक है कि हिंदी प्रदेशों से चुन कर आये हुए सांसद अधिकतर हिंदी का उपयोग ही स्वाभाविक रूप से संसद में करते हैं | लेकिन संभवतः अंग्रेजी में शपथ लेने के कारण भी पुष्पेन्द्र सरोज को यह बात अलग से रेखांकित करनी पड़ी | लेकिन यह एक स्वागतयोग्य कदम है जिससे भाषा के प्रयोग-उपयोग की ओर पाठक का ध्यान आकर्षित होता है और हिंदी प्रेमियों को विशेष आनंद की अनुभूति होती है | यह कथन उस सूत्र की तरफ ध्यान ले जाता है जिसमें यह माना जाता है कि एक स्वतंत्र एवं लोकतांत्रिक देश में जनता के प्रतिनिधि को जनता की भाषा में जनता की बात करनी चाहिए | उम्मीद है कि नवनिर्वाचित संसद सदस्य अपने वचन का पालन करते रहेंगे |
पूर्वी उत्तर प्रदेश के मछलीशहर से निर्वाचित युवा सांसद प्रिया सरोज ने भी भाषा कि समस्या पर बात की है | वे एमिटी विश्वविद्यालय से विधि की छात्रा रही हैं | उन्होंने बताया कि जब उन्हें जनता के सामने अपने विचार व्यक्त करने की जरुरत हुई तब उन्हें भी भाषा संबंधित यह दिक्कत हुई कि वे इंग्लिश या हिंगलिश में सोचती थीं | वे अंग्रजी के रिप्रेजेंटेटिव और ट्रांसपेरेंसी जैसे शब्दों का उपयोग करती थीं लेकिन अब वे सचेतन रूप से हिंदी के शब्दों का उपयोग करती हैं | उनका कहना है “अपने क्षेत्र में हमारे कार्यक्रम जो भी होते हैं, उसमें मैं कोशिश करती हूँ कि शुद्ध हिंदी में बोलूँ | मैं पहले ही प्रत्येक शब्द पर ध्यान देती हूँ | मैं समानता और अधिकार जैसे शब्दों का उपयोग करती हूँ |जब हम ऐसे शब्दों का उपयोग करते हैं तब क्या होता है ? आपके लोग यह समझने लगते हैं कि आप क्या कहना चाहते हैं |”
प्रिया सरोज जी के इस कथन से स्पष्ट है कि नए निर्वाचित युवा सांसद जनता के प्रतिनिधित्व में जनता की अपनी भाषा के महत्व को स्वीकार करके चल रहे हैं | निश्चित ही यह हिंदी प्रेमियों के लिए एक अच्छा संकेत है कि हिंदी का महत्व राजनीति में युवा पीढ़ी के अंग्रेजी माध्यम में शिक्षित नेता भलीभाँति समझ रहे हैं |
लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक हैं।