रमेश कुमार मिश्र
उस अजनबी में ऐसा क्या है? जो मेरा चित्त उससे हटता ही नहीं है। बराबर उसी के बारे में सोचती रहती हूँ। मैं बार-बार जितना उससे अपना मन हटाने की कोशिश करती हूँ, उतना ही उसके करीब अपने -आप को पाती हूँ। रागिनी ऐसा सोच ही रही थी कि अचानक उसने सोचा कि आखिर जिसे मैं अजनबी कह रही हूँ वह अजनबी कैसे है वह तो शेखर है जो मेरा सहपाठी है और सहपाठी को अजनवी नहीं कहा करते हैं । रागिनी ने अपने आप से थोडा तेज आवाज में कहा कि रागिनी जिसे इतने महीनों से तू जानती है वह अजनवी कैसे हो सकता है।
दरवाजे पर कुछ सहेलियों के बात करने की सुगबुगाहट आई। दरवाजा खटका तो आई ,कहकर रागिनी ने दरवाजा खोल दिया, और तुरंत अपने बिस्तर पर वापस जाकर लेट गई। एक सहेली ने सिरहाने बैठकर उसके बालों में उँगली फेरते हुए कहा, रागिनी आखिर बात क्या है जो तुम इतनी खोई-खोई सी रहने लगी? रागिनी ने कहा कुछ भी नहीं, अभी मेरी तबियत खराब है और मुझे तुम सब आराम करने दो। स्वाती ने कहा नहीं-नहीं आज तो मैं तुम्हें सोने ना दूंगी, जब तक तू ना बताओगी कि आखिर वह कौन है जो तुझे इस कदर लूट गया कि तू सहेलियों की भी नहीं रही, उसकी ही हो गयी। देखो रागिनी प्यार जीवन में सब को एक बार होता है उसमें शर्माने की बात नहीं। तुम साफ-साफ बताओ हम तुम्हारी समस्या का हल दो मिनट में निकाल देंगे। तुम्हें हम सब पर भरोसा नहीं है क्या?
दूसरे छोर पर बैठी रजिया ने कहा, या खुदा, यह तो बक्शीश है। यह तो किसी-किसी को मिलती है, वह भी सच्चा इश्क एक अमानत है, खुदा का नूर है। जिससे आत्म प्रकाशित होता है। कुरान में लिखा है कि जब खुदा की मेहरबानी का नूर बरसता है, तो सौ में से किसी एक को इश्क का तोहफा मिलता है। सच्चाई यह है कि इश्क सदैव व्यक्ति अपने-आप से करता है। सामने की जिस वस्तु को देख कर वह प्रसन्न होता है उसके प्रति अनुराग उसके अपने दिल में पनपता है, अतः सदैव इश्क के दायरे में आने वाली वस्तु प्राप्त हो ही जाए, कोई जरूरी नहीं है। प्रेम में तो त्याग भाव जरूरी है सबसे प्रिय वस्तु व्यक्ति को न मिले यह इश्क की परवानगी है? ऐसे में उसके प्रति घोर सम्मान और पिपाशा दोनों बनी रहती है। परन्तु रागिनी ये सब तो दर्शन की बातें हैं। अब बताओ वह कौन खुशनसीब है…. रागिनी ने तकिये से अपना मुँह ढंक लिया और बोली तुम सब जाओ यहां से, मुझे सोना है। परन्तु ऐसा न हो सका सहेलियां भी जानकर ही दम लीं। किसी तरह वह जान ही गयीं कि वह शेखर है। उधर टेबल के पास बैठी ज्योति ने कहा अच्छा शेखर है वह , अरे वह तो कुछ खास नहीं दिखता है, बुझा-बुझा सा रहता है। उसका बदन तो ढीला-ढाला है। रागिनी कॉलेज में इतने अच्छे-अच्छे डील – डौल के लड़के हैं काफी हाट-हाट क्यों न उन में से एक को चुन लें। अगर तू इस काम में शर्माती है तो तेरे लिए मैं ढूंढूंगी और उनकी बॉडी होगी माशाल्लाह… और यहाँ तो सारे अमीर जादे आते हैं। प्रतिदिन पिक्चर ले जाएंगे। शाम को किसी बढ़िया रेस्टोरेंट में भोजन भी कराएंगे। लडके सब बेवकूफ होते हैं, इनको ज्यादा भाव देने की जरूरत नहीं है। जितने में अपनी जरूरत पूरी हो जाये बस । हाँ, इनको अपने पीछे भागने के लिए थोड़े लटके-झटके तो देने ही पड़ते हैं। ये साले उतने ही में ही हम लड़कियों को अपनी बीवी मान बैठते हैं। और खूब खर्चा करते हैं। तो अब तो तू तैयार है न ऐसे लड़के से दोस्ती करने के लिए ।
रागिनी उठकर बैठ गयी और बोली तू क्या बोल रही है, मैं कोई ऐसी वैसी लड़की नहीं हूं। तुम लोग क्या मैं कल शेखर से खुद बात कर लूँगी किसी बहाने से तुम लोगों की जरूरत नहीं है। मैंने आज उससे थोड़ी सी बात किया था। वह एक सामान्य परिवार का लड़का है। उसके परिवार में माँ और भाई है। वह एक अच्छा लड़का है। संस्कारों का धनी है वह सिर्फ पढने में मस्त रहता है। उसके पापा, सरकारी नौकरी में थे वह पढ़ने में तेज है, वह एक दिन बहुत अच्छी नौकरी, और अच्छी पोस्ट पा जाएगा। उसके बाद हम दोनों शादी करेंगे बस। स्वाती बोल पड़ी अरे बाबा अरे वाह, इसने तो पूरी फैमिली प्लानिंग ही कर लिया है । अरे तू जानती भी है उसकी जाति क्या है, रागिनी ने कहा हां वह मैं जानती हूँ । वह मेरी जाति का नहीं है, तो क्या हुआ एक मनुष्य तो है। और वह भी अच्छा मनुष्य।
स्वाति ने पूछा क्या तुम्हारा परिवार उसे स्वीकार कर लेगा। रागनी ने कहा हां, बुराई ही क्या है । देखो शादी एक न एक दिन करनी ही है, किसी न किसी लडके से तो। कोई ना कोई की जगह फिर शेखर ही क्यों नहीं
। देखो यार मैं जाति-पांति नहीं मानती हूं और अगर हम भी वही सब मानने लगे जो हमारे अनपढ लोग मानते आ रहे हैं तो हम में और उनमें फर्क ही क्या होगा, मैंने कभी इसका भेद नहीं माना। मुझे अपने आप पर भरोसा है । मैं अपने परिवार को समझा लूंगी । मान गए तो ठीक और नहीं तो देखेंगे और मानेंगे भी कैसे नहीं मैं उनकी इकलौती बेटी जो ठहरी।
सब सोने चले गए। रागिनी के मन में प्रशन घर कर चुका था। उसने अपने आप से कहा कि शेखर मैं शेखर से कहूँगी कि वह मेरे लिए जल्दी से नौकरी पा जाए। एक लड़की के माँ बाप को और क्या चाहिए? लड़का सरकारी नौकरी में हो कि ठीक-ठीक कमाता हो, देखने में सुन्दर हो तो जाति क्या मायने रखती है। रागिनी देर रात तक अपने आप से ए सब बातें करती रही । औऱ न जाने कब सो गयी ।
सुबह सब कॉलेज गए, कक्षाएं हुईं। दोनों में बातें भी हुईं। दोनों एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त बन गए। दुनिया से दूर अपनी दुनिया बसाने की कवायदें चलने लगी। एक दिन मैकडी में बैठकर रागिनी ने शेखर से पूछा, तुम्हारे परिवार वाले मुझे बहू के रूप में स्वीकार तो कर लेंगे न शेखर? और तुम नौकरी पाकर हमें भूल तो नही जाओगे।
शेखर खिल -खिलाकर हंस उठा और बोला अरे तेरी जाति तो मेरी जाति से सामाजिक रूप से बहुत ऊंची है। कोई मैं अपने से छोटी जाति में शादी थोडे कर रहा हूँ। कौन माँ बाप होंगे जो अपने से उच्च जाति की लड़की से अपने लड़के का ब्याह ना करना चाहेंगे? तुम ऐसा क्यों सोचती हो?
रागिनी एक पल के लिए निःशब्द हो गई…. पर सोचने लगी कि लड़का तो ठीक ही है मैंने जो पसंद किया है। मेरे लायक बन जाएगा और जाति-पांति तो गांवों के लोगों का विषय है। हम शहर वाले परिपक्व बुद्धि के हैं, हम ऐसा सोचे तो समाज….
इसी बीच शेखर एक सरकारी नौकरी में चुन लिया गया। आनन -फानन में उसे जाना पड़ा। वह कॉलेज से जाते समय अपना रागिनी के साथ बिताये एक-एक पल की यादें जिस- जिस रूप में बिताया था जहाँ-जहाँ लिए जा रहा था। रागिनी उसे स्टेशन तक छोड़ने भी गई थी। दोनों ने एक दूसरे को गले लगाकर विदा किया। शेखर ने रागिनी के माथे को चूमा और भरोसा दिलाया ए छोटी जाति का शेखर बड़ी जाति की रागिनी को अपनाएगा ही। भूल मत जाना ओए .….
शेखर के जाने के बाद रागिनी उदास रहने लगी। सहपाठी लड़के उसे चिढ़ाने लगे थे। अब तो शेखर चला गया, अब किसी और से दोस्ती कर लो परंतु रागिनी ने अपने दिल के मन्दिर में बस एक नाम की ही ज्योति जला रखा था। समय बीतता गया। शेखर की पोस्टिंग दूर- दराज के पिछडे क्षेत्र में हुई, जो हर तरह से पिछड़ा हुआ क्षेत्र था । जो सामान्य पहुँच के बाहर था, जिससे प्रतिदिन शेखर रागिनी से बहुत देर तक बात नहीं कर पाता था परंतु करता ज़रूर था। किसी खास मौके पर दोनों किसी न किसी रूप में बात कर ही लेते थे। शेखर जिस नौकरी में गया था, वहाँ बहुत जल्दी-जल्दी छुट्टियाँ नहीं मिलती थीं पर किसी खास तीज त्योहार पर वह आ ही जाता था । दोनों एक दूसरे से बर्षों की प्रेम पिपासा लिेए, किसी खास स्थान पर घर से दूर मिल ही लेते थे। समयानुसार एक दिन दो दिन साथ रहते और फिर शेखर रागिनी को दिलासा देकर चला जाता था। जब किसी खास त्यौहार पर शेखर को छुट्टी नहीं मिल पाती और वह नहीं आ पाता तो रागिनी उदास रहती। उसकी सारी खुशियां शेखर रूपी त्योहार में समाहित खोय़ी रहतीं। वह कुछ खास पकवान बनाती तो सबसे पहले शेखर के बारे में सोचती थी,और शेखर के आने पर वह उसे सब कुछ बताती भी । कभी वह घर बैठे-बैठे शेखर पर कुढती तो कभी उसका चित्र बनाती, कभी उसके साथ अपने बिताए पलों को याद करती और कभी-कभी तो अकेले में रहकर रो भी लेती थी । कुल मिलाकर वह शेखर से कभी-कभी इस बात से मन ही मन नाराज हो लेती कि तुमने ऐसी नौकरी की ही क्यों? जहाँ से तुम हमारे लिए समय ही नहीं निकाल सकते……
समय बीता रागिनी ने अपने परिवार वालों को मजबूर कर अपनी शादी शेखर से कर लिया। बेचारे माँ बाप उनके पास चारा ही क्या था? रागिनी शेखर के साथ उसके घर चली गई। कुछ दिनों के लिए रागिनी और शेखर हनीमून पर चले गए। वहाँ से वापस आकर शेखर रागिनी को साथ न ले जा सका, क्योंकि वह नौकरी ऐसी करता था कि वह किसी एक स्थान पर रह ही नहीं पाता था। उसका स्थानांतरण होता रहता था। रागिनी भी उसी समय अपने मायके की तैयारी कर लेती थी। और शेखर के जाने के बाद अपने मायके चला जाया करती थी। शेखर अपनी ड्यूटी में लग जाता। दोनों देर रात तक एक दूसरे से प्यार भरी बातें कर लेते थे । कभी-कभी ऐसा तकनीकी समस्या से संभव कई बार संभव नहीं हो पाता था। समय बीता रागिनी गर्भवती हो गई। शेखर को सूचना मिली, शेखर तुरंत येन-केन प्रकारेण छुट्टी लेकर घर आया। मायके से उसे अपने घर ले गया। शेखर की माँ ने इच्छा व्यक्त की कि बेटी अब शेखर जाएगा तो भी तुम यहीं रहना, हमारी बड़ी शौक है कि ऐसी हालत में हम तुम्हारी सेवा करें और तुम हमारे ही घर में बच्चे को जन्म दो। रागिनी उस समय तो कुछ नहीं बोली। रागिनी शेखर की अनुपस्थिति में कई बार शेखर की मां से यह कह चुकी थी कि मैंने शेखर से शादी किया है उसके घऱ परिवार वालों से नहीं । शेखर की अनुपस्थिति में उसे उसके घर के तौर तरीके पसंद नहीं आते थे । समस्या तब बड़ी होती है जब जातीय स्वाभिमान सामाजिक व पारिवारिक स्वाभिमान से टकराता है। माँ की अनुपस्थिति में रागिनी ने शेखर से कहा, देखो शेखर मैं अपने बच्चे को जन्म तो अपने मायके की दहलीज में दूंगी और मेरा बच्चा मेरा खान- पियन भी वहीं का होगा समझे । जितना अधिकार एक बाप होने के नाते तुम्हारा इस बच्चे पर होगा उससे कहीं ज्यादा मेरा, क्योंकि यह पल तो मेरे ही गर्भ में रहा है न? शेखर चिढ़ गया,उसने कहा देखो रागिनी तुमने मुझसे शादी करके मुझ पर कोई एहसान नहीं किया है। मैं मानता हूँ तुम्हारा खानदान मेरे खानदान से बहुत ऊंचा है और बडा भी , लेकिन इसके लिए मैं अपनी माँ को तो नहीं छोड़ दूंगा।
रागिनी ने सिर पीट लिया हे मां, हे पापा ये मेरे साथ क्या हो गया? जिसे मैंने अपना सब कुछ समर्पित कर दिया, वह आज मेरे सामने ऐसी भाषा बोल रहा है। अब रागिनी को एहसास हुआ कि सामाजिक नियम कायदों की भी अपनी एक गरिमा होती है। उसे सौ वर्ष आगे तक का घुटन भरा भविष्य दिखने लगा। वह छटपटा उठी। उसने अपने -आप से कहा अगर यहाँ से कुछ भी गडबड हुआ तो मैं किसके पास वापस जाऊंगी। मैंने तो सबसे विद्रोह करके शेखर से शादी की थी पर हाय रे नसीब…
शेखर सो चुका था। सुबह जब रागिनी उठी तो वह उसे छोड़कर जा भी चुका था। छोड़ गया था एक पन्ने पर लिख कर कि यदि मेरी माँ की इच्छा के विरुद्ध कुछ हुआ तो रागिनी फिर हमें सोचना होगा…
गजब तो उस दिन हो गया जब शेखर के घर उसकी हादसे में मृतयु की खबर आई। रागिनी अब इस दुनिया में बिल्कुल अकेली थी। वह समझ नहीं पा रही थी कि किधर जाए, क्योंकि रागिनी की माँ भी कुछ दिन पहले ही स्वर्गवासी हो चुकी थी। पिता असहाय थे। वह अपने समाज में दया और हँसी का पात्र बन चुकी थी। उपेक्षा उसकी सह संगिनी बन चुकी थी। उसके पास नौकरी थी पर किसके लिए करती। सब तो उसे छोड़कर जा चुके थे । समाज के कुछ हवशी दरिंदे उस पर अपनी निगाहें जमाए हुए थे ।
एक दिन रागिनी अपनी आलमारी साफ कर रही थी। उसमें एक छोटा सा बॉक्स था, जो शायद उसकी मां ने रखा था उसमें उसकी कुंडली पड़ी थी, उसमें नाड़ी दोष लिख था और नीच ग्रहों की उच्च ग्रहों पर दृष्टि पड़ रही थी जिसका फल अंतर्जातीय विवाह में रागिनी का वैधव्य लिखा था। बेचारी रागिनी अपने दोनों घुटनों पर बैठ गई। वह सोचती रही……किसे मानूं और किसे न मानूं ……
रचनाकार– हिंदी परास्नातक व हिंदी परास्नातक पत्रकारिता में डिप्लोमा दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली से हैं ।